पाणिनि के धातुपाठ में 'णट नृत्तौ' इस धातु का दो बार प्रयोग किया गया है। प्रथम धातु का अर्थ है वाक्यार्थ का अभिनयरूप नाट्य, जो कि नट से सम्पादित होता है, जैसे नट जिसमें अभिनय करते हैं उसे 'नाटक' कहते हैं।
द्वितीय बार पठित धातु का अर्थ है पदार्थ का अभिनयरूप नृत्य जो कि नर्तक से सम्पादित होता है।
वस्तुतः नाटक में नट के द्वारा वाक्याऽर्थ और पदार्थ दोनों का अभिनय होता है। नाटक में वाक्याऽर्थ के अभिनय के साथ-साथ नट के द्वारा यथास्थान नृत्य, गीत और वाद्य इन तीनों का प्रदर्शन किया जाता है।
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