प्रस्तुत पुस्तक इसी फैलोशिप कार्यक्रम के तहत प्रस्तुत किए गए शोध प्रबंध का रूपांतरण है। इस पुस्तक 'भारतीय प्राचीन बाल संस्कार परंपरा के विविध आयाम कल, आज और कल' में लेखक श्री विकास दवे ने अत्यंत ही विद्वत्तापूर्ण तरीके से विषय को सरल एवं ग्राह्य रूप से प्रस्तुत किया है जिसके लिए वे निश्चित ही बधाई के पात्र हैं।
किसी ने ठीक ही कहा है कि शिशु बहुत सी शिक्षा गर्भस्थ रहकर माँ के पेट में ही प्राप्त कर लेता है या सीख जाता है। उस समय माँ जो भी सोचती-गुनती है, उसका समस्त अच्छा-बुरा प्रभाव उस गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है।
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