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श्रीकृष्ण उवाच...- Shri Krishna Uwach

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Specifications
Publisher: VAGDEVI PRAKASHAN
Author Edited By Shakuntala Mishra
Language: Hindi
Pages: 181
Cover: PAPERBACK
8x5 inch
Weight 180 gm
Edition: 2024
ISBN: 9789380441986
HBP132
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Book Description
पुस्तक का पिछला भाग
प्रकृति तीन गुणों से युक्त है- सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण। जब जीव प्रकृति के संसर्ग में आता है तो उसमें भी ये तीन गुण आ ही जाते हैं।

सतोगुण प्रकाश देता है और अन्य गुणों की अपेक्षा शुद्ध व पवित्र होता है। मनुष्य सतोगुण से अपने सारे पाप से मुक्त हो सकता है। सतोगुण ज्ञान और सुख देता है।

हे कुन्तीपुत्र ! असीम आकांक्षाओं और तृष्णा की अधिकता ही रजोगुण है। और सकाम कर्म इसी गुण से आता है।

हे भरतपुत्र ! तमोगुण वह है जो प्रमाद, आलस्य, अज्ञान और मोह है।

सतोगुण सुख से बाँधता है। रजोगुण सकाम कर्म से जुड़ा है और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढक देता है, पागलपन से बाँधता है।

हे भरतपुत्र ! इन तीनों गुणों में निरन्तर प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। कभी रजोगुण, सतोगुण को परास्त करता है। कभी सतोगुण प्रधान होता है और वह रजोगुण तथा तमोगुण को परास्त करता है। जब तमोगुण प्रधान होता है तो रजोगुण और सतोगुण परास्त हो जाते हैं। लेकिन कृष्णभक्त इन तीनों गुणों को पार कर जाता है।

पुस्तक परिचय
भगवद्‌गीता हिन्दू समाज के लिए सर्वाधिक पूज्य ग्रन्थ रही है। लेकिन इसकी मान्यता और प्रतिष्ठा एक धर्मग्रन्थ होने तक सीमित नहीं है। हिन्दू समाज के अलावा बाकी दुनिया के लिए भी यह सदियों से दार्शनिक चिन्तन-मनन और आध्यात्मिक मार्गदर्शन की एक प्रेरणास्पद पुस्तक रही है। शायद यही कारण है कि धर्मग्रन्थ मानी जाने वाली पुस्तकों में जितना भगवद्‌गीता पर विचार और प्रतिपादन हुआ है उतना किसी और पुस्तक पर नहीं। हो भी क्यों न, भगवद्‌गीता न सिर्फ आध्यात्मिक साधकों को मार्ग दिखाती रही है बल्कि सांसारिक कर्म-क्षेत्र में जुटे लोगों में भी इसने बहुतों का आत्म-बल बढ़ाया है, बहुतों को जीवन जीने की दृष्टि दी है। जीवन की कठिन परीक्षा की घड़ियों में यह बात और भी लागू होती है। जैसा कि सब जानते हैं, भगवद्‌गीता महाभारत में कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन को भगवान कृष्ण का दिया हुआ उपदेश है। इसका केन्द्र-बिन्दु तो निष्काम कर्म है लेकिन इसमें स्थिप्रज्ञता से लेकर योग मार्ग, भक्तियोग, कर्मयोग, ज्ञान योग जैसे उतने ही महत्तर अन्य आयामों का भी गहन उद्घाटन है। गीता के अनेक भाष्यकारों ने, अपने रुझान के अनुसार, किसी एक आयाम को अपेक्षाकृत अधिक महत्त्व दिया है। लेकिन डॉ. शकुन्तला मिश्रा ने श्रीकृष्ण उवाच में सभी अध्यायों और सभी आयामों को समान महत्त्व दिया है। दरअसल, उन्होंने स्वयं का कोई दृष्टिकोण या आग्रह न थोपकर गीता का मर्म-सार प्रस्तुत करने की कोशिश की है। इसकी उपयोगिता से कौन इनकार करेगा !

लेखक परिचय
जन्म 11 जनवरी 1956 को कोलकाता में हुआ। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से एम.ए. और बी.एड. किया। संगीत, कविता लेखन तथा आलेख में रुचि है। कृतियाँ : सफलता का रहस्य, आत्मगुंजन स्वर गुंजन एवं योगेश्वर ।

आमुख
पहले-यह प्रामाणिक दिव्य ग्रन्थ है इसमें अपनी तरफ से कुछ नहीं जोड़ा गया; गीता ज्ञान जो युद्ध भूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया वह व्यास की लिखी भागवत में उद्धृत है उसी अर्थ को मैंने यहाँ रखा है ! अपनी तरफ से सरल और समझ में आने वाली भाषा में लिखा है!

भूमिका
भगवद्‌गीता मूल रूप से संस्कृत में लिखा गया महाकाव्य है। इस महाकाव्य को व्यास जी ने कहा और श्री गणेश जी ने लिखा है। कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल पर दोनों सेनाओं के बीच श्रीकृष्ण और अर्जुन की यह वार्ता विश्व की दार्शनिक और धार्मिक वार्ताओं में प्रथम है। श्रीकृष्ण ने अपने मित्र तथा भक्त अर्जुन की अनेक जिज्ञासाओं और उनके प्रश्नों का समाधान दिया है। कृष्ण के द्वारा दिया गया उपदेश, जो आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व भक्त अर्जुन को दिया वो गीता अर्थात् भगवान की वाणी या गायन के रूप में प्रख्यात हुआ और अर्जुन का मोह और संशय भंग हुआ। इस प्राचीन ग्रन्थ में कलियुग की वर्तमान घटनाओं का विवरण भी लिखा हुआ है और वो सब आज प्रत्यक्ष देखने को मिल रहा है। आश्चर्य होता है ऋषियों की विद्वता और काल गणना पर। बहुत उन्नत विज्ञान है हमारा बस इसे पढ़ने की जरूरत है और इसको समझने की जरूरत है।

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