वैदिक ऋषिकाएँ 'एक प्रकाशपुंज' ग्रंथ में वैदिक काल की महान ऋषिकाओं के जीवन-चरित्र को कथा-रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। यह केवल एक साहित्यिक प्रयत्र नहीं, अपितु हमारी वैदिक ज्ञान-परंपरा और सांस्कृतिक विरासत को समझने एवं पुनस्र्मरण करने की एक विनम्र पहल है। हजारों वर्ष पूर्व सतयुग में ब्रह्माजी के मुख से निकले वेदों का दर्शन ऋषि-मुनियों ने अपने तप, साधना और योगबल से किया. इस ईश्वरीय ज्ञान को उन्होंने मन्त्रस्वरूप में देखा, जाना और संकलित किया, जो आगे चलकर ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के रूप में संकलित हुए।
इस दिव्य ज्ञान के सृजन और विस्तार में केवल ऋषियों का ही नहीं, अपितु अनेक ज्ञानसम्पत्र स्त्रियों-ऋषिपत्रियों, ऋषिकन्याओं, बहुओं का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। जिन्होंने वेदों का अध्ययन कर मत्रों का साक्षात्कार किया वे 'ऋषिकाएँ' कहलाई और जिन्होंने ब्रह्म-तत्त्व का अनुभव कर आत्मज्ञान प्राप्त किया, वे 'ब्रह्मवादिनी' के रूप में विख्यात हुई।
वैदिक युग वह काल था जब नारी को समुचित शिक्षा पाने, यज्ञों में भाग लेने, शास्त्रार्थ करने, शिक्षा देने, युद्धभूमि में शस्त्र धारण करने और समाज सेवा के विविध क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार प्राप्त था। ऋग्वेद एवं उपनिषदों में अनेक ऐसी नारी विभूतियों का उल्लेख मिलता है जिन्होंने अपने ज्ञान, साधना और साहस से तत्कालीन युग को आलोकित किया।
आज की पीढ़ी वैदिक युग की उन तेजस्विनी नारियों के जीवन और योगदान से अल्प परिचित है। इस ग्रंथ के माध्यम से यह प्रयास किया गया है कि वेदकालीन ऋषिकाओं की गौरवगाथा कथा रूप में प्रस्तुत हो, जिससे पाठक न केवल प्रेरणा प्राप्त करें, अपितु उस वैदिक दृष्टिकोण को भी समझें जिसमें स्त्री को ज्ञान, कर्म और साधना में समकक्ष स्थान प्राप्त था।
ऋषिकाओं के जीवन-दर्शन से ओत-प्रोत ये कथाएँ भारतीय संस्कृति के उस उज्ज्वल पक्ष की पुनर्स्थापना का एक प्रयास है, जो आज पुनः स्मरणीय एवं अनुकरणीय है।
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