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यूनानी चिकित्सासार (यूनानीमतेन आशिरःपाद सर्व रोग निदान-चिकित्सादि संवलित): Unani Chikitsasara (Unanimatena Ashirahpada Sarva Roga Nidana Chikitsadi Sanvalita)

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Specifications
Publisher: Shree Baidyanath Ayurved Bhawan Pvt. Ltd.
Author Daljit Singh
Language: Hindi
Pages: 525
Cover: PAPERBACK
9.5x6.5 inch
Weight 480 gm
Edition: 2022
HBQ361
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Book Description
प्रकाशकीय

कुछ ही वर्ष पहले हमने प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक ठाकुर दलजीतसिंहजी द्वारा लिखित "यूनानी सिद्धयोगसंग्रह" नामक ग्रन्थ का प्रकाशन किया था, जिसका आशातीत समादर वैद्य-समाज तथा सर्वसाधारण पाठकों के बीच हुआ। किन्तु, इस प्रकाशन के बाद भी हम यह बराबर अनुभव करते रहे कि यदि यूनानी चिकित्सा पर राष्ट्र‌भाषा में कोई योजनाबद्ध, सुन्दर, सरल एवं अधिकृत ग्रंथ भी प्रकाशित किया जाये तो हमारे वैद्यसमाज का अपने देश में ही प्रचलित, परिवर्द्धित एक अन्य चिकित्सा पद्धति की जानकारी से बड़ा हित-साधन हो। अतएव आज इस ग्रंथ को हिन्दी भाषाभाषी पाठकों तया वैद्य-समाज के सम्मुख लेकर उपस्थित होते हुए हम में अपार हर्ष का संचार हो रहा है।

ठाकुर दलजीतसिंहजी अरबी-फारसी के बड़े अच्छे पंडित और इन भाषाओं में लिखित यूनानी चिकित्सा-शास्त्र के सुविज्ञ यशस्वी वैद्य है। इसके अतिरिक्त आप संस्कृत के भी पण्डित है और आयुर्वेद-शास्त्र के ज्ञाता निपुण वैद्य भी। अतः इस विषय पर विचार करने और लिखने का आपको पूरा अधिकार है और चूँकि चिकित्सा शास्त्र एक ऐसा विषय है, जिस पर अनभिज्ञ, पल्लवग्राही लेखकों द्वारा लिखित पुस्तकों से सर्वसाधारण एवं अन्य चिकित्सक महानुभावों के बीच भ्रम का संचार हो सकता है, ऐसे ग्रंथों के प्रकाशन में बहुत सतर्कता की आवश्यकता है। हमें विश्वास है कि ठाकुर दलजीत सिंहजी द्वारा प्रणीत ग्रंथों में वैसी किसी अनधिकृत बातों का समावेश नहीं होगा।

आज हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा के आसन पर आसीन है। अतः यह हमारी वर्तमान पोड़ी की शिक्षा-दीक्षा का माध्यम भी होने जा रही है। इसलिये आवश्यक है कि हिन्दी में ऐसे सभी प्रमुख विषयों पर ग्रंथ प्रकाशित हों जो किसी समय जनसाधारण के बीच समादृत ये और जिनसे लोकोपकार के कार्य होते रहे हों। कहना नहीं होगा कि यूनानी चिकित्सा पद्धति का प्रचार इस देश में कभी आधुनिक एलोपैथी की तरह ही व्यापक एवं लाभदायक था। आज भी इस देश के एक बड़े जनसमुदाय की चिकित्सा का यह प्रमुख अंग बना हुआ है और इसमें इतने अच्छे हकीम मौजूद है जो इस पद्धति से निदान करके भी रोगों को दूर करने में चमत्कार दिखलाते हैं।

इसी विचार से प्रेरित होकर हमने इस ग्रंथ का प्रकाशन किया है। आशा है, इससे हमारे वैद्यबन्धु और साधारण जन उचित लाभ उठाकर हमारे श्रम की सार्थकता सिद्ध करेंगे।

