पुराविद् प्रो. आर.एन. विश्वकर्मा के 75वें जन्मोत्सव के अवसर पर प्रकाशित अभिनन्दनग्रंथ मूलतः तीन खण्डों में विभक्त है। ग्रंथ का प्रथम खण्ड प्रो, विश्वकर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व पर आधारित है। द्वितीय खण्ड में 41 विद्वानों के संस्मरण विवर्त हैं। ग्रंथ के तृतीय खण्ड में विभिन्न विषयों एवं विधाओं के स्थापित विद्वानों, शोधार्थियों के हिन्दी एवं आंग्ल भाषा में लिखे गए 88 शोधलेख समाहित हैं।
समस्त लेखों को विभिन्न स्तम्भों यथा-इतिहास-पुरातत्त्व; मूर्तिकला-प्रतिमा विज्ञान; स्थापत्य कला-पर्यटन; मुद्राएं-अभिलेख; शिक्षा-साहित्य-पर्यावरण; संगीत-नृत्य कला; चित्राकला-लोक जीवन; न्यायिक प्रशासन-विधि व्यवस्था; नाट्यकला एवं अन्य विविध विषयों में नियोजित किया गया है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल से सम्बंधित शोधलेख नवीन खोजों, शोधपरक सामग्री, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा गवेषणा के साथ विवेचित हैं। आशा है ग्रंथ न केवल इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति वरन साहित्य, संगीत एवं ललितकला के विद्वानों, पुराविदों, शोधार्थियों, जिज्ञासु पाठकों एवं आगत पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त करेगा। साथ ही ग्रंथ व्यक्तिगत एवं पुस्तकालयों के लिए भी संग्रहणीय है।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी डॉ. सरिता साहू का जन्म रायपुर में बसंत पंचमी के दिन एक संपन्न शिक्षक परिवार में हुआ था। उच्च शिक्षा पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय एवं इं क वि. वि. खैरागढ़ से हुई है। आपने पी-एच. डी. (इतिहास), एम. ए. (इतिहास), एम. ए. (लोकसंगीत), एम. ए. (प्राचीन भारतीय इतिहास), एम. ए. (अर्थशास्त्र), एम. एस सी. (गणित), बी. एड. की उपाधि प्राप्त की है।
मौखिक इतिहासकार के रूप में प्रतिष्ठित डॉ. सरिता साहू द्वारा रचित 1. 'छत्तीसगढ़ का राजनीतिक इतिहास', 2. 'अभिनंदन', 3. 'दसमत कैना', 4. 'छत्तीसगढ़ का अमर शहीद-वीरनारायण सिंह', 5. 'गांधीयुगीन आंदोलन और छत्तीसगढ़, 6. मौखिक परंपरा से इतिहास लेखन', 7. 'छत्तीसगढ़ का सामाजिक सांस्कृतिक व आर्थिक इतिहास' पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आपने 'मध्यप्रांत में राजनीतिक जागृति एवं स्वाधीनता संघर्ष', 'अमृत कलश' व 'अभिनंदन' ग्रंथ का संपादन भी किया है। 'कालापानी' व 'क्षेत्रीय इतिहास अध्ययन और देवार गीत' आपकी प्रकाशनाधीन पुस्तके हैं। आपकी पुस्तके विभिन्न विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रम के लिए संदर्भ ग्रंथ के रूप में शामिल है।
आपने 'अमर शहीद वीरनारायण सिंह' व 'छत्तीसगढ़ में गांधीयुगीन आंदोलन' तथा 'धरोहर दुर्ग जिला का इतिहास एवं संस्कृति' विषय पर डाक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण किया है। डॉ. साहू ने विभिन्न राष्ट्रीय मंचों में लोककला की प्रस्तुति भी दी है तथा नृत्य निर्देशक के रूप में लोककलाकारों को प्रशिक्षण भी दिया है। मान. राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह, मान. उपराष्ट्रपति मो. हिदायतुल्लाह, मान. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, मान, प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, मान. प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, मुख्यमंत्री श्री अर्जुनसिंह, श्री मोतीलाल वोरा इन प्रदर्शनों के साक्षी रहे हैं।
