प्रस्तुत पुस्तक ""वैदिक एवं पौराणिक साहित्य में विज्ञान (कुछ महत्वपूर्ण प्रसंग)"" हमारे देश के विविध वैदिक और पौराणिक साहित्यों में उपलब्ध कुछ विशिष्ट मंत्रों और श्लोकों का संग्रह है जो आज के परिप्रेक्ष्य में वैज्ञानिक समुदाय के लिए पठन और चिंतन-मनन के लिए प्रेरित करने वाला है। यह सब इस बात का प्रमाण है कि हमारा अतीत कितना समृद्ध और प्रतिभाशाली रहा है।
इस पुस्तक को तैयार करने का लक्ष्य हमारे वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और संस्कृत साहित्य से इतर शिक्षाविदों हेतु अध्ययन और चिंतन के लिए है, जो यह बतलाता है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने जनहित में क्या-क्या और किस-किस प्रकार के कार्य किये हैं? उन्होंने सम्पूर्ण धरा पर विद्यमान जितनी भी वनस्पतियाँ मिल सकीं, उनका अध्ययन और तर्कसंगत नामकरण तथा उनकी उपयोगिता भी लिपिबद्ध की।
उनके द्वारा रोगों का निदान, स्वस्थ रहने की जीवनचर्या आदि का भी वर्णन किया गया है।
इस पुस्तक में एक स्थान पर वायु का वर्णन किया गया है जिसमें बतलाया गया है कि वायु दो प्रकार के होते हैं और इन्हें देवदूत भी कहते हैं। दो प्रकार की वायु में पहला समुद्र के ऊपर चलता है और दूसरा पृथ्वी के ऊपर। समुद्र का वायु बलदाता है, जबकि पृथ्वी का वायु हमारे विकारों को अपने साथ ले जाता है। इस प्रकार के अनेक मंत्र हमारे वैदिक और पौराणिक साहित्य में मिल जायेंगे।
हमारे शास्त्रों में इस प्रकार के अनेक वर्णन मिल जायेंगे जिन्हें एक साथ प्रस्तुत करना असंभव है। जिन्हें इस तरह के संदर्भों में रुचि हो और विस्तार से पढ़ना चाहते हों, उन्हें किसी शास्त्र के जानकार व्यक्ति से मिलकर पढ़ने और समझने का प्रयास करना चाहिए।
डॉ. दया शंकर त्रिपाठी
प्राथमिक शिक्षा : सेन्ट्रल हिन्दू (ब्वायज) स्कूल, कमच्छा, वाराणसी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संबद्ध)
उच्च शिक्षा: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक (1978), स्नातकोत्तर (1981) तथा पीएच. डी. (1988)
शोध अनुभव: 16 वर्ष से अधिक, शिक्षण अनुभव: 20 वर्ष से अधिक
पुरस्कार एवं सम्मान
1. उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा बीरबल साहनी पुरस्कार 2016 से सम्मानित ।
2. 3.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा होमी जहांगीर भाभा पुरस्कार 2020 से सम्मानित।
3. विज्ञान साहित्य रत्न (राष्ट्रीय सम्मानोपाधि) 2018, अखिल भारतीय काव्य, कथा एवं कला परिषद, इन्दौर
4. राजभाषा पुरस्कार, राजभाषा प्रकोष्ठ, का. हि. वि. वि. द्वारा वर्ष-2018 के लिए राजभाषा हिन्दी में उत्कृष्ट कार्य हेतु ।
पुरस्कार/पद/ छात्रवृत्तियाँ (अनुसंधान काल के अन्तर्गत)
1. रिसर्च फेलो (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) अप्रैल 1983 से मार्च 1985 तक, 2. रिसर्च असिस्टेन्ट एवं सीनियर रिसर्च असिस्टेंट (उ.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, लखनऊ) क्रमशः अगस्त 1985 से अगस्त 1987 एवं 1987 से 1988 तक, 3. सीनियर रिसर्च फेलो (वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली) फरवरी 1988 से जुलाई 1990 तक, 4. रिसर्च एसोशिएट (वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली) जुलाई 1990 से जुलाई 1995 तक, 5. परियोजना अधिकारी, प्रौद्योगिकी संस्थान, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली), अगस्त 2002 से मार्च 2003 तक, 6. प्राचार्य, वी एम डिग्री कॉलेज, सोनभद्र, जनवरी 2005 से जून 2007 तक
प्रकाशन
1. राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय अनुसंधान पत्रिकाओं में 23 से अधिक, 2. राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों/संगोष्ठियों में सहभागिता तथा संक्षिप्त प्रकाशन 40, 3. लोकप्रिय वैज्ञानिक लेख - 100 से अधिक, 4. पुस्तकों व पत्रिकाओं का लेखन व सम्पादन कार्य 25 वर्षों से अधिक, 5. प्रकाशित पुस्तकें-11, अनुवादित-6, पुनरीक्षण-3, पत्रिका सम्पादन-21
शोध उपलब्धियाँ
1. अनुसंधान काल के अन्तर्गत एक नयी सब्जी प्रजाति 'सोलेनम मैक्रोकार्पान' को प्रथम बार भारत (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) में उत्पादन (Introduced) कर अनुसंधान कार्य किया। साथ ही, सोलेनम वंश के लगभग दस जातियों/प्रजातियों पर भी अनुसंधान कार्य किया।
