प्रस्तावना
शिव गुणग्राम
मेरे पूज्य पिता श्रीनन्हकू साव भक्ति क्षेत्र में पूर्ण रूपेण समर्पित थे तथा उनका जीवन संबल गोस्वामी तुलसीदासकृत राम चरित मानस था। श्रीहनुमंतलालजी उनके इष्टदेव थे। उनकी कृपा से मेरे पितृ देव श्रीनन्हकू साव ने परिश्रमपूर्वक मानसका अवलोकन किया और सम्पूर्ण मानस से उन दोहों, चौपाइयों, सोरठों, और छन्दों का संकलन किया जो रामनाम से प्रारम्भहोते हैं। इसे उन्होंने अमृत रामायण नाम से माघ कृष्ण 30 सम्वत् 1982 को प्रकाशित कराया। कहना न होगा कि यह ग्रन्थ श्रद्धालु भक्तों का कण्ठहार बन गया। इसकी मांग दिनोदिन बढ़ती गयी। मुझे धार्मिक संस्कार अपने पिता श्रीनन्हकूसाव और माता श्रीमती रजनी देवी से विरासत में मिला। अपने पिता द्वारा अमृत रामायण के बाद मैंने 9 जनवरी 1972 में एक कड़ी जोड़कर अमृत रामायण के साथ रामगुणग्राम का द्वितीय संस्करण प्रकाशित कराया। रामगुणग्राम में भगवान् श्रीराम की 28 स्तुतियाँ है जो देवताओं द्वारा की गई है। वह रामायण से संकलित हैं। पुनः बैकुण्ठचतुर्थदशी सम्वत् 2062 तदनुसार दिनाङ्क 14-11-2005 को तृतीय संस्करण अमृतरामायण, रामगुणग्राम के साथ विपत भंजनी हनुमान चालीसा आदि छपवाया। जेष्ठ कृष्ण षष्ठी सम्वत् 2007 को चतुर्थ संस्करण में सीता और सिया शब्द से प्रारम्भ होने वाले चौपाई, दोहा, छन्द, सोरठा, का समावेश करते हुए एक और कड़ी जोड़ा गया। क्योंकि रामायण के बालकाण्ड का एक श्लोक- सीताराम गुण ग्राम पुण्यारण्य विहारिर्णो। बन्दे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वर कपीश्वरो।
प्राक्कथन
मेरे परम मित्र श्री राम दुलारे गुप्ता, अपने भगवद् गुणानुरागी तथा सत् समाज सेवी, धर्मनिष्ट, सद् गृहस्थ पिता श्री नन्हकू साव के सुपुत्र हैं। अब तक आपके द्वारा अमृत रामायण राम गुण ग्राम एवं हनुमान गुणग्राम का प्रकाशन कराकर श्री-रामानुरागी कथा प्रेमी सज्जनों में निःशुल्क वितरित किया जा चुका है। पुनः आपके द्वारा संकलित शिव-गुणग्राम भी प्रकाशित होकर आप सभी साहित्यानुरागी "शिव स्वरूप समाज को समर्पित करने के लिये प्रस्तुत है। "त्वदीयं वस्तु भगवन्देव तुभ्यमेव समर्पयेत्" मित्रवर श्री गुप्ता जी के विशेष आग्रह पर मैंने इस संकलित ग्रन्थ के संशोधन संवर्धन एवं सम्पादन जैसे दुरुह कठिन कार्य की स्वीकृति मात्र इसीलिये प्रदान कर दी कि मेरे द्वारा भी समाज रूपी जगदीश्वर की सेवा बन जायेगी। इस शिव-गुणग्राम नामक संकलन में भगवान भोलेनाथ भूतभावन के चरित से सम्बन्धित "मानस" से उमा-शिव संवाद के अतिरिक्त भी कुछ अंश उधृत किये गए हैं। अन्य विविध ग्रन्थों से भी अनेकों स्तुतियाँ, स्तोत्र, अष्टोत्तर शत शिव नाम शिव ताण्डवस्तोत्र महिम्न स्तोत्र, आदि प्रचुर सामग्रियों के साथ ही नव दुर्गा के स्वरूप आदि का वर्णन भी स्तोत्र के साथ संकलित है। स्वयं संहारकर्ता भगवान शिव का कथन है कि शक्ति के बिना शिव शव के तुल्य हो जाता है
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