भूमिका
सांस्कृतिक संपत्ति (सपदा) के संबंध में संरक्षण विज्ञान, वैज्ञानिक जांच के उपयोग के माध्यम से कला, वास्तुकला, तकनीकी कला इतिहास और अन्य सांस्कृतिक कार्यों के संरक्षण का अंतः विषय अध्ययन है। अनुसंधान के सामान्य क्षेत्रों में कलात्मक और ऐतिहासिक कार्यों की तकनीक और संरचना शामिल है। दूसरे शब्दों में, वे सामग्री और तकनीकें जिनसे सांस्कृतिक, कलात्मक और ऐतिहासिक वस्तुएं बनाई जाती है, सांस्कृतिक संपदा कहलाता है। सांस्कृतिक विरासत (संपदा) के संबंध में संरक्षण विज्ञान की तीन व्यापक श्रेणियां है: 1) कलाकारों द्वारा उपयोग की जाने वाली सामग्री और तकनीकों को समझना 2) गिरावट के कारणों का अध्ययन और 3) परीक्षा और उपचार के लिए विधियों तकनीकों और सामग्रियों में सुधार करना। संरक्षण विज्ञान में रसायन विज्ञान, भौतिकी, जीव विज्ञान, इंजीनियरिंग साथ ही कला इतिहास और नृविज्ञान के पहलू शामिल हैं। गेटी कंजर्वेशन इंस्टीट्यूट जैसे संस्थान संरक्षण विज्ञान अनुसंधान के परिणामों और साथ ही क्षेत्र में हाल की खोजों के लिए उपयोग किए जाने वाले दोनों उपकरणों से संबंधित जानकारी को प्रकाशित और प्रसारित करने में विशेषज्ञता रखते हैं। प्रभावी संरक्षण हेतु आवश्यक है कि सांस्कृतिक संपदाओं के संरक्षण से पूर्व संरक्षण विज्ञान एवं वैज्ञानिक विश्लेषण को अध्ययन कर संरक्षण की बारीकियों को भलीभांति समझे। सांस्कृतिक संपदाओं के वैज्ञानिक विश्लेषण से पहले, सभी प्रासंगिक ऐतिहासिक और वर्तमान दस्तावेजों को इकट्ठा करने के अलावा, वस्तु, विरासत स्थल या कलाकृति का विस्तृत दृश्य मूल्यांकन आवश्यक है। गैर-आक्रामक तरीके से वर्तमान स्थिति का निदान कर वर्तमान स्थिति का आकलन करने और कलाकृतियों और वस्तुओं के भविष्य में बिगड़ने के संभावित जोखिम के साथ, यह निर्धारित करने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन आवश्यक हो सकता है कि क्या स्वयं संरक्षकों के लिए जोखिम है। उदाहरण के लिए चित्रों में उपयोग किए जाने वाले कुछ पिगमेंट में अत्यधिक विषैले तत्व जैसे आर्सेनिक या लेड होते हैं और यह उनके साथ काम करने वालों के लिए खतरनाक हो सकते हैं। वैकल्पिक रूप से पिछले बहाली प्रयासों में ऐसे रसायन शामिल हो सकते हैं जो अब लंबे समय तक जोखिम के साथ खतरनाक दुष्प्रभाव के लिए जाने जाते हैं। इन मामलों में, संरक्षण विज्ञान इन खतरों की प्रकृति के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य के जोखिम को रोकने के लिए वर्तमान समाधानों को प्रकट कर सकता है। सांस्कृतिक विरासत वस्तुओं को बनाने के लिए प्रयुक्त सामग्री के आंतरिक रासायनिक और भौतिक गुणों में अनुसंधान संरक्षण विज्ञान के अध्ययन का एक बड़ा हिस्सा है। सामग्री विज्ञान, बहाली और संरक्षण के व्यापक क्षेत्र के संयोजन के साथ अब आधुनिक संरक्षण के रूप में मान्यता प्राप्त है। विश्लेषणात्मक तकनीकों और उपकरणों का उपयोग करते हुए, संरक्षण वैज्ञानिक यह निर्धारित करने में सक्षम हैं कि किसी विशेष वस्तु या कलाकृति को क्या बनाता है। बदले में यह ज्ञान बताता है कि पर्यावरणीय प्रभावों और उस सामग्री के अंतर्निहित लक्षणों दोनों के कारण गिरावट कैसे हो सकती है। उस सामग्री की वर्तमान स्थिति को बनाए रखने या लम्बा करने के लिए आवश्यक वातावरण और किन उपचारों का अध्ययन की जा रही वस्तुओं की सामग्री पर कम से कम प्रतिक्रिया और प्रभाव पड़ेगा.
