प्रत्येक व्यक्ति के लिए कर्म करना अनिवार्य है। कर्म से ही उत्थान या कल्याण होता है। सामाजिक व्यवस्था बनी रहती है। व्यक्ति समाज में रहता है और समाज के नियमानुसार रहते हुए ही वह सामाजिक कहलाता है।
आचार संहिता में हमारे ऋषि-मुनियों ने सामाजिकों के लिए कुछ नियमों, सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है, साथ ही निर्देश भी दिए हैं कि प्रत्येक गृहस्थ को उनका पालन करना चाहिए ताकि गृहस्थ जीवन सुव्यस्थित ढंग से चल सके, समाज की मर्यादाएं बनी रहें तथा जीवन सुखद रहे।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आचार संहिता का महत्त्व है। इस पुस्तक में भी आचरण संबंधी उन सभी बातों का विवरण दिया गया है जो एक गृहस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक है। जैसे बच्चों को माता-पिता के प्रति, पत्नी का पति के प्रति, शासकों का प्रजा के प्रति कैसा आचरण होना चाहिए।
इस प्रकार यह पुस्तक 'आचार संहिता' प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनुकरणीय व संग्रहणीय है। आशा है, पाठकों, प्रबुद्धजनों को हमारा यह प्रयास सराहनीय लगेगा।
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