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शाकाहार (निरोगी काया का आधार)- Shakahaar: Nirogi Kaya Ka Aadhar

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Specifications
Publisher: Rajasthan Patrika
Author Sudhir Saxena
Language: Hindi
Pages: 120 (With B/W Illustrations)
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 140 gm
Edition: 2013
ISBN: 9789380271460
HBY818
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Book Description

प्रस्तावना

विश्वभर के डॉक्टरों ने यह साबित कर दिया है कि शाकाहारी भोजन ही मनुष्य के उत्तम स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। गैंड़ा, हाथी, घोड़ा, ऊंट जैसे ताकतवर जानवर भी शुद्ध शाकाहारी हैं और इससे यह साबित होता है कि शाकाहारी भोजन संतुलित, पोषण से भरपूर और स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है।

मनुष्य की संरचना की दृष्टि से भी शाकाहारी भोजन हमारा स्वाभाविक भोजन है। गाय, बंदर, घोड़े और मनुष्य इन सबके दांत सपाट बने हुए हैं, जिनसे शाकाहारी भोजन चबाने में सुगमता रहती हैं, जबकि मांसाहारी जानवरों के लंबी जीभ होती है एवं नुकीले दांत होते हैं, जिनसे वे मांस को खा सकते हैं। उनकी आंतें भी उनके शरीर की लंबाई से दुगुनी या तिगुनी होती हैं जबकि शाकाहारी जानवरों की एवं मनुष्य की आंत उनके शरीर की लंबाई से सात गुनी होती है। अर्थात्, मनुष्य शरीर की रचना शाकाहारी भोजन के लिए ही बनाई गई हैं, न कि मांसाहार के लिए।

वैज्ञानिक शोध कार्यों से भी यह तथ्य सामने आ चुका है कि फल-फूल, सब्जी, विभिन्न प्रकार की दालें, बीज एवं दूध से बने पदार्थों आदि से मिलकर बना हुआ संतुलित आहार आंत में पाचन के दौरान कोई भी जहरीले तत्त्व नहीं पैदा करता। जबकि मांसाहार आंत में पाचन के दौरान अतिरिक्त रसायन पैदा करता है और हमारा शरीर उन जहरीले तत्त्वों को पूर्णतया निकालने में सामर्थ्यवान नहीं हैं। इंसान के लीवर और आंत में मांस को पचाने के लिए उत्प्रेरकों का नामोनिशान नहीं है। नतीजा यह होता है कि उच्च रक्तचाप, दिल व गुर्दे आदि की बीमारी मांसाहारियों को जल्दी आक्रांत करती है। इसलिए यह नितांत आवश्यक है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से हम पूर्णतया शाकाहारी ही रहें। क्योंकि शाकाहारी भोजन ही निरोगी काया प्रदान करनेवाला है।

मांसाहार प्रधान समाज और परिवार में रह कर भी संसार के कई महान् बुद्धिजीवी, उदाहरणार्थ अरस्तू, प्लेटो, लियोनार्दो दविंची, शेक्सपीयर, डार्विन, पी.एच. हक्सले, इमर्सन, आइन्सटीन, जार्ज बर्नार्ड शा, एच.जी. वेल्स, सर जूलियन हक्सले, लियो टॉलस्टॉय, शैली, रूसो आदि सभी शाकाहारी ही थे। वैज्ञानिक तथ्यों से प्रेरित होकर अधिकांश पश्चिमी देशों में शाकाहार अपनाने की होड़ मच गई है। ताजा आंकड़ों के अनुसार अब अमरीका में डेढ़ करोड़ व्यक्ति शाकाहारी हैं।

दस वर्ष पूर्व नीदरलैंड की 1.5% आबादी शाकाहारी थी जबकि वर्तमान में वहां 5% व्यक्ति शाकाहारी हैं। सुप्रसिद्ध गैलप मतगणना के अनुसार इंग्लैंड में प्रति सप्ताह लगभग 3000 व्यक्ति शाकाहारी बन रहे हैं।

पश्चिम के लोग अपने आपको शाकाहारी कहने में विश्व के प्रगतिशील व्यक्ति होने का गर्व महसूस करते हैं। दूसरी ओर गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, भगवान् महावीर, गुरुनानक एवं महात्मा गांधी सरीखे सैकड़ों संतों एवं मनीषियों की सीख को दरकिनार करते हुए भारत के करोड़ों लोग देव भोजन और राक्षसी भोजन में फ़र्क नहीं कर पा रहे हैं।

देव भोजन और राक्षसी भोजन की व्याख्या करते हुए महान् संत रामसुख दास ने कहा है- 'आहार के आधार पर दुनिया में दो तरह के मनुष्य हैं, एक शाकाहारी और दूसरे लाशाहारी। आप कहेंगे कि मनुष्य भला क्यों लाशाहारी होने लगा? अब आप ही बताएं कि मांस को मनुष्य का निवाला बनने के पहले क्या बनना पड़ता है? किसी जानवर को मारकर ही तो मांस की प्राप्ति होती है। मांस किसी जानवर की लाश का ही एक भाग अथवा पूरा शरीर होता है, उसे किसी भी तरह निवाला बनाकर ग्रहण करने वाला लाशाहारी ही तो हुआ ना।'

बात कड़वी है, लेकिन गंभीरता से विचार करने योग्य है। विचार करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अपने ग़लत आहार से हम न केवल अपना शरीर बिगाड़ लेते हैं बल्कि अगली पीढ़ी को वंशानुगत रोगों का पुलिंदा बांध कर दे जाते हैं। लाइलाज वंशानुगत रोगों की पीड़ा भोगने वाले को यह पता भी नहीं होता है कि वह किसकी करनी का फल भोग रहा है? इस पुस्तक में ख़ासकर शाकाहार से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण तथ्यों को अत्यंत सरल और सहज रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो हर व्यक्ति के जानने योग्य है।

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