आचार्य श्री श्री महाराज बसंतराम जी का जन्म सिंध प्रान्त के सारस्वत ब्राह्मण कुल में हुआ ! बालकपन में ही श्री कृष्णा भक्ति बीज , जो उन के माता पिता ने बाल्य संस्कारो के रूप में बोया , आगे चलकर वृक्ष बन गया जिस की छाया से आज भी लोग लाभान्वित हो रहे है !
आगम, निगम , मंत्र , तंत्रादि की शिक्षा प्राप्त कर आप ने योगाभ्यास द्वारा सिद्धियों को प्राप्त किया , परंतु यह भी भास हुआ कि ये सब क्षुद्र है ! और हमे इन में पड़ कर जन्म नहीं गवाना , भक्ति मार्ग अपनाया ! इस भक्ति मार्ग द्वारा हि आपने इस विधर्मी शासित प्रान्त सिंध में अपने मित्रो महा. जयकृष्णदास जी से मिलकर भक्ति कि धरा बहाई !
इस (सिंध ) अहिन्दी भाषी और चिरकाल से विधर्मी शासित प्रान्त में जन्म लेने के बाद भी सत्संग सत्सतई, भजनामृत, आदि ग्रंथो की रचना और सायं स्नेही सृति की स्थापना करना, आपके विद्वता और सृजनात्मकशक्ति के घोतक है !
वस्तुत श्री कृष्णायन जैसे महाकाव्य ( कोई कोई विद्वान इसे प्रबंध कार्य कहते है ) की रचना , जिस में परम आनन्दकन्द पर ब्रह्मा श्रीकृष्ण चन्द्र के ही जन्म स्थली के भाषा में सुबद्ध करना प्रभु की अनन्य कृपा पत्र होने की साक्षी देती है !
आप का महाप्रयाण श्री कृष्णायन रचना के ठीक चार दिन बाद हुआ !
आचार्य श्री श्री महाराज बसंतराम जी का जन्म सिंध प्रान्त के सारस्वत ब्राह्मण कुल में हुआ ! बालकपन में ही श्री कृष्णा भक्ति बीज , जो उन के माता पिता ने बाल्य संस्कारो के रूप में बोया , आगे चलकर वृक्ष बन गया जिस की छाया से आज भी लोग लाभान्वित हो रहे है !
आगम, निगम , मंत्र , तंत्रादि की शिक्षा प्राप्त कर आप ने योगाभ्यास द्वारा सिद्धियों को प्राप्त किया , परंतु यह भी भास हुआ कि ये सब क्षुद्र है ! और हमे इन में पड़ कर जन्म नहीं गवाना , भक्ति मार्ग अपनाया ! इस भक्ति मार्ग द्वारा हि आपने इस विधर्मी शासित प्रान्त सिंध में अपने मित्रो महा. जयकृष्णदास जी से मिलकर भक्ति कि धरा बहाई !
इस (सिंध ) अहिन्दी भाषी और चिरकाल से विधर्मी शासित प्रान्त में जन्म लेने के बाद भी सत्संग सत्सतई, भजनामृत, आदि ग्रंथो की रचना और सायं स्नेही सृति की स्थापना करना, आपके विद्वता और सृजनात्मकशक्ति के घोतक है !
वस्तुत श्री कृष्णायन जैसे महाकाव्य ( कोई कोई विद्वान इसे प्रबंध कार्य कहते है ) की रचना , जिस में परम आनन्दकन्द पर ब्रह्मा श्रीकृष्ण चन्द्र के ही जन्म स्थली के भाषा में सुबद्ध करना प्रभु की अनन्य कृपा पत्र होने की साक्षी देती है !
आप का महाप्रयाण श्री कृष्णायन रचना के ठीक चार दिन बाद हुआ !