व्यवहार से जाना कि संसार एक रंगमंच है। छल से जाना कि जीवन एक लम्बा नाटक है। झूठ से जाना कि रिश्ते व्यवसाय का अंग हैं। प्रेम मन की विवशता है। प्रेम दुखद बन्धन है। यह बंधन जीवन की परम आवश्यकता है क्योंकि प्रेम मनुष्य को, मनुष्य बनाये रखता है... प्रेम मनुष्य की मनुष्यता को जगाकर उसकी संवेदनाओं को धारदार बनाता है। संवेदनशील मनुष्य प्रेम में नख-शिख डूब जाता है तो उबर नहीं पाता। ऐसे मनुष्य को अंततः जीवन कारागार लगता है वह साँसों की बेड़ियों को तोड़ना चाहता है वह प्रिय से एकात्म होना चाहता है जो शायद जीवित रहते संभव नहीं है अतः वह मृत्यु की कामना करने लगता है, यह सब प्रेम से ही संभव है... अतः यही कहना होगा- प्रेम मृत्यु की ओर बढ़ा हुआ कदम है... प्रेम जीवन का अंत है। ऐसा अंत, जिसके बाद ही जीवन का प्रारंभ होता है...
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