सच्चिदानन्दरूपाय विश्वोत्पत्त्यादिहेतवे।
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः ।।
पौराणिक साहित्य में श्रीमद् भागवत महापुराण का अति विशिष्ट महत्त्व है। लोक में जितना व्याख्यान इस महापुराण का किया जाता है उतना अन्य का नहीं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ का प्रदायक है। मोक्ष जो परम दुर्लभ है उसको देने वाला है। ईश्वर का सायुज्य प्रदान कराने वाला है। भक्तिप्रधान उक्त महापुराण में भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाओं का विशिष्ट वर्णन है। बालरूप में माताओं को आनन्द देने वाले माखनचोर का अतिसुन्दर वर्णन है। श्रीकृष्ण के बालरूप लड्डू गोपाल का पूजन, सन्तानगोपाल मंत्र का जप एवं गोपाल सहस्रनाम का पाठ सन्तानप्रदायक माना जाता है। गोपियों के साथ रासलीला गोपीगीत, भ्रमरगीत एवं वेणुगीत का मधुर वर्णन है। मुक्तिनाथ के द्वारा प्राप्त जीवों की मुक्ति के स्वरूप का विशिष्ट वर्णन है। पितरों की मुक्ति (मोक्ष) हेतु सत्पुत्र श्रीमद् भागवत महापुराण की साप्ताहिक कथा का अतिविशिष्ट आयोजन करते हैं। समाज में आनन्द की प्राप्ति, कष्टों से मुक्ति और अन्त में श्रीबैकुण्ठनाथ के सायुज्य अर्थात् आवागमन से मुक्ति हेतु प्राणी इस कथा का आनन्द लेते हैं।
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः ।।
मनुष्य मात्र के तापत्रय निवारण एवं ईश्वर प्रणिधान हेतु भक्तिप्रधान श्रीमद् भागवत महापुराण अत्यन्त उपकारक है, जो भक्ति, ज्ञान और वैराग्य तीनों का साधन है। जीवनमुक्ति के साथ-साथ पितृदेवों को भी मोक्षप्रदायक है। श्रीशुकदेव जी महाराज से कलियुग के प्रारम्भ में राजा परीक्षित जी श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा सुनकर मृत्यु के भय एवं पीड़ा से मुक्त हो गये। सनातन समाज में रामायण एवं भागवत के कथाश्रवण का विशेष महत्त्व है। संत श्रीतुलसीदास जी ने श्रीहरि कीर्तन के वैशिष्ट्य का सुन्दर वर्णन किया है-
कलियुग केवल नाम अधारा। सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा।।
श्रीमद् भागवत महापुराण में भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाओं का विशिष्ट वर्णन है। 12 स्कन्धों में विभक्त 18000 श्लोकों का महापुराण है, सप्ताह अर्थात् 7 दिनों में विभक्त कर कथा का प्रसार किया जाता है। व्यासपीठ पर विराजमान आचार्य कथावाचक अपनी सरल एवं सरस शैली में प्रस्तुत कर समाज को आनन्द की अनुभूति कराते हुये कथामृत का पान कराते हैं। कहा गया है विद्यावतां भागवते परीक्षा विद्वानों की परीक्षा भागवत में की जाती है। यह साधारण पुराण नहीं है, कथावाचक का ही वैदुष्य है, कथा में लालित्य को प्रस्तुत करता है, जिससे श्रोता को आनन्द की अनुभूति होती है।
श्रीमद् भागवत महापुराण के कथावाचकों की अनेकों पोथियाँ उपलब्ध हैं सब का अपना-अपना महत्त्व है सब की अपनी-अपनी शैली है, सभी रोचक हैं। कथावाचक आचार्य श्री मनोज कुमार शुक्ल जी ने श्रीमद् भागवत कथादर्पण नामक ग्रन्थ को लिपिबद्ध किया। इस ग्रन्थ की व्याख्या शैली अत्यन्त सरल है। आशा करता हूँ कि ग्रन्थ समाज में आदृत होगा। ऐसे मौलिक ग्रन्थों के प्रकाशन से भारतीय साहित्य की यशोबृद्धि अवश्य होगी।
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