प्रस्तावना

यूनानी वैद्यक संबंधी प्रामाणिक, तुलनात्मक एवं यूनानी विद्यालयों के पाठ्‌यक्रम को दृष्टिगत रखते हुए राष्ट्रभाषा हिन्दी में ग्रन्थनिर्माण का जो संकल्प आज से कुछ वर्ष पूर्व मैने किया था, उसी के अभिपूर्ति स्वरूप यूनानी ग्रन्यमाला के एक पुष्प के रूप में प्रस्तुत ग्रन्य का अवतरण हुआ है। इस ग्रन्थमाला का प्रथम पुष्प यूनानी द्रव्यगुणविज्ञान से प्रारंभ होकर प्रस्तुत ग्रन्य तक पहुँचा है। इसके बीच के पुष्प जो अद्यावधि प्रसिद्ध हो चुके है, निम्न है- यूनानी सिद्धयोग-संग्रह, यूनानी वैद्यक के आधारभूत सिद्धान्त (कुल्लियात) पूर्वार्द्ध और यूनानी चिकित्सा विज्ञान पूर्वार्ध। यूनानी चिकित्सा विज्ञान पूर्वार्ध (प्रथम भाग) के अब तक प्रकाशित इस अंतिम पुष्प में निदान-बिकित्सा के आधार भूत सिद्धान्तों का समावेश हुआ है। अस्तु, यूनानी चिकित्सासार से पूर्व इसका अवलोकन व अध्ययन अनिवार्य है। इसके तीन भाग और होंगे। इसका दूसरा भाग ज्वरविषयक होगा।

ज्वरविषय का यूनानी में सर्वाधिक प्रामाणिक एवं प्रसिद्ध अन्य विद्वद्वर शैखुर्रईस बू अलीसीना लिखित हुम्मयात कानून है, जो उनके सुप्रसिद्ध अल्कानून ग्रन्थ का ज्वर पर लिखा गया, एक सुविस्तृत भाग (ज्वराध्याय) है और अधुना यह प्रायः भारतीय सभी यूनानी विद्यालयों के पाठ्यक्रम में मौलिक अरबी भाषा के रूप में अथवा उर्दू अनुवादरूप में समाविष्ट है। इसी का मैंने सरल हिंदी भाषान्तर किया है। इसे यूनानी चिकित्सा विज्ञान उत्तरार्द्ध प्रथम खण्ड के रूप में प्रकाशित करने का मेरा विचार है। इस उत्तरार्द्ध भाग के अगले दो खण्ड शेष अन्य सर्व रोग निदान-चिकित्सादि विषय संवलित होंगे, जिनमें यूनानी मत से, स्थान-स्थान पर आयुर्वेदीय एवं एलोपैथी मत से भी तुलना करते हुये आशिरः पाद समस्त रोगों का निदान-चिकिलरा आदि सविस्तार वा विशद रूपेण वर्णित होगी। पुनश्च इस बात का पूरा ध्यान रखा जायेगा कि यह यूनानी विद्यालयों के पाठ्‌यक्रम को पूरा कर सके तथा यूनानी वैद्यक विषयक कोई आवश्यक बातें छूटने भी न पाएँ।

इस ग्रन्थ के उत्तरार्थ प्रथम खंड अर्थात् 'हुम्मयात कानून' के हिन्दी अनुवाद के प्रकाशनार्थ जब मैने श्री वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन लि० के अध्यक्ष श्रीमान् पं० रामनारायणजी वैद्य शास्त्री महोदय को पत्र लिखा, तब आपने उसे स्वयं देखने की इच्छा प्रकट की। सुतयं इसकी पांडुलिपि आपके अवलोकनार्थ सेवा में प्रेषित की गई। स्वयं अवलोकनोपरांत आपने उसे श्रीमान् यादवजी त्रिकमजी आचार्य महोदय के पास भेज दिया। इसे अवलोकनोपरांत श्री महायज का यह विचार हुआ कि यह एक विषय (ज्वर) पर लिखा हुआ ग्रन्थ अति विस्तृत है। अस्तु, इसे फिर कभी प्रकाशित किया जाये। आपके मत से इस समय एक ऐसे यूनानी-चिकित्सा ग्रन्थ को आवश्यकता है जिसमें अति संक्षेप में यूनानी मत से आशिरः पाद समस्त रोगों का निदान-चिकित्सा आदि सरल हिंदी में वर्णित हो। अतः श्रीमान् पं० रामनारायणजी ने मुझे श्री महाराज के सुझाव एवं निर्देशानुसार एक ऐसे स्वतन्त्र ग्रन्य लिखने का शुभादेश दिया। उस आदेश को सहर्ष शिरोधार्य कर उसी के अनुसार मैने इस यूनानी चिकित्सासार ग्रन्थ का प्रणयन किया, जिसमें यूनानी मत से आशिरःपाद समस्त रोगों का अति संक्षेप एवं सरल हिन्दी में निदान चिकित्सा आदि वर्णित है।

