भूमिका
वर्ष पुस्तक र्ष 2019 तक 8 पुस्तकें लिखने के बाद मैंने यह निर्णय लिया था कि अब पुस्तक लेखन से विराम लूँगा, परंतु कुछ घटनाओं ने एक ऐसी परिस्थिति पैदा की, जिसने मुझे संघ को और करीब से जानने के लिए विवश कर दिया। जाहिर है लगातार पढ़ने, सुनने और संघ को नजदीक से समझने का आग्रह इतना प्रबल रहा कि मुझे पुनः लेखन के लिए प्रेरित होना पड़ा। पुस्तक लिखने का संकल्प दरअसल, केवल बौद्धिक अभ्यास नहीं है, बल्कि जीवन के उन अनुभवों का पुनरावलोकन भी है, जिन्होंने मुझे संघ को देखने का न केवल एक नया नजरिया दिया, बल्कि उसे समग्रता से पेश करने का अवसर भी प्रदान किया। आज जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर यह पुस्तक आप सुधी पाठकों को समर्पित कर रहा हूँ तो कुछ स्मृतियाँ मन के किसी कोने में दस्तक दे रही हैं। संघ से मेरा पहला वास्ता अस्सी के दशक में पश्चिम बंगाल के आसनसोल की छोटी गलियों वाले मुहल्ले में पड़ा, जहाँ बाल्यकाल में मैं पहली बार शाखा में गया था। हालाँकि उस समय मुझे ये पता नहीं था कि शाखा या संघ क्या चीज है, परंतु वहाँ बड़ों के साथ बच्चों को अनुशासन में खेलते हुए देखना एक ऐसा अनुभव था, जो आज भी मेरी स्मृति में जीवंत है। दिल्ली विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन के दौरान संघ से एक बार फिर वास्ता पड़ा, जब मुझे कुछ महीनों के लिए 'संकल्प' छात्रावास में रहने का अवसर मिला। यहाँ उत्साही स्वयंसेवकों के साथ बिताए गए पल आज भी ताजा हैं। उस दौरान वे मुझे संघ गीत गाने के लिए विशेष रूप से प्रेरित करते थे और सामूहिक तरीके से राष्ट्रभक्ति के उन गीतों को गाकर मुझे एक अद्भुत संतोष और प्रेरणा मिलती थी, लेकिन संघ को लेकर हुई एक घटना ने उस समय मुझे झकझोरकर रख दिया, जब मैं एक प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान 'न्यूज 18' में कार्यरत था। दरअसल, मैंने हरिद्वार में गायत्री परिवार के एक यज्ञ में हिस्सा लिया था और भगवा धोती-कुरते में अपनी तसवीर फेसबुक पर पोस्ट कर दी थी। इसी तसवीर को देखकर मेरे एक एंकर सहकर्मी ने भरे न्यूजरूम में हिकारत भरी नजरों में मुझसे सवाल किया, 'क्या तुम भी संघी हो ?' उसका यह सवाल मेरे लिए किसी निजी आघात या तिरस्कार से कम नहीं था। यह क्षण मेरे लिए एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। अब तक मेरा जब भी संघ या स्वयंसेवकों से पाला पड़ा तो ऐसा कुछ भी नहीं दिखा, जो आपत्तिजनक हो। उस समय से मैंने संघ पर नियमित रूप से पढ़ना शुरू कर दिया। परंतु पुस्तक लेखन का विचार तब और प्रगाढ़ हो गया, जब नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद संघ पर विपक्ष का हमला और तीखा होता चला गया। जाहिर है संघ के प्रति मेरी दिलचस्पी उन शक्तियों की वजह से पैदा हुई, जो लगातार संघ को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास करती रहती हैं। एक पत्रकार होने के नाते मेरे सामने भी निरंतर कई प्रश्न खड़े होते रहे। इनमें एक सवाल जो सबसे महत्त्वपूर्ण था, वह था कि आखिर इतनी सारी आलोचनाओं के बावजूद संघ 100 वर्षों से क्यों और कैसे टिका हुआ है? एक जागरूक नागरिक होने के नाते मेरी जिज्ञासा निरंतर बढ़ती रही। यही जिज्ञासा मुझे गहराई तक ले गई और मैंने संघ के बारे में अधिक जानने के लिए व्यवस्थित शोध आरंभ किया। संघ से जुड़ी न जाने कितनी पुस्तकें खरीदीं और पढ़ीं। यह भी बताना मुश्किल है कि मैंने कितने घंटे के ऑडियो-वीडियो सुने देखे हैं। इसके अलावा संघ से जुड़े कई संगठनों के बीच जाने का प्रयास किया, जमीनी स्तर पर अनगिनत स्वयंसेवकों से संवाद किया। इस परिश्रम से जो निचोड़ निकला, उसी का परिणाम यह पुस्तक है।
लेखक परिचय
डॉ. हरीश चंद्र बर्णवाल न्यूज इंडस्ट्री का एक जाना-पहचाना नाम है। लेखक न्यूज 18 इंडिया, ए.बी.पी. न्यूज, एन.डी.टी.वी., जी न्यूज, डी.डी. न्यूज के लिए कार्य कर चुके हैं। इस समय उनका यूट्यूब चैनल राजनीतिक विश्लेषण के क्षेत्र में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वर्तमान में ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट के तौर पर कार्यरत हैं। उनकी अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें 'टेलीविजन की भाषा', 'सच कहता हूँ', 'मोदी सूत्र', 'मोदी नीति' एवं 'लॉर्ड ऑफ रिकॉर्ड्स' शामिल हैं। इनके अलावा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के साथ मिलकर एक vBook भी तैयार कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. हरीश ने हाल के समय में 100 से अधिक गाने-भजन भी प्रोड्यूस किए हैं। लेखक को भारत सरकार के प्रतिष्ठित 'भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार' और 'हिंदी अकादमी सम्मान' के अलावा पत्रकारिता और साहित्य से जुड़े कई बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist