भगवपद आदि शंकराचार्य प्रणीत स्तोत्र साहित्य में सौंदर्य लहरी परम गृह्यम एवं रहस्यमयी तत्त्वों को प्रकाशित करने में अपना सर्व मूधर्न्य स्थान रखती है! श्रीविद्द्योपासना के रहस्यों को प्रदर्शित करने में साधक समुदाय में श्रुति के तुल्य इसका प्रामाण्य माना जाता है!
यह स्तोत्र -रत्न दो भागों में विभक्त है ! पहले उन्मेष में ४१ तथा दूसरे उन्मेष में तान्त्रिक साधना के रहस्यों का वर्णन बड़े ही सुन्दर ढंग से किया गया हैं तथा दूसरे उन्मेष में भगवती के नख शिख पर्यन्त का अपूर्व वर्णन किया गया है१ स्तोत्र शैली मनोहारिणी, प्रसादयुक्त कोमल कांत पदावली वाली तथा काव्यदोषों से सर्वथा रहित है१ साहित्य के सभी गन इसमीन विद्द्यमान है!
पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज की प्रेरणा से इस स्तोत्र को तीन भाषाओँ तथा श्लोक से सम्बंधित यंत्रों, मन्त्रों तथा साधना विधि के साथ प्रकाशित कर साधकों के सम्मुख इस उद्देश्य से प्रस्तुत किया जा रहा है की या ग्रन्थ साधकों के आध्यात्मिक उन्नति में पथ प्रदशक बने एवं साधकगण श्रीविद्योपासना के गूढ़ रहस्यों को जानकार इहलोक में ऐश्वर्यवान होकर लोक कल्याण में तत्पर हों तथा जीवन्मुक्ति का लाभ भी अर्जित करें !
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