योग शब्द अपने-आपमें बहुत गूढ़ है जिसका अर्थ बहुत व्यापक है। किन्तु, आजकल योग के कुछ अंग जैसे आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि को या इन सबको भी अलग-अलग योग का नाम दे दिया गया है, जबकि देखा जाये तो ये केवल योग के अंगमात्र हैं। योग तो एक समग्र जीवन पद्धति है, जिसका अभ्यास केवल प्रातःकाल या सायंकाल या किसी समयविशेष में ही किया जाये ऐसा नहीं है, बल्कि जबसे हमारी आँख खुलती है और जब तक हम सोते हैं और सोने के बाद भी योग का अभ्यास सत्त चलता रहे वही वास्तव में योग है। यदि दार्शनिक रूप में चिन्तन किया जाये तो ऐसा प्रतीत होता है कि योग से ही यह सृष्टि उत्पन्न होती है और योग से ही यह सृष्टि चल रही है। योग के लिए ही चल रही है। शास्त्रों में योग की विभिन्न परिभाषाएँ दी गई हैं जिनमें उलझकर व्यक्ति योग का वास्तविक अर्थ नहीं जान पाता। इसी प्रकार योग के विभिन्न मार्गो के विषय में पढ़कर भ्रान्ति उत्पन्न हो जाती है कि वास्तव में कौन सा मार्ग उचित है। भाष्यकारों एवं लेखकों ने अपने-अपने तरीकों से योग को समझाने का प्रयास किया है।
मन में विचार आया कि योगविद्या को प्रकाशित करनेवाली एक ऐसी सरल पुस्तक की रचना करना चाहिए जिसको पढ़कर न केवल योगसाधक अपितु सामान्य मनुष्य भी योग के अर्थ को समझकर उससे लाभ प्राप्त कर सके। हमने विभिन्न शास्त्रो में वर्णित योगविद्या का परिचय यहाँ देने का प्रयास किया है। इस पुस्तक में योग की विभिन्न परिभाषाओं के गूढ़ अर्थ को हमने सरलतम रूप में समझाने का प्रयास किया है। और, योग का वास्तविक अर्थ क्या है, ऋषियों ने योग के अलग-अलग मार्ग क्यों बताये हैं और उनका उद्देश्य क्या है ये भी समझाने का प्रयास किया है।
पुस्तक की रचना इस प्रकार की गई है कि इससे सामान्य योग-जिज्ञासु, योगसाधक एवं योग के विद्यार्थी लाभान्वित हो सकें। योग-विषय इतना व्यापक है कि उसे एक पुस्तक में समेटना बड़ा ही दुष्कर कार्य है। सभी पाठकों से भी आग्रह है कि यदि कहीं कोई त्रुटि अनुभव हो तो हमें अवगत कराने का कष्ट करें, जिससे अगले संस्करण में उन त्रुटियों का सुधार किया जा सके।
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