प्रा० डॉ० ऐनूर शब्बीर शेख द्वारा लिखित 'सार्थक लिपि : देवनागरी एक अभिनव कृति है। प्रस्तुत ग्रंथ लेखन में लिपि विज्ञान, भारत की प्राचीन लिपियाँ और देवनागरी के संदर्भ में समग्र विवरण प्रस्तुत है।
स्वर्गीय आचार्य विनोबा भावे जी ने 'भूदान यज्ञ' अभियान के साथ देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार का संदेश अपने कार्यकताओं को दिया था।
विनोबा जी की तीव्र इच्छा थी कि अन्य भारतीय लिपियों के साथ नागरी भी चले। उनकी इस भूमिका के पीछे अत्यंत आत्मीय सद्भाव यही था कि हम अन्य भाषाओं को उनकी अपनी लिपियों को अबाधित रखते हुए सहलिपि के रूप में देवनागरी लिपि के माध्यम से अन्य भाषाओं को आत्मसाथ कर सके।
देवनागरी लिपि का उद्भव प्राचीन लिपि ब्राम्ही से हुआ है। भारतीय एवं एशिया खंड के समस्त देशों की लिपियों का आधार ब्राम्ही ही थी। भारतीय संविधान का दर्जा प्राप्त है।
देवनागरी लिपि के अनुसार देवनागरी लिपि को राजलिपि एवं राष्ट्रलिपि का दर्जा प्राप्त है। देवनागरी लिपि की सरलता, सुगमता, सुलभता, सर्वसमावेशकता एवं वैज्ञानिकता के कारण आज विश्वमान्य हो गई है। इस लिपि में प्रत्येक ध्वनि एवं उच्चारण के लिए चिह्न है। अपनी परिपूर्णता, शुद्धता, सुस्पष्ठयता व गत्यात्मकता के कारण देवनागरी लिपि अन्य भाषाओं के लिए सशक्त माध्यम के रूप में निःसंदेह उभरी है। वर्तमान में, भारतीय संविधान के अष्ट अनुसूची में सम्मिलित 22 भारतीय भाषाओं में से 10 भाषाओं की लिपि "देवनागरी" है।
आधुनिक वैश्विकरण के इस युग में देवनागरी लिपि का प्रयोग कंम्प्यूटर, इंटरनेट तथा तकनीकी क्षेत्रों में बड़ी सुलभता के साथ हो रहा है।
प्रस्तुत कृति के प्रथम अध्याय में लिपि के उद्भव और विकास का विवेचन है। भारत में लिपि विज्ञान के इतिहास का समग्र अध्ययन द्वितीय अध्याय में पाया जाता है। तृतीय अध्याय के अंतिम भारत की प्राचीन लिपियों को विवेचित किया गया है तथा चतुर्थ अध्याय में देवनागरी लिपि के उद्भव और विकास को प्रस्तुत किया गया है।
प्रस्तुत कृति देवनागरी लिपि के अध्यताओं की दृष्टि से एक उत्कृष्ट कृति है। यह कृति लिपि एवं देवनागरी लिपि के प्रति अध्ययन की दृष्टि से पाठकों को निश्चित प्रेरित करेगी। शोधार्थियों के लिए भी यह कृति पथ प्रदर्शक के रूप में निःसंदेह सहायक सिद्ध होगी।
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