इस कलिकाल में सुनने को बहुत मिलता है कि महात्मा कम हो गए हैं, साधक विरल हो गए हैं और अच्छे व्यक्ति लुप्त होते जा रहे हैं। सच्चे सनातन धर्म अनुयायी कोई बचे ही नहीं है जो आधुनिकता के चपेट में न आ गए हो, चाहे किसी भी सीमा तक हो। पर यह सारी बातें श्रीमन्निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरुजी के प्रसंग में आते ही बहुत गलत लगने लगती हैं।
मुझे उनके कृत्यों को पढ़ने का और समीक्षा करने का शुभअवसर व सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पुराण, इतिहास, तन्त्रागम आदि अनेकानेक शास्त्रों का ज्ञान उनकी भाषा में स्थान स्थान पर झलकता ही रहता है। उनकी कृतियाँ आध्यात्मिकता, भक्ति, साहित्यिकता व उत्कृष्ट भाषापटिमा का अनोखा संगम हैं। श्रीभागवतानंद गुरुजी का यह भक्ति काव्य पारायण योग्य ग्रन्थ है जो भक्तों की सभी कामनाओं को पूर्ण कर सकता है क्योंकि यह न केवल आध्यात्मिक विज्ञान से पूर्ण हुआ है बल्कि वह उस साहित्यिक रसानन्द से कूट-कूट कर भरा हुआ है जिसकी प्रशंसा हमें साहित्य दर्पण आदि ग्रन्थों में विश्वनाथ आदि आलङ्कारिकोंके निर्वचनों में मिलती है। इनकी संस्कृत भाषा के बारे में विशेष कहना चाहूंगी कि विरल धातुओं का प्रयोग करना, लुप्त होते हुए लकारों का जी भर के उपयोग में लाना, मुझे एक संस्कृतज्ञा होने के नाते बहुत आनन्दित करता है।
यह न केवल इनकी विद्वत्ता को दर्शाता है बल्कि संस्कृत प्रेमियों के लिए यह एक अनोखा उपहार सा प्रतीत होता है। इसे पढ़कर हम अनेक नये धातुओं नये शब्द रूपों एवं प्रयोगों से पल पल अपनी भाषाज्ञान को बढ़ाते होते हुए दैवी भावना में, आध्यात्मिक प्रपञ्च में विहरण करते हैं। लिट्लकार के सुन्दर प्रयोग, प्राचीन अर्थों में कुछ शब्दों का प्रयोग, जो कोशों में भी नहीं मिलते, एवं लुप्त होते हुए कुछ धातुओं का उपयोग काव्य को बहुत आकर्षक बनाते हैं।
दुर्गासप्तशती की पद्धतियों में तन्त्रागमोक्त अत्यन्त प्रभावशालिनी दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला के विश्लेषणरूपी इन सुन्दर श्लोकों को ले लीजिए, या दैवीय भावनाओं को व्यक्त करने के लिए स्रग्धरा, भुजङ्गप्रयात. प्रमाणिका, शार्दूलविक्रीडितादि अनेकानेक सुन्दर छन्दों का प्रयोग ले लीजिए, श्रीभागवतानंद जी की लेखनी से संस्कृत काव्य का यह धाराप्रवाह निर्झर की तरह हमें अपने ध्वनि, अपने स्पर्श और अपने प्राकृतिक सौंदर्य वाले दृश्यांशों से उत्साहित करता रहता है। इनके काव्य की समीक्षा करना अपने आप में एक अनोखा अनुभव है। देवी नवरात्र के उपलक्ष्य में ऐसे ग्रन्थ का आगमन भक्तों के जीवन में एक वरदान ही है।
देवी दुर्गा की ३२ नामावली का प्रभाव उनके साधकों से अज्ञात नहीं है। इससे पूर्व, प्रत्येक नाम की शास्त्रीय सश्लोक व्याख्या कहीं उल्लिखित हो, यह ज्ञात नहीं होता है। इसकी फलश्रुति में स्वयं देवी दुर्गा ने समस्त भय का निवारण बताया है -
नामावलीमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः ।
पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः ॥
इस ग्रन्थ की पीठिका में ग्रन्थलेखन का प्रयोजन स्पष्ट है तथा आदि एवं अन्त में भगवान् गोरक्षनाथ की अपरिमार्जित शाबर शैली निग्रहाचार्यकृत संस्तुति सम्मिलित की गयी है। मैं आशा करती हूं, ऐसे और भी शास्त्रीय रहस्यों से परिपूर्ण काव्य लिखने की शक्ति-सामर्थ्य एवं इच्छा इनके मन में होती रहे और यह हमारे लिए पारायण योग्य ऐसे ग्रन्थों की सृष्टि करते रहें।
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