इतिहास अतीत एवं वर्तमान में चलने वाला सत्य की शिला पर तथ्य परक संवाद है। इतिहासकार और तथ्यों के मध्य स्थित अन्तक्रिया की अविच्छिन्न प्रक्रिया है। वैदिक साहित्य में वंश, गाथा, नाराशंसी एवं दानस्तुति के द्वारा ऐतिहासिक लेखन का अस्तित्व परिलक्षित होता है। वैदिक साहित्य जहाँ एक ओर वंश पुरोहितों और राजाओं की सूची प्रदान करते हैं वहीं दूसरी ओर राज्य की अवधारणा को भी व्यक्त करते हैं। वैदिक काल में मूल राजनीतिक इकाई कुल या परिवार था। इससे बड़ी इकाई कई कुलों से बना गोत्र था, गोत्र से बड़ा जन, जन से विश और सम्पूर्ण विशों से विकसित राष्ट्र था। उत्तर वैदिक काल तथा छठी शदी ई.पू. के मध्य जनपद सुलतानपुर में एक गणराज्य का अस्तित्व प्राप्त होता है जिसे केशपुत्त के कालाम गणतन्त्र के नाम से जाना जाता था। जिसके संस्थापक राजा केशि के वंशज थे। यहाँ भी वंश से राज्य की उत्पत्ति परिलक्षित होती है।
इतिहास-लेखन की अनेक विधायें हैं, जिनमें प्रागैतिहासिक इतिहास लेखन, वैदिक, पौराणिक बौद्ध एवं जैन इतिहास लेखन। इसी प्रकार प्राचीन एवं मध्ययुगीन भारत के विविध पक्षों पर इतिहास लेखन की विभिन्न विधियाँ हैं। प्रागैतिहासिक भारत से लेकर आधुनिक भारत के नाना पक्षों पर शोध कार्य एवं लेखन हुए भी हैं। किन्तु वर्तमान समय में क्षेत्रीय अनुसंधान के क्षेत्र में पर्याप्त कमी है। इस धारा में शोध कार्य को बढ़ावा भी दिया जा रहा है डॉ. देशराज उपाध्याय द्वारा 'इतिहास एवं पुरातत्व में सुलतानपुर' नामक ग्रन्थ के अन्तर्गत किया गया अनुसंधान कार्य इसी श्रृंखला की एक कड़ी है।
वस्तुतः सुलतानपुर का इतिहास, साहित्यिक एवं पुरातात्विक दोनों साक्ष्यों की दृष्टि से समृद्ध है। प्रस्तुत अध्ययन में पाषाण काल से लेकर स्वतन्त्रता प्राप्ति तक जनपद के अतीत पर विधिवत विचार किया गया है। यहां से प्राप्त बहुमूल्य, कलाकृतियों तथा इष्टिका निर्मित मन्दिर एवं दुर्ग के अवशेषों से प्राचीन काल में नगरीय विकास के मौलिक इतिहास का परिज्ञान होता है। डॉ. देशराज उपाध्याय ने मेरे निर्देशन में जनपद सुलतानपुर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कर बहुमूल्य दुर्लभ प्राचीन प्रतिमाओं को खोज कर विश्वविद्यालय के कोसल संग्रहालय में संग्रहीत किया है। जनपद में प्राचीन प्रतिमाओं की बहुलता से मन में यह विचार उत्पन्न होता है कि उत्तर गुप्त काल में इस क्षेत्र में कहीं मूर्ति निर्माण की कार्यशाला रही होगी। डॉ. उपाध्याय के इस ग्रन्थ में जनपद की वर्तमान भौगोलिक स्थिति तथा मध्य पाषाण कालीन जन-जीवन की रूपरेखा का वर्णन किया गया है। इसके साथ इस क्षेत्र के पुरास्थलों तथा वहां से प्राप्त कलावशेषों की विवेचना भी की गयी है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इस क्षेत्र में मानव समूह के आगमन के साथ-साथ प्राचीन कोसल तथा केशपुत्त के कालाम गणतन्त्र का भी विस्तृत उल्लेख समाहित है। जहाँ इस ग्रन्थ में कोसल राज्य के प्रथम राजवंश इक्ष्वाकु वंश से लेकर अवध के नवाबों तक का विवरण दिया गया है वहीं जनपद की धार्मिक स्थिति तथा स्वतन्त्रता संग्राम में जनपद के योगदान को भी लिपिबद्ध किया गया है। इसी श्रृंखला में जनपद के कतिपय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों का भी परिचय दिया गया है और उनकी सारणी भी निर्मित की गयी है।
इस प्रकार यह ग्रन्थ जनपद के इतिहास एवं पुरातत्व पर प्रथम प्रकाशित कृति है; जिसमें इस क्षेत्र के अतीत का विभिन्न स्वरूप प्रतिबिम्बित होता है। डॉ. उपाध्याय ने गंभीरता से अथक प्रयत्न के फलस्वरूप उच्च कोटि का ग्रन्थ तैयार किया है। निश्चयतः इस ग्रन्थ से क्षेत्रीय इतिहास-लेखन की महत्ता बढ़ेगी तथा रामायण युगीन कोसल का इतिहास अधिक स्पष्ट होगा। मेरी शुभ कामना है कि प्रस्तुत ग्रन्थ इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विषय की शोधधारा में नूतन दृष्टि का प्रतिपादक सिद्ध हो।
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