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शब्द, समय और संस्कृति- Word, Time and Culture (Essays)

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Writers honoured with 'Gyanpeeth Award'

Specifications
Publisher: Vani Prakashan
Author Sitakant Mahapatra
Language: Hindi
Pages: 117
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 260 gm
Edition: 2024
ISBN: 9789357756983
HBR298
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Book Description
पुस्तक परिचय
किसी बड़े लेखक की शक्ति और सामर्थ्य उसकी इस क्षमता पर निर्भर होती है कि वह किसी पाठक के विश्वास की विचलित कर दे। कहा जा सकता है कि इस आधुनिक प्रतिमान के आधार पर, जहाँ सिद्धान्त और कला में एक अन्तहीन संघर्ष चलता रहता है, डॉ. सीताकान्त महापात्र भारत के समकालीन महान लेखकों में से एक हैं। इस संग्रह-शब्द, समय और संस्कृति के निवन्ध साक्षी हैं कि सीताकान्त महापात्र के रचना-कर्म और चिन्तन में भारतीय मिथकीय परम्परा तथा भक्ति-साहित्य, यूरोपीय आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकतावाद तथा अपने गृह-प्रदेश उड़ीसा के ग्रामांचल, लोक-जीवन एवं लोक-साहित्य का महासंगम है। अपनी सर्जनात्मक वैचारिकता के माध्यम से उन्होंने आधुनिक भारतीय साहित्य और चिन्तन को एक नया लोकाचार और अर्थ दिया है, एक ऐसी सृजन-संस्कृति दी है जिसमें औदात्य और पार्थिवता समान रूप से विद्यमान है। यथार्थ के गझिन और गतिशील रूपों की अभिव्यक्ति के साथ ही इन निवन्धों में सर्जनात्मक तनाव की दीर्घकालिकता, विविधता और निरन्तरता भी सहज ही मौजूद है। 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित सीताकान्त महापात्र के गम्भीर चिन्तनपरक वैचारिक निवन्धों का यह संग्रह हिन्दी के पाठकों के लिए पहली बार प्रस्तुत है।

लेखक परिचय
17 सितम्बर, 1937 को महंग, उड़ीसा में जन्म। उत्कल, इलाहावाद तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा। 1975-77 में होमी भामा फैलोशिप पाकर, भारतीय आदिम समुदायों की आधुनिकीकरण प्रक्रिया का अध्ययन । अब तक उड़िया में वारह कविता-संग्रह; चार निवन्ध-संग्रह प्रकाशित। भारतीय जनजातियों के वाचिक काव्य का अनुवाद करके नो कविता-संग्रहों का सम्पादन । साहित्य-समीक्षा एवं ललित कलाओं पर भी कई पुस्तकें प्रकाशित। अधिकांश रचनाएँ हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के अलावा स्पेनिश, फ्रेंच, जर्मन, रूसी, स्वीडिश, रोमानियन, डेनिश, हेब्रू, मेसीडोनियन आदि अनेक विदेशी भाषाओं में अनूदित । भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनकी अनूदित रचनाएँ हैं: समय का शेष नाम, लौट आने का समय, तीस कविता वर्ष, पदचिह्न (कविता संग्रह); अनेक शरत् (यात्रा-वृत्तान्त) तथा शब्द, समय और संस्कृति (निवन्ध-संग्रह)। 'ज्ञानपीठ पुरस्कार', 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार', 'कुमार आशान पुरस्कार', 'सोवियत लैण्ड पुरस्कार', 'सारला पुरस्कार', उड़ीसा राज्य का 'कल्चर अवार्ड' तथा 'विषुव अवार्ड' से सम्मानित । यूनेस्को की सांस्कृतिक मामलों की अन्तरराष्ट्रीय समिति के पूर्व अध्यक्ष एवं नेशनल बुक ट्रस्ट, नयी दिल्ली के पूर्व चेयरमैन । सम्पर्क : 21, सत्यनगर, भुवनेश्वर (उड़ीसा)।

दो शब्द
बहते समय के प्रवाह में कोई स्थिर बिंदु नहीं होता। फिर भी, समाज और मनुष्य उस गतिशीलता में थोड़ी स्थिर भूमि, थोड़ा आधार ढूँढ़ ही लेता है। इस अन्वेषण का रूपायन ही संस्कृति का एक अन्य नाम है। संस्कृति का स्वरूप कुछ हद तक शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। जो शब्दों से परे है मनुष्य उसे भी शब्द-सीमा में समेटने की चेष्टा करता है। इसलिए समय संस्कृति का जनक और स्रष्टा है। समय ही शब्द का जनक है, परंपरा का स्रष्टा है। इस पुस्तक में संकलित आठ निबंधों में शब्द, समय और संस्कृति के इसी अनिवार्य, अपेक्षित और अंतरंग संबंधों पर कुछ विचार किया गया है।

भारतीय परंपरा विश्व-सभ्यता के इतिहास में एक सुदीर्घ और जटिल परंपरा है। बल्कि यह परस्पर-संश्लिष्ट विविध परंपराओं का एक घुलामिला रूप है। इस परंपरा को समझने के लिए भिन्न-भिन्न प्रासंगिक दृष्टिकोण आवश्यक है जो इन परंपराओं को समय की तेज गति के परिप्रेक्ष्य में देख सके और उसकी अनेक परस्पर विरोधी अभिव्यक्तियों को समझ सके। भारतीय परंपरा की पुनर्व्याख्या कदापि सहज नहीं। ऐसा करने के लिए जिस मांनसिक तैयारी की जरूरत होती है उसके लिए बंधन और मुक्ति, सीमा और असीम के आपसी संबंधों को ध्यान में रखना होगा। जगन्नाथ संस्कृति इसी परंपरा की एक दृढ़ और वर्णाढ्य अंग है जिसमें धार्मिक चेतना, साहित्य और सामाजिकता एक साथ दिखाई देते हैं। संकलन के तीन निबंधों में परंपरा और संस्कृति को अलग-अलग दृष्टियों से समझने का एक प्रयास है।

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