| Specifications |
| Publisher: Yadav Kul Dipika, Delhi | |
| Author Chiranji Lal Yadav | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 464 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 510 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9789334137026 | |
| HBF233 |
| Delivery and Return Policies |
| Ships in 1-3 days | |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
श्रीमद्भगवद्गीता संसार की एकमात्र पुस्तक है, जिसकी जयंती मनाई जाती है। यह गीता ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को युद्धक्षेत्र में उस समय दिया था, जब वह अपने सामने अपने प्रिय परिवारजनों, संबंधियों एवं मित्रों को देखकर दुःखी हो गया या और युद्ध करूं या न करूँ की किंकर्तव्य विमूढता की विषम परिस्थिति में फंस गया था। एक साधारण मनुष्य के जीवन में भी उसका कार्यक्षेत्र, उसका कर्मक्षेत्र महाभारत के कुरुक्षेत्र के समान होता है। उसमें भी कई अवसर किंकर्तव्य विमूढता के प्राप्त होते हैं, जिसमें व्यक्ति एक दोराहे पर खड़ा होकर निर्णय नहीं कर पाता कि क्या उचित है और क्या अनुचित है। ऐसे में गीता का ज्ञान उसे सही दिशा प्रदान करता है।
कुछ लोग शंका करते हैं कि महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने से ठीक पूर्व श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच 700 श्लोकों का वार्तालाप करना क्या संभव हुआ होगा? कुछ विद्वान इस वार्तालाप का समय एक घंटे से भी कम समय का मानते हैं। इस विषय में कहा जा सकता है कि उनकी वार्ता तो संक्षिप्त ही रही होगी। किन्तु उस वार्ता को श्लोकबद्ध करने में इसे बढ़ा दिया गया होगा। इस संदर्भ में यह दृष्टव्य है कि श्रीमद्भगवद्गीता मूल रूप से महाभारत का एक अंश है। इसे महाभारत के भीष्म पर्व से लिया गया है। महाभारत का मूल नाम 'जय' था। जिसकी रचना वेदव्यास जी ने की थी और जिसमें मात्र 8,800 श्लोक थे। बाद में कुछ क्लिष्ट श्लोकों को विभाजित कर अनेक श्लोक बनाये गये और कुछ नये श्लोक जोड़े गये और तब इसका नाम 'भारत' हुआ, जिसमें 24,000 श्लोक थे। बाद में बहुत सारे श्लोक और जोड़े गये और तब इसका नाम 'महाभारत' पड़ा। अब इसमें एक लाख से लेकर सवा लाख तक श्लोक हैं। पूणे के भंडारकर शोध संस्थान की महाभारत में 88000 श्लोक हैं। महाभारत में जितना ज्ञान दिया गया है, उसी के आधार पर इसे 'पंचम वेद' की संज्ञा प्राप्त है।
जिस प्रकार महाभारत में और श्लोक जोड़कर उसे बढ़ाया गया है, स्वाभाविक है उसी अनुपात में गीता को भी बढ़ाकर लिखा गया होगा। अभी गीता में 700 श्लोक हैं। लेकिन मूल गीता में इतने श्लोक नहीं थे। जानकारी मिलती है कि बाली द्वीप पर एक अत्यंत प्राचीन गीता की प्रति प्राप्त हुई है, जिसमें मात्र 70 अथवा 80 श्लोक ही मिलते हैं। वैसे भी महाभारत युद्ध से पूर्व संभवतः इतना समय नहीं था कि 600 या 700 श्लोकों का ज्ञान सुनाने का अवसर भगवान श्रीकृष्ण को मिला होगा। उन्होंने सार रूप में संक्षिप्त ज्ञान ही अर्जुन को दिया होगा, जिसे लिपिवद्ध एवं श्लोकबद्ध करने पर उनका इतना अधिक विस्तार हो गया। वर्तमान में गीता का विस्तार 18 अध्यायों में बाँटा गया है।
गीता का प्रथम अध्याय तो इनकी प्रस्तावना रूप में ही है, जिसमें महाभारत में युद्धरत हुई दोनों पक्षों की सेनाओं का वर्णन है और उसे देखकर अर्जुन के मन में उठे विषाद को दर्शाया गया है। दूसरे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा की अमरता और निष्काम कर्म का उपदेश दिया है। तीसरे अध्याय में कर्म और कर्मयोग का भेद बताया है। चौये अध्याय में ज्ञान और कर्म के साथ संन्यास वा त्याग का गहत्व समझाया गया है। पांचवें अध्याय में कर्म के साथ संन्यास की महत्ता बताई है। छठे अध्याय में आत्मसंयम का ज्ञान दिया है। सातवें अध्याय में परा और अपरा प्रकृति के संयोग से उत्पन्न संसार का ज्ञान और विज्ञान समझाया गया है। आठवें अध्याय में ब्रह्म, अध्यात्म आदि के विषय में बताते हुए ॐ की महिमा बताई गई है। नवें अध्याय में अर्जुन को परम गोपनीय और अत्यन्त पवित्र ज्ञान दिया है। दसवें अध्याय में भगवान ने अपनी विभूतियों का वर्णन किया है। ग्यारहवें अध्याय में भगवान के विराट स्वरूप का वर्णन है। बारहवें अध्याय में ईश्वर-भक्ति का स्वरूप बताया गया है। तेरहवें अध्याय में भगवान ने शरीररूपी क्षेत्र और शरीर का स्वामी जीवात्मा, जिसे क्षेत्रज्ञ कहा है, का ज्ञान दिया है। चौदहवें अध्याय में मायारूपी तीन गुणों का वर्णन और गुणातीत होने का उपदेश दिया है। पन्द्रहवें अध्याय में संसारवृक्ष के वर्णन के साथ ईश्वर को पुरुषोत्तम बताया है। सोलहवें अध्याय में दैवीय और आसुरी सम्पदा का ज्ञान दिया गया है। सत्रहवें अध्याय में देवी-देवता और ईश्वर का भेद बताते हुए श्रद्धा आहार, जप, तप, यज्ञ, दान आदि के तीन रूपों का वर्णन है।
Send as free online greeting card