मानव जाति के इतिहास में महान् संत-महात्मा, गुरु-पीर सदैव मानव जीवन तथा इसके उद्देश्य के प्रति अपना दृष्टिकोण हम तक पहुँचाते रहे हैं। अधिकतर महापुरुषों ने अपने उपदेश को स्वयं अपने हाथों से नहीं लिखा। वे अपने उपदेश को किसी विशेष मत-मतांतर का रूप नहीं देना चाहते। वे ऊँच-नीच, धर्म और जाति के भेदभाव के बिना सब श्रोताओं को समान रूप से अपना उपदेश देते हैं। संत-महात्मा आम प्रचलित भाषा, साखियों तथा दृष्टांतों द्वारा श्रोताओं में ऊँचे आध्यात्मिक सत्य को जानने का शौक़ पैदा करते हैं। वे अपने अनुभव के आधार पर इसी सत्य का प्रचार करते हैं।
धर्म ग्रंथ हमें राह दिखाते हैं। वे जानकारी देते हैं कि आध्यात्मिक सफ़र कहाँ से शुरू करना है और रास्ता कैसे तय करना है। धर्म ग्रंथ हमें याद दिलाते हैं कि वह परमात्मा हमारे अंदर है। उनमें जो उपदेश दर्ज है, उस पर अमल करने की प्रेरणा देते हैं। सच्चा पारमार्थिक ज्ञान तथा दृढ़ विश्वास तभी पैदा होता है, जब हम संत-महात्माओं के उपदेश पर चलते हुए खुद रूहानी तरक्की करके अंतर में उस सत्य का साक्षात् अनुभव प्राप्त कर लेते हैं। धर्म ग्रंथ लिखित रूप में हम तक पहुँचे हैं, परंतु उनमें दर्ज वाणी का उच्चारण करनेवाले महात्माओं को निजी अनुभव प्राप्त था। संत-महात्माओं का उपदेश परमार्थी जीवों के लिये होता है ताकि उन्हें अज्ञानता की गहरी नींद से जगाकर सच्चे रूहानी मार्ग के बारे में सचेत किया जा सके।
शब्दों का अर्थ हर व्यक्ति अपनी सोच, विचारधारा और ग्रहण करने की शक्ति के अनुसार समझता है। जैसे-जैसे हमारी सोच के दायरे का विस्तार होता है, वैसै-वैसे धर्म ग्रंथों के उपदेश की गहराई तथा महानता और अधिक उजागर होती जाती है। सच्ची आध्यात्मिक सूझ धर्म ग्रंथों के पाठ-विचार से नहीं, बल्कि उनके उपदेश पर अमल करने तथा अपनी चेतना का विकास करने से संबंधित है।
आदि ग्रन्थ संसार के श्रेष्ठ धर्म ग्रंथों में से एक है। इसका संपादन गुरु अर्जुन देव जी ने किया। इस अनुपम ग्रंथ में गुरु नानक साहिब से आरंभहुई गुरु-परंपरा से संबंधित छः गुरु साहिबान के अलावा अलग-अलग धर्मों, जातियों तथा समय से संबंधित 30 अन्य संत-महात्माओं की वाणी भी उपलब्ध है। इससे पता चलता है कि सब संत-महात्मा एक ही सत्य का प्रचार करते हैं और वह सत्य यह है कि प्रभु के साथ प्रेम करना तथा उस द्वारा सृजित संपूर्ण मानव जाति को एक कुटुंब समझना।
'सिध गोस्ट' और 'बारह माहा' पर आधारित यह पुस्तक आदि ग्रन्थ में प्राप्त सर्व-साँझे आध्यात्मिक उपदेश को संगत तक पहुँचाने के लिए प्रकाशित की जानेवाली पुस्तकों की श्रृंखला का ही एक भाग है। 'सिध गोस्ट' संवाद शैली में लिखी गई गुरु-घर की एक मात्र वाणी है। यह सिद्धों योगियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों और गुरु साहिब द्वारा दिए गए उत्तरों पर आधारित है। इस वाणी को योगमत और गुरुमत के मध्य में संवाद के रूप में देखा जा सकता है।
गुरु साहिब ने 'शब्द या नाम' की विस्तारपूर्वक व्याख्या करते हुए 'सबद गुरू सुरत धुन चेला' के सिद्धांत पर भी प्रकाश डाला है। आप योगियों की मान्यता का खंडन किए बिना, उनके समक्ष सच्चे योगमत और गुरुमत की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार यह वाणी विवाद के स्थान पर, एक शांत और ज्ञानवर्धक संवाद का रूप धारण कर लेती है।
गुरु अर्जुन देव जी के मांझ राग और गुरु नानक साहिब के तुखारी राग का 'बारह माहा' पुस्तक के दूसरे भाग में शामिल है।
आशा है कि इस पुस्तक से पाठकों को गुरु-घर के उपदेश को भलीभाँति समझते हुए इस पर अमल करने की प्रेरणा मिलेगी।
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