2. भोपाल गैस दुर्घटना जिसमें मिथाइल आइसोसाइनेट नाम की जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, का वहाँ के आसपास की वनस्पतियों पर वाह्य तथा अनुवांशिक प्रभाव का प्रथम बार अध्ययन किया जिसकी राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा हुई।
वैदिक विज्ञान शास्वत है। अखिल ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी है और हो सकता है, वह हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा पहले किसी न किसी रूप में श्रुति एवं ज्ञान परम्परा में लिपिबद्ध कर मानव कल्याण हेतु प्रस्तुत किया गया है।
वैदिक विज्ञान और आधुनिक विज्ञान के मध्य समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से पिछले कुछ वर्षों से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में वैदिक विज्ञान केन्द्र की स्थापना की योजना बन रही थी। इसका साकार रूप लेने के लिए वर्ष 2018 में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा दिनांक 18 सितंबर 2018 को इसका शिलान्यास और वर्ष 2020 में माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा 16 फरवरी को वैदिक विज्ञान केन्द्र के चार मंजिली भवन का लोकार्पण किया गया।
वैदिक विज्ञान केन्द्र की स्थापना का मुख्य उद्देश्य हमारे वेदों, उपवेदों, वेदांगों एवं पौराणिक ग्रंथों में छुपी हुई वैज्ञानिक अवधारणाओं, सिद्धांतों, मंत्रों और रहस्यों का अन्वेषण व अनुसंधान कर विश्व पटल पर प्रस्तुत करना है। मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि यह केन्द्र उत्तर प्रदेश शासन के धर्मार्थ कार्य विभाग द्वारा वित्तीय अनुदान से निर्मित हुआ है।
प्रस्तुत पुस्तक वैदिक एवं पौराणिक साहित्य में विज्ञान (कुछ महत्वपूर्ण प्रसंग) वैदिक विज्ञान केन्द्र द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की श्रृंखला में पंचम प्रकाशन है। इस पुस्तक के लेखक डॉ. दया शंकर त्रिपाठी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वनस्पति विज्ञान में स्नातकोत्तर और पीएच.डी. उपाधियाँ प्राप्त की हैं और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली से सीनियर रिसर्च फेलो व रिसर्च एसोसिएट रह चुके हैं।
डॉ. त्रिपाठी संस्कृत साहित्य में बचपन से ही रुचि लेते रहे हैं जिसका परिणाम इस पुस्तक के रूप में सामने आया है।
प्रस्तुत पुस्तक 'वैदिक एवं पौराणिक साहित्य में विज्ञान (कुछ महत्वपूर्ण प्रसंग) हमारे देश के विविध वैदिक और पौराणिक साहित्यों में उपलब्ध कुछ विशिष्ट मंत्रों और श्लोकों का संग्रह है जो आज के परिप्रेक्ष्य में वैज्ञानिक समुदाय के लिए पठन और चिंतन-मनन के लिए प्रेरित करने वाला है। यह सब इस बात का प्रमाण है कि हमारा अतीत कितना समृद्ध और प्रतिभाशाली रहा है।
इस पुस्तक को तैयार करने का लक्ष्य हमारे वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और संस्कृत साहित्य से इतर शिक्षाविदों हेतु अध्ययन और चिंतन के लिए है, जो यह बतलाता है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने जनहित में क्या-क्या और किस-किस प्रकार के कार्य किये हैं? उन्होंने सम्पूर्ण धरा पर विद्यमान जितनी भी वनस्पतियाँ मिल सकीं, उनका अध्ययन और तर्कसंगत नामकरण तथा उनकी उपयोगिता भी लिपिबद्ध की। उनके द्वारा रोगों का निदान, स्वस्थ रहने की जीवनचर्या आदि का भी वर्णन किया गया है।
इनके साथ ही हमारे ऋषियों महर्षियों ने मानव शरीर का विधिवत अध्ययन कर इस प्रकार से वर्णन किया है कि आज का आधुनिक विज्ञान भी उन्हें पढ़कर हतप्रभ हो जाता है और उन्हें गलत भी सिद्ध नहीं कर सकता। यह पढ़कर आश्चर्य भी होता है कि उन्होंने शरीर में हड्डियों की संख्या, नाड़ियों और धमनियों की संख्या आदि के सटीक विवरण प्रस्तुत किये हैं। हमारे ऋषियों द्वारा पृथ्वी पर ऋतुओं, वर्षा, पंचमहाभूत आदि का विस्तृत विवरण दिया गया है, जो मंत्रों और श्लोकों के माध्यम से लिपिबद्ध हैं।
दूसरी तरफ हमारे वेदों और पौराणिक ग्रंथों में अखिल ब्रह्मांड, सूर्य, पृथ्वी, उनका घूर्णन, भ्रमण और ग्रहण आदि का भी वर्णन मिलता है। ऋग्वेद में पृथ्वी के आकार का वर्णन दिया गया है। उसमें लिखा है कि पृथ्वी गोल है तथा सूर्य के आकर्षण पर ठहरी हुई है। शतपथ में जो परिमंडल रूप है वह भी पृथ्वी के गोलाकार आकृति का प्रतीक है।
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