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सूक्तियां या उक्तियां महापुरुषों और विद्वानों की अमृत वाणी मानी जाती हैं, लेकिन लोकोक्तियां होती तो अमृत वाणी ही हैं, परंतु ये किसी महापुरुष या विद्वान के कहे वचन नहीं होते, वरन् लोकोक्तियां लोक-अनुभव से बनती हैं। किसी समाज में जो कुछ अपने लंबे अनुभव से सीखा गया है, उसे एक वाक्य में बांध दिया है। ऐसे वाक्यों को ही लोकोक्ति कहते हैं। इसे कहावत, जनश्रुति आदि भी कहते हैं। आम बोलचाल की भाषा में कहें तो बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुंहचढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है, जो न केवल प्रेरक होता है, बल्कि शिक्षाप्रद भी कहा जाता है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में कहें तो लोकोक्तियां आम जनमानस द्वारा स्थानीय बोलियों में हर दिन की परिस्थितियों एवं संदर्भों से उपजे ऐसे पद एवं वाक्य होते हैं, जो किसी ख़ास समूह, उम्र, वर्ग या क्षेत्रीय दायरे में प्रयोग किया जाता है। इसमें स्थान विशेष के भूगोल, संस्कृति, भाषाओं का मिश्रण इत्यादि की झलक मिलती है। कई लोग मुहावरों को भी लोकोक्ति ही मान बैठते हैं, लेकिन इन दोनों में बड़ा अंतर है। दरअसल मुहावरा वाक्यांश है और इसको स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता, जबकि लोकोक्ति संपूर्ण वाक्य है और इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है। जैसे 'होश उड़ जाना' मुहावरा है और 'बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी' लोकोक्ति है।
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