समाजशास्त्र के आधारभूत तथ्यों, परिभाषाओं, अवधारणाओं से परिचय कराती हुई यह पुस्तक कुल चौबीस अध्यायों में विभक्त है। समाजशास्त्र के उद्विकास की चर्चा के अलावा, समूहों, प्रस्थिति एवं भूमिकाओं, सामाजिक प्रक्रियाओं, परिवर्तनों, सामाजिक नियन्त्रण के अभिकरणों, नातेदारी, संस्कृति धर्म, शिक्षा, और राज्य पर विशद व सरल अध्ययन प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से समाजशास्त्र विषय से जुड़े हुए विभिन्न आयामों पर चर्चा की गयी है, जो छात्रों को समाजशास्त्र के प्रति एक समझ को विकसित करने में काफी सहायक होगी।
कानपुर विश्वविद्यालय से परास्नातक में स्वर्णपदक प्राप्त करने के पश्चात डॉ. पवन ने कामकाजी महिलाओं पर शोध कार्य किया। डॉ. पवन अपने उत्तर आधुनिक विमर्श के लिए जाने जाते हैं। डॉ. पवन का व्यक्तित्व बहुआयामी है। वह समाजशास्त्री होने के साथ-साथ स्तंभकार, उपन्यासकार, कवि व सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। वर्तमान में डॉ. पवन इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से संबंधित डेलही इंस्टिट्यूट अहफ रूरल डेवलपमेंट में 'विधि के समाजशास्त्र' के एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।
समाजशास्त्र की मूल अवधारणाओं को उद्घाटित करती प्रस्तुत पुस्तक स्नातक स्तर के विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर लिखी गयी है। सरल और सुबोध भाषा में समाजशास्त्र के सिद्धांतों को व्यक्त करने वाली पुस्तकों के अभाव में विद्यार्थी न तो समाजशास्त्रीय चिंतकों को अच्छे से समझ पाते थे और न ही उनके द्वारा दिए गए विचारों के प्रति बोध निर्मित कर पाते थे। इस पुस्तक में विद्यार्थियों की इस कठिनाई को ध्यान में रखते हुए यथा संभव अनुवादित विषयों को स्थानीय स्वरूप दिया गया है। प्रत्येक अध्याय के अंत में विषय से संबंधित प्रश्न भी दिए गए हैं, जो अभ्यास के लिए अति महत्त्वपूर्ण हैं।
पुस्तक लेखन में अनेक विचारकों, संबंधित पुस्तकों, शोध पत्रों इत्यादि की मदद ली गयी है, जिसकी वजह से पुस्तक की मौलिकता का दावा पूर्णतः लेखक के द्वारा नहीं किया गया है, किन्तु विद्यार्थियों के लिए पुस्तक की उपयोगिता, मौलिकता से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। पुस्तक तैयार करते समय विभिन्न विचारकों, सिद्धांतकारों और लेखकों के अवदानों का प्रयोग किया गया है। अस्तु उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रेपित है। पुस्तक को सहज और सुगम्य बनाने का प्रयास लेखक के द्वारा किया गया है ताकि विद्यार्थी संबंधित विषय के मूल तत्त्वों को आसानी से सीख सकें, फिर भी कहीं न कहीं कुछ त्रुटियाँ रह गयी होंगी जिन पर सुधी प्राध्यापकगण अध्यापन के दौरान विशेष ध्यान रखेंगे एवं लेखक को उस बिंदु से अवगत कराएँगे, ताकि आगामी संस्करण में उसे सुधारा जाए और पुस्तक को और भी परिष्कृत किया जा सके।
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