वीरतापरक रचनाओं के लिए "चन्द्रवरदायी" और महाकवि "भूषण" मील के पत्थर की तरह हैं। परन्तु आधुनिक काव्य भी वीरकाव्य की दृष्टि से पीछे नहीं हैं। आधुनिक हिन्दी काव्य वीरकाव्यों से भरा-पूरा है। इसमें राष्ट्रीयता का स्वर जन-जागरण की प्रतिध्वनि और राष्ट्र को गुलामी से मुक्ति का स्वर प्रखर एवं मुखर है। द्विवेदी युग में राजनीतिक चेतना और भी उम्र हो चुकी थी। इस समय "स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार" का पूर्ण उद्घोष किया जाने लगा था। इसकी प्रथम किरण का दर्शन 'भारत-भारती' में होता है। भारतेन्दु के समय में देशप्रेम की भावना जिस रूप में चली आ रही थी, उसका विकास "भारत-भारती" में मिलता है। महात्मा गाँधी के विचारों से इस युग के अनेक कवि प्रभावित थे जिनमें से "रामनरेश त्रिपाठी" और गया प्रसाद शुक्ल "सनेही" प्रमुख थे। रामनरेश त्रिपाठी ने देशभक्ति और राष्ट्रीय भावना से युक्त अनेक कवितायें लिखी थी।' किन्तु उनकी ख्याति उनके तीन प्रबन्धकाव्यों "मिलन", "पथिक" और "स्वप्न" के कारण हुई, जिनमें महात्मा गाँधी द्वारा प्रवर्तित राष्ट्रीय आन्दोलनों की पूरी छाप दिखाई पड़ती है। ये तीनों ही प्रबन्धात्मक वीरकाव्य हैं। माखनलाल चतुर्वेदी के समान ही सुभद्रा कुमारी चौहान भी अपनो ओजपूर्ण राष्ट्रीय कविताओं के लिये प्रख्यात थी। उनकी सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय कविता "झाँसी की रानी" आधुनिक युग की एक जनप्रिय लोकगाथा कही जा सकती है। इस लम्बी कविता को 'लावनी' छन्द में लिखा गया है, जिसे डफ पर गाया जा सकता है। इसमें प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगायी गयी है।
पाण्डेय जी का उदय पराधीनता के जिस संक्रातिकाल में हुआ था। उसमें माँ भारती को मुक्त कराने के लिए बलिदान और उत्सर्ग की प्रेरणा प्रदान करना एक जागरूक कवि का राष्ट्रधर्म था। अरावली की घाटियों में घास की रोटी खाकर स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले महाराणा प्रताप से श्रेष्ठ एवं उदात्त नायक ढूँढना इतिहास के पन्नों में दुर्लभ रहा है। दूसरी ओर अपनी अस्मिता रक्षा के लिए "जौहर" की ज्वाला जगानेवाला पद्मिनी ऐसे आर्य ललनाओं से श्रेष्ठ नारी-चरित्र की कल्पना ही कहा जा सकता था। प्रताप एवं पदमिनी ऐसे उदात्त चरित्रों को काव्य का नायक एवं नायिका बनाकर चेतना के पाँचजन्य का निनाद किया है। पौराणिक महापुरुष एवं राष्ट्रीय ऊर्जा से संकलित महामानव ही कवि के आलम्बन रहे हैं और इन्हीं को आधारबिन्दु बनकार पाण्डेय जी ने साहित्य-सर्जना की है।
पाण्डेय जी मुख्यतया वीरकाव्यों के प्रणेता हैं। वीरकाव्य किसी भी देश, समाज और जाति की स्थायी निधि होता है। इनके भीतर देश की अखण्डता और संस्कृति के पोषक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं। इनके नायक आपत्तिकाल में हमारे ज्योति स्तम्भ बनते हैं तथा समय-समय पर उन्हीं के बलिदानी व्यक्तित्त्व का स्मरण कर हम अपनी अस्मिता को अक्षुण्ण रख पाते हैं। ऐसे वीर-पुरुषों के शौर्य गायक कवि की महत्ता स्वयंसिद्ध है। पर दुख है कि राष्ट्रीय गौरव के प्रबल उन्नायक, देश की अखण्डता के सजग प्रहरी एवं अपनी संस्कृति के अद्वितीय आख्यता पाण्डेय जी के विषय में हिन्दी जगत् अद्यावधि प्रायः मौन ही है। "जौहर", "हल्दीघाटी" जैसी अमर कृति मूर्धन्य एवं यशस्वी लेखक पाण्डेय जी के विषय में हिन्दी साहित्य प्रेमियों की अल्पज्ञता उनकी उपेक्षा-दृष्टि की परिचायिका हैं।
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