यह ग्रन्थ आगे लिखे जाने वाले और प्रकाशित होने वाले विस्तृत यूनानी चिकित्साविज्ञान ग्रन्य के उत्तरार्द्ध भाग १, २ और ३ का सुसार संग्रह है, यदि ऐसा कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं। अस्तु, उन ग्रंथों के प्रकाशित होने पर भी इस ग्रंथ की उपादेयता एवं महत्त्व किसी प्रकार कम नहीं होगा, अपितु बढ़ेगा ही। कारण यह उनसे सर्वथा भित्र एवं स्वतंत्र रचना है।

ग्रन्थ के अन्त में 'ज्वराधिकार' और 'यूनानी चिकित्सा-सार के योगपाठादि' ऐसे दो परिशिष्ट इसलिये लगाये गये हैं, जिसमें ग्रंथ सभी दृष्टियों से सर्वांगपूर्ण हो। इसी दृष्टि से ग्रंथ के अन्त में इस ग्रन्थ में आये विषयों की विस्तृत हिन्दी एवं अंग्रेजी वर्णानुक्रमणिका दी गई है।

ग्रन्थ कैसा है, इस संबंध में मैं स्वयं कुछ न कहकर पाठकों के ऊपर छोड़ता हूँ। फिर भी इतना कहना आवश्यक समझता हूँ कि इस प्रकार का ग्रन्थ अभी तक हिन्दी में प्रकाशित नहीं हुआ है अर्थात् इस विषय में अब तक प्रकाशित प्रन्यों में यह अपने ढंग का प्रथम ग्रंथ है।

इस पुस्तक की प्रसिद्धि का सर्वाधिक श्रेय परम् आदरणीय आचार्य प्रवर आयुर्वेद मार्तण्ड, आयुर्वेद वाचस्पति श्रीमान् यादवजी त्रिकमजी आचार्य महोदय को है जिनकी सत्प्रेरणा एवं सत्परामर्श से मैं इस ग्रन्थ को इतना शीघ्र एवं इतने सुन्दर रूप में आपके समक्ष रखने में समर्थ हुआ। श्री महाराज की मुझ पर बड़ी कृपा रहती है। यह आप ही के कृपा कटाक्ष का फल है कि मुझ अकिंचन के द्वारा यूनानी ग्रन्थमाला के रूप मे उसी के अनुसार मैने इस यूनानी चिकित्सासार ग्रन्थ का प्रणयन किया, जिसमें यूनानी मत से आशिरःपाद समस्त रोगों का अति संक्षेप एवं सरल हिन्दी में निदान चिकित्सा आदि वर्णित है।

यह ग्रन्थ आगे लिखे जाने वाले और प्रकाशित होने वाले विस्तृत यूनानी चिकित्साविज्ञान ग्रन्य के उत्तरार्द्ध भाग १, २ और ३ का सुसार संग्रह है, यदि ऐसा कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं। अस्तु, उन ग्रंथों के प्रकाशित होने पर भी इस ग्रंथ की उपादेयता एवं महत्त्व किसी प्रकार कम नहीं होगा, अपितु बढ़ेगा ही। कारण यह उनसे सर्वथा भित्र एवं स्वतंत्र रचना है।

