पुस्तक परिचय
'प्रकाश' ही वास्तविक जीवन है, जो हमें अंधकार के तिमिर से उठा अपने आनंदमई, दैदीप्य आगोश में लेता है। जीवन के पथ पर परमात्मा का 'नाम' ही हमें देह (माया) के अंधेरों से उठा 'परमात्मा के अंश' तक पहुँचाता है और अंततः इस प्रभुई अंश को ब्रह्माण्ड में बसे सम्पूर्ण प्रकाश (परम आत्मा) की दिव्यता से सराभोर कर उसी में समाता है।
इस हेतु प्रभु स्वयं अवतार धारे पृथ्वी पर आते हैं, माया के दलदल में धंसे मानव को अपने नाम का सहारा दे. हमें अपनी दिव्यता की झलक दिखाते हैं, भक्ति के पथ पर अग्रसर करते हुए हमारे जीवन की दिशा को मोक्ष की ओर मोड़ते हैं। कलयुग में साई बाबा ने हमारे ही लिए श्री हेमाडपंत जी को माध्यम बना स्वयं ही साईं सत् चरित (स्वयं अपने चरित) को रचा। परमात्मा द्वारा रची गई स्वयं अपनी ही जीवन गाथा वास्तव में 'प्रकाश' ही है। वह प्रकाश जो विरला है, न्यारा है, क्योंकि यही प्रकाश हमें अंधेरों से उठा उजालों में बिठाएगा, माया से छुड़ा परमात्मा से मिलवाएगा, हर ओवी, हर शब्द में बसा गूढार्थ जब हमें वास्तविक रूप से समझ आ जाएगा तो इसी (पोथी) में बसा प्रकाश हमारे ही अंतस्थ में जगमगाएगा। प्रभु 'प्रकाश' हैं के सत्य से हमें परिचित करवाएगा, हमें प्रकाशमान करता हुआ परमात्मा से हमारा मिलन करवाएगा।
लेखक परिचय
बेला शर्मा वह नाम है जो महज़ अपने गुरु परमात्मा 'साई बाबा' का ही प्रतिबिंब
है। उनका सम्पूर्ण जीवन, जन्म से लेकर पुनर्जन्म तक और उसके बाद भी. पूर्ण रूप से 'बाबा की कृपा' पर ही निर्भर है और इसी कृपा से बढ़ता पनपता है। निःस्वार्थी - पावन माँ बाप के घर में जन्मीं, बाबा के ही संतीय प्रवृत्ति वाले अक्स से ब्याही गई और बाबा के ही प्रेम से परिपूर्ण बच्चों की देखरेख में बढ़ती हुई, वह केवल बाबा के प्रेम को ही देखती, महसूस करती तथा संजोने का प्रयास करती हैं। यह प्रेम उन्हें बाबा के अन्य रूपों द्वारा मिलता है, अनगिनत तरीकों से, अनुभवों से। उनका बाबा के प्रति प्रेम, भक्ति, समर्पण कई जन्मों का है, जिसे वर्षों के दायरों में नहीं बाँधा जा सकता और उनकी साई से यही प्रार्थना है कि बाबा सदा सर्वदा, जन्म तर जन्म उनका हाथ थामें रहें और उन्हें अपने ही कार्यों का निमित बना पृथ्वी पर भेजें।
बाबा की ही कृपा से उनके लेख 'साई लीला पत्रिका' में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने स्टलिंग के लिए पुस्तकें लिखी हैं तथा उनका अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है। कार्य सब बाबा के ही हैं और करन करावनहार भी बाबा ही हैं. हम तो बाबा के ही आदेशों को कर्मों के माध्यम से अपने अंतस्थ बसाने का प्रयास कर रहे हैं। आपही का दिया बाबा आपको अर्पण कर रहे हैं।
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