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ये तरकश के तीर- Ye Tarkash Ke Teer (Doha Samagra)

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Specifications
Publisher: LITTLE BIRD PUBLICATIONS, DELHI
Author Hareram Sameep
Language: Hindi
Pages: 312
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 430 gm
Edition: 2025
ISBN: 9789363066212
HBZ899
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Book Description

पुरोवाक्

यह कहावत बड़ी प्रसिद्ध है-एक तंदुरुस्ती हजार नियामत ।

दुनिया में एक से बढ़कर एक बहुमूल्य चीजें हैं, परंतु इनमें से एक चीज सबसे अनमोल है, और वह है सेहत, उत्तम स्वास्थ्य। जीवन में इससे बढ़कर कुछ भी नहीं। इस जीवन की सार्थकता स्वास्थ्य से ही है। स्वास्थ्य जैसे अमूल्य रत्न को एक बार खोकर पुनः प्राप्त करना बड़ा मुश्किल हो जाता है। अतः इस स्वास्थ्य की रक्षा करना सर्वप्रथम कर्तव्य है। प्रत्येक मानव के लिए यह परम आवश्यक है कि वह स्वास्थ्य रक्षा करे।

मानव का बीमारियों से चोली-दामन का साथ रहा है। मैंने क्या, शायद आपने भी कभी न सुना होगा कि कोई व्यक्ति जीवन भर बीमार न हुआ हो।

मनुष्य जब-जब प्रकृति के विपरीत जाता है तब-तब रोगों की पकड़ में आ जाता है। पंच भौतिक शरीर में कफ, वात और पित्त के वैषम्य से रोगों का जन्म होता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए सर्वत्र एक ही बात कही गई है-प्रकृति के साथ चलो। आज की भागमभाग जिन्दगी, खाद्य वस्तुओं में मिलावट, प्रदूषण तथा कृषि में रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के अधिकाधिक इस्तेमाल से अनेकानेक बीमारियाँ बढ़ती ही जा रही हैं।

प्रकृति ने मानव को स्वस्थ पर्यावरण के साथ-साथ अनेक अनमोल उपहार भी दिये हैं, और ये उपहार हैं-फूल, फल, कंद एवं शाक-सब्जी। अपने दैनिक जीवन में, बारहों मास किसी न किसी रूप में हम इनका सेवन अवश्य करते हैं। परंतु इन्हें हम मात्र स्वाद लेने या तबीयत खुश करने के लिए ही खाते हैं; लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि नित्य उपयोग में आने वाली इन चीजों (शाक-सब्जी) में कितने रोगनाशक और औषधीय गुण विद्यमान हैं। समझ लीजिए, कल्पना से भी परे। अगर हम सब इन सहज-सुलभ चीजों के बारे में जरा सी भी जानकारी रखें या इनसे परिचित हो जाएँ तो घर परिवार में, रोजमर्रा की जिन्दगी में होने वाली छोटी-मोटी बीमारियों के उपचार के लिए चिकित्सकों और डॉक्टरों के पास दौड़ना न पड़े; उनकी मोटी-मोटी फीस शायद न भरनी पड़े, और उनके क्लीनिकों में घंटों इंतजार न करना पड़े।

देसी चिकित्सा पद्धति हमारे घरेलू उपचार हैं, जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे समाज में, हमारे घर-परिवारों में प्रचलित रहे हैं। लेकिन आज भौतिक सुविधाओं पर आश्रित, आरामपस्ती की आदत तथा तुरंत फायदे के चक्कर में हमने अपने घरेलू उपचारों को भुला दिया है। चहुँओर एलोपैथी का बोलबाला हो गया है। परंतु आज हम ही क्यों, दुनिया भर के अधिकांश लोग अंग्रेजी दवाओं के दुष्प्रभावों से तंग आ गए हैं और वे सब के सब आयुर्वेद तथा देसी चिकित्सा की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अंग्रेजी दवाओं से विमुख होने का सबसे बड़ा कारण है कि ये दवाएँ रोग से क्षणिक और तुरंत राहत तो दिलाती हैं; परंतु इनका शरीर पर विपरीत प्रभाव (साइड इफैक्ट) अवश्य पड़ता है। इसके विपरीत देसी चिकित्सा में इतनी निश्चिंतता तो अवश्य है कि रोगी दवा की कम मात्रा खाए या ज्यादा, कोई चिंता की बात नहीं; रोग में आराम भले ही देर से मिले, लेकिन शरीर पर दुष्प्रभाव (साइड इफैक्ट) किसी भी प्रकार का नहीं पड़ता है। देसी औषधियाँ रोग को दबाती नहीं हैं; बल्कि धीरे-धीरे रोग का समूल नाश कर देती हैं। इसलिए अमेरिका जैसा प्रगतिशील और आधुनिक तकनीकी संपन्न राष्ट्र अपने यहाँ आयुर्वेद चिकित्सा और शोध को प्रोत्साहन दे रहा है।

