प्राक्कथन
प्रवृत्ति की भित्रता के कारण एक ही चीज लोगों को भिन्न भित्र रूपों में दिखाई देती है। औरों की बात मैं क्या करूं, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जैसे व्यक्ति को भी देश के लोगों ने अपने अपने ढंग से देखा था। ऐसी स्थिति में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सात्रिध्य में रहकर सम्पूर्ण क्रान्ति और समाजवाद का पाठ पढ़ने वाले तथा मुसहर टोली में जाकर सत्य के साथ प्रयोग करने वाले लालू प्रसाद यादव जैसे व्यक्ति को सामाजिक न्याय मिलने की बात भला कैसे सोची जा सकती है! लोगों के जेहन में जब कभी भी 'न्याय' शब्द प्रवेश करता है तो उन्हें बरबस सन् 1916 में लिखी गयी कथाकार प्रेमचन्द की कहानी 'पंच -परमेश्वर' की याद आने लगती है। कहानी 'पंच परमेश्वर' के गाँव गिराँव के अनपढ़ पंच (न्यायकर्ता) अलगू चौधरी और जुम्मन शेख, कानून तो नहीं जानते थे पर न्याय की मर्यादा को जरूर जानते समझते थे, लेकिन आज के पंच कानून तो जानते हैं पर शायद न्याय की मर्यादा को नहीं जानते समझते। पंचों का वह दोनों वर्ग आज एक दूसरे के आमने सामने खड़ा है, जिन्हें पूरा समाज बड़ी उत्सुकता से निहार रहा है। 'सामाजिक न्याय की अवधारणा (Concept of Social Justice), हजारों वर्षों पुरानी गुलामी एवं सामाजिक शोषण के विरूद्ध सन् 1990 में प्रारम्भ हुई 'आजादी की दूसरी लड़ाई' का मशविदा है। 07 अगस्त, 1990 के बाद यह 85% शोषितों के दिलों की धड़कनों में समा गया है। सामाजिक न्याय (Social Justice) :- (i) अन्यायी दुर्योधन ने अपने भाई पाण्डवों को सूई के नोंक बराबर भूमि देने से इन्कार किया था। भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में पाण्डवों का साथ दिया और न्याय के लिए भाव से लड़ने के लिए प्रेरित भी किया था। गीता का यही सार 'सामाजिक न्याय' की (iv) समता, समानता, पारस्परिक प्रेम और भाईचारा तथा बंधुत्व के सिद्धांतों के आधार पर समाज का नवनिर्माण, 'सामाजिक न्याय की अवधारणा' है। (v) "कथनी मीठी खाँड़ सी....", के मायाजाल में न फंसना, 'सामाजिक न्याय की अवधारणा' है। (vi) अपने दोस्त दुश्मन, दूसरों अथवा अपनों के बीच के स्वार्थी, विश्वासघाती, कुर्सी प्रेमी, दगाबाज तथा केवल लाभ लेने में विश्वास रखने वाले दोगले चरित्र वाले लोगों को ठीक से पहचानना और उनसे बचना, 'सामाजिक न्याय की अवधारणा' है। (vii) भूले भटके, गुमराह तथा अशिक्षित लोगों की सहायता कर उन्हें उचित परामर्श देना एवं सही मार्गदर्शन कराना, 'सामाजिक न्याय की अवधारणा' है। यह पुस्तक बहुआयामी व्यक्तित्व वाले देश के एक राजनीतिक विचारक, लालू प्रसाद यादव की जीवन कथा है। डॉ० राम मनोहर लोहिया के समाजवादी दर्शन में आस्था एवं विश्वास होने के कारण मैंने इस पुस्तक को लिखने का मीमांसित निर्णय लिया था। भारतीय मानसिकता के अनुसार मेरी जाति के आधार पर लोग जबरन ले जाकर मुझे कहीं खड़ा कर दें, यह बात दिगर है, पर मेरी कोई दलीय राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है। वैचारिक राजनीति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रबल समर्थक मैं जरूर रहा हूँ। लालू प्रसाद यादव का मूल्यांकन मैंने एक 'राजनीतिक विचारक' के रूप में किया है। उन्होंने भारतीय राजनीति को एक नयी दिशा प्रदान की है। 'सामाजिक न्याय' और 'लालूवाद' के बीच कार्यरत सामाजिक बंधन ने दोनों को एक साथ मजबूती से बाँधकर उन्हें एक कर दिया है। सम्पूर्ण सामाजिक न्याय की अवधारणाओं के केन्द्रक पर प्रकाशस्तम्भ के रूप में खड़े समाजवादी विचारक लालू प्रसाद यादव 21 वीं शताब्दी में भारतीय राजनीति की एक धूरी और देश के 85% उन्हें डिगा ही सकता है। लिखित जाँच परीक्षा, मौखिक जाँच परीक्षा और सबसे ऊपर जाति जाँच परीक्षा के आधार पर योग्यता का प्रमाण पत्र देने वाले अन्यायी जाँचकर्ताओं और परीक्षकों के प्रमाण पत्र की भी वे परवाह नहीं करते। इस पुस्तक को लिखकर मैंने अपने बुद्धिजीवी धर्म का पालन किया है। न्यायी पाठक इसे जरूर स्वीकार करेंगे। सारे तथ्यों का मूल्यांकन मैंने निष्पक्ष रूप से किया है। नेल्शन मंडेला, मार्टिन लूथर, किंग जूनियर, म्यांमार की आंग शान सु की जैसे अन्य विश्वस्तरीय नेताओं की तरह लालू प्रसाद ने जेल की यातनाओं को झेलना कबूल किया पर 85% दलितों, पिछड़ों तथा अल्पसंख्यकों के भाग्य एवं भविष्य को गिरवी नहीं रखा। कुर्सी के लिए उन्होंने अपने सिद्धान्तों एवं वसूलों के साथ कोई नापाक समझौता भी नहीं किया। आज पूरा विश्व माननीय लालू प्रसाद यादव के विचारों के साथ-साथ उनके दृढ़ संकल्प एवं इच्छा शक्ति का कायल है। संविधान, लोकतंत्र तथा समाजवाद के प्रति समर्पित लालू जी के व्यक्तित्व से निकली सामाजिक न्याय की आँच ने देशी पूँजीवादी एवं शोषणकारी ताकतों के दिल दिमाग में खौफ पैदा कर दिया है।इस पुस्तक में, वर्ष 1990 के बाद देश में प्रारम्भ हुई आजादी की दूसरी लड़ाई के महानायक, इतिहास पुरुष लालू प्रसाद यादव के जीवन से जुड़े तमाम विशिष्ट पहलुओं पर प्रकाश डालने के प्रयास किए गए हैं।
चन्द्रजीत सिंह एम० ए० (अंग्रेजी) डीप-इन-एड० सेवानिवृत प्रधानाध्यापक जन्म स्थान : अतरवलिया, थाना मोहनियाँ (कैमूर) माता : स्व० अशतोरा देवी, पिता स्व० दीनानाथ सिंह अभिरूचि : स्वतंत्र लेखन एवं अध्यापन
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist