प्रस्तावना
मैं अपने पुत्र पराग चौधरी के साथ इलाहाबाद में जब श्रीमा रत्नाकर जो पाठक से मिला तो श्रीमान डॉ० गुलाम रसूल जी का भी जिक हुवा था। श्री रत्नाकर जी ने मुझसे कहा कि आपने तो अपने गुरु जी क चरित्र लिखकर उसे एक प्रन्य का रूप दिया है। पराग के गुरु जी श्री गुलाम रसूल जी के चरित्र और उनकी रचनाओं के वर्णन का भी एक ग्रन्थ तैयार कीजिए, मैं उसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित करूँगा । इस कल्पना को लेकर मैंने परभणी आते हो काम शुरू कर दिया। रचनाओं के बारे में पराग ने बहुत परिथम किया। गुरु जी ने भी मेरे इस काम में बहुत सहायता की, उनका में आभारी हूँ। गुरु जी ने अनेक रचनाएँ जिनमें पाठ्यक्रम के राग और दूसरे प्रचलित राग और उनके साथ कुछ नये रागों में भी रचनाएँ प्रकाशन के लिए दी। जिससे इस पुस्तक को लिखने में बहुत आसानी हुई। उनकी रचनाएँ देखने पर कुछ लिखने का प्रयास किया है। श्रीमान् भातखण्डे जौ, पण्डित विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी, पण्डित विनायकराव जो पटवर्धन, बी० आर० देवधर जी, मास्टर कृष्णाराव जो, बाचार्य बृहस्पति जो, पं० रतनजनकर जी, पं० कुमार गंधर्व जी, डॉ० प्रभा अत्रे जी, पं० शंकरराव जी व्यास, पं० जगदीश नारायण जी पाठक, जगन्नाथ बुवा पुरोहित जी आदि बड़े-बड़े रचनाकारों ने संगीत जगत को बन्दिशों के विशाल संग्रह दिये हैं। इसी प्रयास का फल है कि यह छोटी-सी बन्दिशों की पुस्तक है जो श्री रत्नाकर जी पाठक प्रकाशित करने जा रहे हैं। गुरु जी प्रसिद्धि के पीछे नहीं हैं। इन पचास सालों में आपकी जितनी भी रचनाएँ की हैं वह अपने विद्यार्थियों के लाभ के लिये उपयोगी हैं। गुरु जी ने अपना परिचय कभी प्रकाशित नहीं करवाया। अपितु स्थानीय मराठी पत्र, पत्रिकाओ और इलाहाबाद से कुछ पाठ्यक्रम की पुस्तकों में आपकी बन्दि प्रकाशित हुई है. जो बहुत पसंद की गई है। आपकी बनाई हुई बस्दिों उनके शिष्य अधिकतर गाते रहते हैं और सूद गुलाम रसूल जी महफिल में अपनी बन्दिश ही गाते हैं। मेजबात भी रहते हैं। इतना ही नही आप खुद रचनाकार हैं इसलिये हर भाभीरचनाकार की अनेको बन्दिश आपको याद हैं। आप पं० रतनजनकर जी की बस्दिशें बहुत पसंद करते हैं और पं० भातखणी जी ने सैकड़ों भन्दिरों क्रमिक पुस्तक मालिका में द अपने वन्य कर प्रकाशित की है। इन बन्दिशों के बारे में विद्वानों के मत से इनके शब्दों, स्वरों में कुछ त्रुटियाँ रह गई है, ऐसा कहा जाता है, क्योंकि भातखण्डे जी ने इनको लिखने के लिये एक कमेटी बनाई थी। अगर इन बन्दिशों को शब्द रचना पर ही गौर किया जाये तो वह एक अलग ग्रन्थ बन जाय जो खोज का विषय है है। एक पूर्वी राग का बड़ा ख्याल है जिसकी शब्द रचना फारसी भाषा में है, देखिये क्रमिक दूसरी पृष्ठ २५८- लिए मन मस्त जाम-ए इश्कम् अज़ खूब खबर नदारम । गर सर बिखदर ई राह परवाह-ए सर नदारम ।। इस शेर के शब्दों में कुछ भूलें प्रकाशित हुई है। इसी प्रकार इसमें भाषाओं का एक विषय संशोधन के लिये हो सकता है। कुछ बन्दिशों में अनेक आवर्तन भी छूट गये हैं। जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता । काव्य के बारे में रसूल जी ग्रामीण ब्रज भाषा का परम्परागत संगीतिक रूप है जो पहले से चला आ रहा है। कारण उन्हें हर घराने की भिन्न-भिन्न रचनाएँ हस्तगत होने से इस प्रकार की रचनाएँ बड़ी आसानी से प्रयोग में लाते हैं। आपकी कविताएँ स्वरों के साथ-साथ गाने के अतिरिक्त पढ़ी भी जा सकती हैं। कुछ उदाहरण देखें, जिसमें आपने अनेक कहावतों का प्रयोग किया है जैसे,
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