ग्रन्थ के अन्त में 'ज्वराधिकार' और 'यूनानी चिकित्सा-सार के योगपाठादि' ऐसे दो परिशिष्ट इसलिये लगाये गये हैं, जिसमें ग्रंथ सभी दृष्टियों से सर्वांगपूर्ण हो। इसी दृष्टि से ग्रंथ के अन्त में इस ग्रन्थ में आये विषयों की विस्तृत हिन्दी एवं अंग्रेजी वर्णानुक्रमणिका दी गई है।

ग्रन्थ कैसा है, इस संबंध में मैं स्वयं कुछ न कहकर पाठकों के ऊपर छोड़ता हूँ। फिर भी इतना कहना आवश्यक समझता हूँ कि इस प्रकार का ग्रन्थ अभी तक हिन्दी में प्रकाशित नहीं हुआ है अर्थात् इस विषय में अब तक प्रकाशित प्रन्यों में यह अपने ढंग का प्रथम ग्रंथ है।

इस पुस्तक की प्रसिद्धि का सर्वाधिक श्रेय परम् आदरणीय आचार्य प्रवर आयुर्वेद मार्तण्ड, आयुर्वेद वाचस्पति श्रीमान् यादवजी त्रिकमजी आचार्य महोदय को है जिनकी सत्प्रेरणा एवं सत्परामर्श से मैं इस ग्रन्थ को इतना शीघ्र एवं इतने सुन्दर रूप में आपके समक्ष रखने में समर्थ हुआ। श्री महाराज की मुझ पर बड़ी कृपा रहती है। यह आप ही के कृपा कटाक्ष का फल है कि मुझ अकिंचन के द्वारा यूनानी ग्रन्थमाला के रूप में यूनानी वैद्यकीय साहित्य विषयक वैद्य समाज की अभूतपूर्व सेवा हो रही है। यदि श्री महाराज की मेरे ऊपर ऐसी ही कृपा भविष्य में भी बनी रही तो आशा है कि घोड़े समय में ही मैं यूनानी वैद्यकविषयक प्रत्येक साहित्य का अवतरण राष्ट्रभाषा हिन्दी में करने में सफल मनोरथ होऊँगा।

इसके बाद इस ग्रन्थ के प्रकाशन का अधिकाधिक श्रेय श्री वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन के संचालक श्रीमान् पं० रामनारायणजी वैद्य शास्त्री को है, जिन्होंने मेरे द्वारा प्रणीत साहित्य को समय-समय पर निःसंकोचभाव से एवं इतने सुन्दर रूप में प्रकाशन का मानो व्रत ही ले रखा है। यदि आपकी ऐसी ही प्रवृत्ति आगे भी बनी रही तो आशा है कि यूनानी वैद्यक विषयक अनेकानेक और नवीन एवं उत्तम साहित्य वैद्य समाज के समक्ष अवतीर्ण होते रहेंगे।

इस ग्रन्थ की प्रेस लिपि, विषय-सूची एवं विषयों की वर्णानुक्रमणिका आदि तैयार करने में मेरे कनिष्ठ भ्राता कविराज रामसुशील सिंह शास्त्री, आयुर्वेदाचार्य ए० एम० एस०, रिसर्च स्कॉलर (हिं० वि० वि०), भूतपूर्व प्रिंसिपल श्री बलदेव आयुर्वेद विद्यालय, बड़ागाँव, लेखक 'पाश्चात्य द्रव्यगुणविज्ञान (एलोपैविक मेटीरिया मेडिका, हिन्दी), वात्स्यायन कामसूत्र के हिन्दी टीकाकार तथा कतिपय अन्य ग्रन्थों के सहायक लेखक ने मेरी बड़ी सहायता की है। इसके लिए मैं उनका भी आभार मानता हूँ। आप आयुर्वेद-जगत् के एक उदीयमान सिद्धहस्त लेखक एवं अनुभवी चिकित्सक है। आपने आयुर्वेद के अतिरिक्त संस्कृत में शास्त्री, अंग्रेजी में बी० ए०, अरबी में मौलवी और फारसी की अंतिम परीक्षा 'कामिल' और हिन्दी में 'विशारद' आदि परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण की है।

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