जानती हो प्रिये, आजकल मैं लगातार जलाशय में स्नान करता रहता हूँ। थोड़े समय के लिए भी जब बाहर निकलता हूँ सूर्य की किरणें मेरे शरीर को तपाने लगती हैं। मैं पुनः जलाशय में प्रवेश कर जाता हूँ। इस तरह के उपक्रम से जलाशय का पानी धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। मुझे अपनी चिंता नहीं है पर मैं सोच रहा हूँ कि वे पशु पंछी जो केवल जलाशयों के जल पर ही निर्भर रहते हैं उनका क्या होगा। देखो, अगर तुम मेरी आँखों से देख सकती हो तो देखो, ठीक है, तुम नाराज मत होओ। मैं तुम्हारी आंखों से देखता हूँ। जलाशय के बीचों-बीच एक हंस का जोड़ा बैठा है। वे दोनों मुझे अपनी तपती नजर से देख रहे है। मुझसे कह रहे हैं- तुम कैसे प्रेमी हो? अपनी प्रियतमा से दूर रहकर अभी तक जल कर खाक नहीं हुए? तुम्हारे इस तरह के जीवन से संसार का हृदय जल कर सूखता जा रहा है। सभी पके फलों के रस, खेतों के अन्न और जलाशयों के जल अत्यंत कम हो गए हैं।
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