वे तीन सामाजिक वर्ग हैं-
(1) जरायमपेशा जातियाँ, जिनकी जनसंख्या लगभग दो करोड़ है।
(2) आदिवासी जातियाँ, जिनकी जनसंख्या लगभग डेढ़ करोड़ है।
(3) अछूत जातियाँ, जिनकी जनसंख्या लगभग पाँच करोड़ है।
इन वर्गों का अस्तित्व एक जुगुप्सा का विषय है। यदि हिन्दू सभ्यता को इन वर्गों के जनक के रूप में देखा जाए, तो वह 'सभ्यता' ही नहीं कहला सकती। वह तो मानवता को दबाये तथा गुलाम बनाये रखने के लिए शैतान का षड्यन्त्र है। इसका ठीक नामकरण 'शैतानियत' होना चाहिए। उस सभ्यता को हम और क्या नाम दें, जिसने ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या को जन्म दिया हो, जिन्हें यह शिक्षा दी जाती है कि अपराध के माध्यम से जीविका चलाना जीविकोपार्जन का एक मान्य 'स्वधर्म' है। दूसरी बड़ी संख्या, सभ्यता के बीचोबीच अपनी आरम्भिक बर्बर अवस्था बनाये रखने के लिए स्वतन्त्र छोड़ दी गयी है और एक तीसरी बड़ी संख्या है।
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