डॉ. सरिता साहू को 'भुईया सम्मान वर्ष 2014' छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग रायपुर द्वारा 'शिक्षक सम्मान-वर्ष 2017, रामप्यारा पारकर स्मृति सम्मान वर्ष 2023, साहित्य रत्न सम्मान वर्ष 2024 से सम्मानित किया गया है। डॉ. सरिता साहू विगत 18 वर्षों से शासकीय शैक्षणिक कार्य कर रही है।
अर्थात् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान समझकर, उसके बाद युद्ध के लिए तैयार हो जा। इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा। वस्तुतः जीवन जय-पराजय. सुख-दुख, लाभ-हानि एवं मान-अपमान का समन्वित रूप होता है। अस्तु उपर्युक्त भावनाओं से प्रेरित होकर अभिनन्दनग्रंथ के सम्पादन के दायित्व का निर्वहन कर रही हूँ। उल्लेख्य है कि मैनें खैरागढ़ से लोक संगीत विषय में एम. ए. किया था लेकिन पी-एच. डी. की उपाधि के लिये पं. रविशंकर वि. वि. रायपुर से इतिहास विषय के लिये मैं नामांकित हुई, तब प्रो. विश्वकर्माजी 'कला वैभव' शोध जर्नल के मुख्य संपादक थे। शोध लेख छपवाने के लिये मैंने विश्वकर्माजी से संपर्क किया। लोक संगीत के मेरे गुरुवर प्रो. भरत पटेलजी ने विश्वकर्माजी से परिचय कराते हुए कहा था कि शोध सम्बंधी कोई भी जानकारी आप सर से ले सकती हैं। उस समय विश्वकर्माजी ने मेरी पी-एच. डी. हेतु कुछ सुझाव दिये थे, जो मेरे लिए मील का पत्थर सिद्ध हुआ। उसके बाद से मैं प्रायः विश्वकर्मा सर से किसी भी समस्या पर निःसंकोच सुझाव लेती रही। आप से प्रभावित होकर मैंने प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विषय में एम. ए. भी किया। आपके मार्गदर्शन में मेरे कई शोधलेख 'कला वैभव' में प्रकाशित हुए। प्रो. विश्वकर्मा जी के आचरण, सद्व्यवहार एवं विद्वता से मैं सदा प्रभावित रही। जब मैं उनके जीवन रूपी वातायन से देखती हूँ तो पाती हूँ कि पुराविद् प्रो. विश्वकर्मा में एक आदर्श शिक्षक, सहयोगी, प्रेरणास्रोत, सदाचारी व्यक्तित्त्व के धनी, एक धर्मनिष्ठ पति एवं योग्य पिता के सभी लक्षण सहज ही दिखायी देते हैं।
प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रंथ मूलतः तीन खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में प्रो. विश्वकर्माजी के व्यक्त्तित्त्व एवं कृतित्त्व पर प्रकाश डालने का एक लघु प्रयास है। साथ ही उनके द्वारा लिखित उनके जीवन की अविस्मरणीय घटनाओं को संस्मरण के रूप में समाहित किया गया है। द्वितीय खण्ड में स्वजनों एवं विद्वत्जनों यथा-लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों, शुभ चिन्तकों एवं शोधार्थियों से प्राप्त कुल 41 संस्मरणों को स्थान दिया गया है। तृतीय खण्ड में विद्वानों एवं शोधार्थियों से प्राप्त शोधलेखों को हिन्दी खण्ड (Hindi Section) एवं आंग्ल खण्ड (English Section) के अन्तर्गत विविध स्तम्भों में उनके विषय-वस्तु के अनुसार वर्गीकृत किया गया है। स्मृतिशेष नामक स्तम्भ के अन्तर्गत प्रो. राधेश्याम जायसवाल द्वारा सर विलियम जोंस के व्यक्त्तित्त्व तथा कार्यों पर गहन प्रकाश डाला है। डॉ. कृष्ण कुमार त्रिपाठी ने भारतीय संस्कृति के पुरोधा प्रो. के. डी. बाजपेयी एवं पुराविद् श्री शंकर तिवारी के व्यक्त्तित्त्व एवं कृतित्त्व के अनछुए पहलुओं पर तथा प्रो. आर. एन. विश्वकर्मा द्वारा छत्तीसगढ़ के बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय के अवदान को उद्घाटित किया गया है।
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