यह पुस्तक लिखने का उद्देश्य इतना ही है कि हमारे घर और रसोई में जो चीजें उपलब्ध हैं, उन्हीं के द्वारा दैनिक जीवन में होने वाली बीमारियों का तुरंत उपचार कर लिया जाए। ये घरेलू नुस्खे इतने सरल और सहज सुलभहैं कि इनके लिए बाजार जाने की जरूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा एक उद्देश्य अपनी देसी और घरेलू चिकित्सा को जीवंत और विकसित करना भी है। इसी के साथ कृषक भाइयों, शाक-सब्जी एवं बागवानी में लगे बंधुओं से विनम्र आग्रह है कि खाद्य-वस्तुओं (फसलों), जैसे शाक, सब्जी, फल आदि उगाते समय रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का अधिक इस्तेमाल न करके फसल में देसी खाद (कंपोस्ट व पत्ती वाली) उपयोग करें तो जनमानस पर उनका बड़ा उपकार होगा।

हालाँकि इस विषय पर बाजार में पुस्तकों की भरमार है; पर सबकी सब पुस्तकालयों की शोभा बढ़ा रही हैं और पाठकों को छल रही हैं। उनमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो पाठक अपने जीवन में उनका उपयोग कर कुछ लाभ उठा सकें। लेकिन प्रस्तुत पुस्तक 'सेहत की खान शाक-सब्जियाँ' उन सब से अलग सरल भाषा में सब वर्गों के लिए उपयोगिता की दृष्टि से अनुपम है।

प्रस्तुत पुस्तक में वर्ष भर दैनिक रूप में उपयोग की जाने वाली सब्जियों का सांगोपांग वर्णन है। उनके वानस्पतिक नाम, कुल आदि के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं में इनके नाम भी दिए गए हैं। सब्जियों में पत्तेवाली शाक, गाँठवाली, फली के रूप में उपयोग की जाने वाली सब्जियाँ तथा कंदवाली-लगभग सभी प्रकार की सब्जियों की पहचान, उनका स्वरूप, गुण, उपयोग तथा विभिन्न रोगों में औषधीय उपयोग दिये गये हैं। इमली चूँकि सब्जी नहीं है, लेकिन इसका सर्वाधिक उपयोग सब्जियों के घटक के रूप में ही है और इन्हें सुस्वादु बनाने के लिए उपयोग किया जाता है; अतः मैंने इसे सब्जियों में स्थान दिया है। इसी प्रकार नीबू एक फल है, और औषधीय गुणों की खान है। इसका सर्वाधिक उपयोग रसोई में साग-सब्जियों, दालों आदि को स्वादु बनाने या शरबत-शिकंजी बनाने या सलाद के रूप में ही है, अन्यत्र इसकी उपयोगिता नहीं है; अतः मैंने इसे भी सब्जियों में शामिल किया है। हरा धनिया बेशक मसाले में गिना जाता है, परंतु सब्जियों, दालों, सलाद, शरबत, शिकंजी आदि को सुगंधित, स्वादु और लज्जतदार बनाने के लिए सर्वाधिक किया जाता है

संतुलित एवं पौष्टिक भोजन में चटनी और अचार का महत्त्व भी कम नहीं है। दैनिक व्यवहार में इनका उपयोग हर घर-परिवार की रसोई, ढाबा, होटल, रेहड़ी आदि पर होता है। सलाद भोजन को पचाने में बड़ी मदद करता है। चटनी तरह-तरह की बनाई जाती है, इससे खाने का स्वाद बढ़ जाता है, बल्कि भूख भी चमक उठती है। अचार भी कई प्रकार के बनाये जाते हैं-खट्टे, मीठे, तीखे। अचार एक प्रकार से सदाबहार सब्जी की तरह है। हमेशा तैयार अवस्था में रहता है; घर में, यात्रा में भी इन पर भरोसा किया जा सकता है, अतः भोजन में उपयोगिता की दृष्टि से इनका भी थोड़ा-थोड़ा जिक्र इस पुस्तक में है।

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