पुस्तक परिचय
प्राचीन सास्कृतिक धरोहरों, स्मारकों एवं कलाकृत्तियों की दृष्टि से भारत विश्व के सम्पन्नतम राष्ट्रों में अग्रणी है। देश के इस विपुल पुरासंपदा को भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखना हमारा गुरुतर दायित्व है। दायित्व के निर्वाहन के लिए सांस्कृतिक विरासत की ज्ञान, उनके विघटन के कारण तथा ह्रास से बचने के उपाय जी जानकारी आवश्यक है। प्राकृतिक कारणों के इतर मानव कृत्य भी सांस्कृतिक संपदाओं को क्षति पहुंचाते है। सांस्कृतिक संपदाओं, प्राचीन भारतीय स्मारकों एवं पौराणिक कलाकृतियों के संरक्षण तथा सरक्षण की विभिन्न तकनीकीयों व वैज्ञानिक रखरखाव के बारे में व्याख्या करने वाली संकलनयुक्त राजभाषा हिंदी में लिखा जाने वाला यह प्रथम ग्रन्थ है। प्रस्तुत ग्रन्थ में फलक चित्र विषय की प्रासंगिकता के अनुरूप है। प्रस्तुत ग्रंथ का उद्देश्य प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के रूप में प्राचीन स्मारकों, सांस्कृतिक सम्पदाओं के वैज्ञानिक संरक्षण एवं उत्तम रख-रखाव की विभिन्न तकनिकीयों से न केवल प्रबुद्ध नागरिकों, छात्र-छात्राओं, संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रहे विशेषज्ञों एवं प्रशिक्षणार्थियों को अवगत कराना है अपितु इसके माध्यम से उनकी भागीदारी भी सुनिश्चित करना है। विश्व व्यापी विकसित संचार व्यवस्था ने आज विश्व के लोगों को आपस में इतना निकट ला दिया है कि समूचा विश्व एक परिवार अर्थात वसुधैव कुटुम्बकम्' लगने लगा है। सांस्कृतिक विरासतों की दृष्टि से देश की सीमाएं धूमिल पड़ गयी है और उनको किसी देश विशेष की ही विरासत न मानकर समूचे विश्व की धरोहर माना जाने लगा है।
लेखक परिचय
डॉ. संजय प्रसाद गुप्ता का चयन संघ लोक सेवा आयोग, नई दिल्ली द्वारा किये जाने के पश्चात पदस्थापना संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन संस्थान राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधानशाला, लखनऊ में वैज्ञानिक (समूह 'क' राजपत्रित) के नियमित पद पर 22 जनवरी 2018 को की गयी। इन्होनें इस संस्था में सेवारत होते हुए सांस्कृतिक सम्पदाओं के संरक्षण हेतु शोध कार्य कर अपने शोध कार्यों का प्रकाशन 11 प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय शोध जर्नल में किया है। वैज्ञानिक के रूप में सेवारत होने से पूर्व डॉ. गुप्ता कर्मचारी चयन आयोग, नई दिल्ली से चयनोपरांत, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के ही अधीन संस्थान, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में सहायक पुरातत्व रसायनज्ञ के पद पर 16 नवबर 2004 से 19 जनवरी 2018 तक सेवारत होते हुए देश के विभिन्न प्रदेशों में अपनी सेवायें प्रदान की हैं तथा राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों के वैज्ञानिक संरक्षण हेतु महत्वपूर्ण विषय पर शोध कार्य किया। शोध कार्य पूर्ण होने पर डॉ. गुप्ता को मैट्स विश्वविद्यालय, रायपुर ने 'नावेल केमिकल अप्रोचेस फॉर कन्सेर्वेशन अगेस्ट बायो-डिटेरियोरेशन आफ आउटडोर कल्युरल हेरिटेज ऑफ छत्तीसगढ़' शीर्षक पर 2015 में डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की है। डॉ गुप्ता ने न सिर्फ आगरा का ताजमहल, लालकिला, फतेहपुर सिकरी जैसे विश्वदाय स्मारकों के वैज्ञानिक संरक्षण का कार्य पूर्ण किया है अपितु केदारनाथ मंदिर सहित देश के सैकड़ों केन्द्रीय संरक्षित स्मारकों की वैज्ञानिक उपचार तथा परिरक्षण का कार्य उत्कृष्टता के साथ पूर्ण किया है
अतुल कुमार यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिला के एक छोटे से गाँव में 05/06/1954 को हुआ। प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव से प्राप्त करने के पश्चात माध्यमिक तथा उच्चतर शिक्षा मध्य प्रदेश से प्राप्त की है। इसके पश्चात इन्होंने रसायन शास्त्र विषय में परास्नातक की डिग्री नध्य प्रदेश के सागर विश्वविद्यालय से प्राप्त की है। परारनातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात श्री अतुल कुमार यादव नवम्बर 1976 से जुलाई 1979 तक मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन, संचनालय, पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग भोपाल में कैमिस्ट के पद पर सेवारत रहे है। संघ लाक सेवा आयोग, नई दिल्ली से चयानोपरांत श्री यादव जुलाई 1979 से जून 2014 तक वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन संस्थान, राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसन्धानशाला, लखनऊ में अपनी सेवाये प्रदान की हैं। सेवानिवृत्ति पश्चात श्री यादव नोएडा, उत्तर प्रदेश में स्थित ड्यू पॉइंट आर्ट कांसेर्वेटर, सेंटर फॉर कंसेर्वेशन सोल्यूशन में कंसल्टेंट के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं श्री अतुल कुमार यादव को पेटिंग्स, लकड़ी के कलात्मक वस्तु, धातु के कला वस्तु, पौराणिक कागज सहित पत्थर के कलाकृति में संरक्षण की विशेषज्ञता हासिल है। इन्होंने न सिर्फ भारत में अपितु अनेकों देशों जैसे पेरिस, माले, मालदीप, भूटान सहित अनेकों देशों में विभिन्न प्रकार के कलात्मक वस्तुओं पर न सिर्फ शोध कार्य किया है बल्कि उक्त कलात्मक वस्तुओं के संरक्षण का कार्य उत्कृष्टता के साथ सम्पन्न की है.
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist