पानी हमारी प्राथमिक आवश्यकता है। पानी का हमें कितना व किस प्रकार उपयोग करना चाहिए, यह आज गंभीरता से सोचने का सवाल बन गया है।
पानी का असीमित व अखूट भंडार है ऐसी नासमझी भरी सोच के कारण लोगों को पानी का अनावश्यक उपयोग करने की बुरी आदत पड़ गई है। इसके अलावा, पानी हमें मुफ्त या बहुत सस्ता मिलता है, इसलिए पानी के मूल्य को हम नहीं समझ सके। लेकिन पानी न हो तो क्या होगा, इस बारे में किसी ने विचार किया है क्या?
'बूंद-बूंद से सरोवर भर जाता है' कहावत के अनुसार बूंद-बूंद से सरोवर खाली भी हो जाता है, यह स्मरण रखने योग्य बात है। पानी का दुरुपयोग आखिरकार पानी की कमी उत्पन्न करता है।
हमारे देश में केवल 75% पीने योग्य साफ पानी है। वाष्पीकरण और असावधानी की वजह से होने वाले बिगाड़ आदि के कारण 60 से 65% जल किसी के भी उपयोग में नहीं आ पाता है। जल प्रदूषण की समस्या सामने दिखाई दे रही है। इससे भी कई गुना गंभीर अन्य समस्याएं हैं। एक ओर तो हर वर्ष धरती पर वर्षा का जल घटता जा रहा है तो दूसरी ओर धरती के भीतरी जल भंडार को अधिक-से-अधिक उपयोग में लिया जा रहा है। पानी के उचित प्रबंधन का अभाव हमारे रोजाना के जीवन में पानी की कमी का मुख्य कारण है।
जो वस्तु आसानी से मिल जाती है उसकी कीमत मनुष्य नहीं समझता है। पानी के बारे में ऐसा ही हुआ।
पिछले एक-दो दशक में देश के अनेक प्रांतों में जल समस्या ज्यों-ज्यों विकट बनती गई त्यों-त्यों लोगों, खासकर ग्रामीण जनता व किसानों, को पानी का मूल्य समझ में आने लगा। पिछले कुछ वर्षों में अनेक प्रांतों में जल समस्या बढ़कर इतनी गंभीर बन गई है कि सरकारी तंत्र इस समस्या को खत्म करने में अपर्याप्त साबित हो रहा है। पानी की समस्या के समाधान के लिए अरबों रुपए खर्च किये गए, मगर पानी की समस्या हल होने की अपेक्षा और अधिक बढ़ती ही गई।
'आवश्यकता आविष्कार की जननी है', इस कहावत के अनुसार लोग पानी की समस्या को दूर करने के लिए नए-नए साधन ढूंढ़ने लगे। पानी की समस्या पर काम करने वाली सेवाभावी तथा स्वैच्छिक संस्थाओं को लोग सहायता देने लगे। पानी की कमी वाले प्रांतों में कहीं-कहीं सफल प्रयोग हुए। ये प्रयोग प्रेरणादायक होने के साथ-साथ अनुकरणीय भी हैं। इस प्रयोग के अच्छे परिणाम भी अब सामने दिखाई पड़ने लगे हैं।
सामान्यतया आम आदमी ऐसा सोचता है कि पैसा, सरकारी सहायता या जनता से बड़ी सहायता के बिना कोई कार्य कैसे हो सकता है? परंतु बात ऐसी नहीं है। बजट के अनुसार सरकार कार्य तो करती ही है। देश-विदेश की सहायता व जनता की मदद से अनेकानेक स्वैच्छिक संस्थाएं भी कार्य कर रही हैं। आजादी मिलने के बाद से ही यह सब हो रहा है। फिर भी आज जन-सहयोग व जन-जागृति की आवश्यकता सभी स्वीकार करते हैं। पानी के रखरखाव के लिए यह मूल मुद्दा है।
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