सतोगुण प्रकाश देता है और अन्य गुणों की अपेक्षा शुद्ध व पवित्र होता है। मनुष्य सतोगुण से अपने सारे पाप से मुक्त हो सकता है। सतोगुण ज्ञान और सुख देता है।
हे कुन्तीपुत्र ! असीम आकांक्षाओं और तृष्णा की अधिकता ही रजोगुण है। और सकाम कर्म इसी गुण से आता है।
हे भरतपुत्र ! तमोगुण वह है जो प्रमाद, आलस्य, अज्ञान और मोह है।
सतोगुण सुख से बाँधता है। रजोगुण सकाम कर्म से जुड़ा है और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढक देता है, पागलपन से बाँधता है।
हे भरतपुत्र ! इन तीनों गुणों में निरन्तर प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। कभी रजोगुण, सतोगुण को परास्त करता है। कभी सतोगुण प्रधान होता है और वह रजोगुण तथा तमोगुण को परास्त करता है। जब तमोगुण प्रधान होता है तो रजोगुण और सतोगुण परास्त हो जाते हैं। लेकिन कृष्णभक्त इन तीनों गुणों को पार कर जाता है।
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