भूमिका
"यदि पुरुष देश की शान है तो महिला उस देश की नींव है", ये विचार हैं भारतीय राज्य की राज्यपाल बनने वाली प्रथम महिला सरोजिनी नायडू के। आज के इस बदलती हुई दुनिया और बदलती हुई परिस्थिति में भारत वैश्विक स्तर पर अपनी अलग पहचान रखता है। हम सब देशवासी अपने आजादी के अमृतकाल में हैं, अपने देश के लिए हम सबकी ईश्वर से यही कामना होगी कि हमारे देश की उन्नति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाये। कितने संघर्ष और बलिदान के पश्चात भारत ने इस पथ को पाया है, ये हम सभी जानते हैं। अगर हम सोचें 1947 से पहले के भारत को तो एक अलग ही छवि हमारे मस्तिष्क में बनती है। तब देश गुलाम था, सामाजिक परिस्थिति बहुत ही भेद-भाव से पूर्ण थी, लोकतंत्र जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। गरीब और वंचित वर्गों के साथ अन्याय किया जाता था। महिलाओं को शिक्षा के अधिकार और सामान्य मानवीय अधिकारों से वंचित रखा जाता था। आज भारत में लोकतंत्र है, और हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है। वयस्क मताधिकार भारतीय संविधान की विशेषताओं में से एक है। यहाँ धर्म, जाति, लिंग, प्रांत भाषा आदि के भेद-भाव के बिना हर नागरिक को वोट की शक्ति दी गई है। यह भारतीय संविधान की विशेषताओं में से है, कि इसमें नागरिकों के अधिकार पर विशेष ध्यान दिया गया है। हर आदमी को मौलिक अधिकार प्राप्त है। जो सबसे कमजोर व्यक्ति है संविधान उसके अधिकारों की रक्षा की गारंटी देता है। सम्मान पूर्वक जीवन जीने की आजादी भारत के हर नागरिक को प्राप्त है और इस आजादी को पाने में पुरुषों के साथ महिलाओं की भी अहम भूमिका रही। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी के आवाहन पर लाखों की संख्या में महिलाएँ अपने घरों से बाहर निकल स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन चुकी थीं। दांडी मार्च से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन और संविधान निर्माण तक महिलाओं ने अपनी भूमिका से आधुनिक भारत के सपने को सजाया है। यह उस समय की बात है, जब पुरुषों की तुलना में महिलाओं की स्थितिः बहुत दयनीय थी, जहाँ उन्हें घर से निकलने पर अपराध माना जाता था, वहाँ वो सड़क पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पूरी हिम्मत से प्रदर्शन का हिस्सा रही थीं। कई महिलाओं को लाठियों और डंडों की मार भी सहनी पड़ी, उन्हें कालकोठरियों में बंद कर कई दिनों तक भूखा रखा जाता था। लेकिन यह एक विडंबना ही है, कि हम महिलाओं की उपलब्धि को वो सम्मान वो श्रद्धा नहीं दे पाते हैं, जिसकी वो हमेशा से हकदार रही हैं। इतने दिन बीत जाने के बाद भी महिलाएँ अपनी आजादी और अपने अधिकारों के लिए समाज और परिस्थिति से लड़ रही हैं। आज हमारे देश की महिलाएँ अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। अभी भी भारत में कुछ राज्य, कुछ जिले और कुछ गाँव ऐसे हैं जहाँ महिलाओं के लिए लोगों ने ऐसे समाज का निर्माण किया है, जहाँ उनके जीवन में कोई युगांतकारी परिवर्तन होता नहीं दिखाई पड़ता। दहेज और बाल विवाह आज भी समाज में व्याप्त है। सदियों से स्त्रियों को दोयम दर्जे पर रखा जाता रहा, जबकि वास्तविकता तो ये है कि कोई भी परिवार, समाज और देश स्त्री के बल पर ही अपनी पहचान प्राप्त करता है। स्त्री के बिना परिवार, समाज और देश किसी का भी अस्तित्व नहीं है। 1946 में जब संविधान सभा का गठन हुआ, तो उसमें महिलाओं ने भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित की.|
प्रस्तुत पुस्तक अपने शीर्षक 'वयं राष्ट्रे जागृयाम् -भारत में लोकतंत्र की संवैधानिक यात्रा' के अनुरूप ही, एक राष्ट्र के रूप में भारत की उस संवैधानिक यात्रा को समझने का प्रयास है, जिस यात्रा की शुरुआत वैदिककालीन भारत से होती है। वैदिक ग्रंथों में ही राष्ट्र एवं राष्ट्रीयता की संकल्पना का सर्वप्रथम दिग्दर्शन होता है। 'राष्ट्र' एवं 'राष्ट्रीयता' जैसे शब्दों का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्राचीन भारतीय समाज में इन अवधारणाओं की जीवंत अभिव्यक्ति वैदिक ग्रंथों में परिलक्षित होती है। इस प्रकार हम यह देखते हैं कि इस पुस्तक के माध्यम से जो यात्रा भारत की राष्ट्रीयता को समझने के प्रयास से प्रारंभ हुई थी, वह यात्रा कई महत्वपूर्ण पड़ावों से गुजरती है। लोकतंत्र की व्यावहारिकता, संवैधानिक मूल्यों का भारतीय परंपरा में निरंतर प्रवाह, इस पर भारतीय चिंतकों के विचार, विभिन्न कालखण्डों में भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था, वर्तमान लोकतंत्र की चुनौतियों एवं संभावनाओं को समझने का प्रयास इस यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव हैं। भारत की राष्ट्रीयता के आलोक में यह जो यात्रा प्रारंभहुई थी, वह अपने अंतिम पड़ाव पर भारत के उज्ज्वल लोकतांत्रिक भविष्य की संभावना पर आकर समाप्त होती है। इस पुस्तक यात्रा में एक राष्ट्र के रूप में भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के सभी आवश्यक पहलुओं को शामिल करने का प्रयास किया गया है।
लेखक परिचय
युवा लेखक अभिषेक कुमार सिंह वर्तमान में जवाहर नवोदय विद्यालय, पश्चिमी सिंहभूम में हिंदी शिक्षक के पद पर सेवारत हैं। इनका जन्म 24 फरवरी, 1999 को झारखण्ड के जमशेदपुर शहर में हुआ। स्कूली शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, पूर्वी सिंहभूम से प्राप्त करने के पश्चात् उच्च शिक्षा हेतु बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी का रुख किया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातक एवम् बी.एड. की शिक्षा प्राप्त करने वाले अभिषेक की गहरी रुचि इतिहास, दर्शन एवं साहित्य के साथ-साथ समसामयिक विषयों पर विचार अभिव्यक्ति में है। 31 अक्तूबर, 2022 को सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के अवसर पर संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित कार्यक्रम में झारखण्ड राज्य के प्रतिनिधि के रूप में भाषण देने का अवसर लेखक को प्राप्त हुआ।
पुस्तक परिचय
युवा लेखकों के लिए प्रधानमंत्री की मेंटरशिप योजना 'युवा' - YUVA 2.0 (युवा, उदीयमान और प्रतिभाशाली लेखक) यह पुस्तक युवा लेखकों के लिए प्रधानमंत्री की मेंटरशिप योजना 'युवा' (युवा, उदीयमान और प्रतिभाशाली लेखक) के अंतर्गत तैयार की गई पुस्तकमाला का हिस्सा है। इस योजना का उद्देश्य देश में पठन, लेखन एवं पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने तथा भारत व भारतीय लेखन को विश्व स्तर पर प्रस्तुत करने के लिए 30 वर्ष से कम आयु के युवा लेखकों को प्रशिक्षित करना है। इस योजना का पहला संस्करण वर्ष 2021-2022 के दौरान शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आज़ादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यान्वयन एजेंसी, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के साथ आजादी की 75वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आरंभ किया गया था। इसका दूसरा संस्करण वर्ष 2022 में शुरू किया गया। दूसरे संस्करण के अंतर्गत प्रकाशित पुस्तकें 'लोकतंत्र' विषय पर आधारित हैं, जिनमें भारत में लोकतंत्र के अतीत, वर्तमान एवं भविष्य के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है। भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली के विभिन्न आयामों के बारे में शोध एवं दस्तावेजीकरण को बढ़ावा देने हेतु यह विषय केवल भारतीय संदर्भ में लोकतंत्र पर आधारित है। इस योजना के अंतर्गत लेखकों का चयन समस्त 22 आधिकारिक भारतीय भाषाओं व अंग्रेजी में आयोजित अखिल भारतीय प्रतियोगिता के माध्यम से किया गया। इन लेखकों को अपनी मूल चयनित पुस्तक के प्रस्ताव को पूर्ण पुस्तक के रूप में विकसित करने के लिए राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा छात्रवृत्ति सहयोग सहित प्रतिष्ठित लेखकों/विषय-विशेषज्ञों द्वारा मार्गदर्शित किया गया।
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