| Specifications |
| Publisher: Vani Publications | |
| Author: के.एन. राव (K.N. Rao) | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 352 | |
| Cover: Paperback | |
| 8.5 inch X 5.5 inch | |
| Weight 390 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 8189221671 | |
| NZA809 |
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पुस्तक के विषय में
भारत की सनातन परम्परा अक्षुण्ण भाव से जीवित रहने का मुख्य कारण है कि भारत विष्णुपुराण के कथानुसार कर्म भूमि है, भोग भूमि नहीं- अर्थात् जन कल्याण के लिए कर्म करना।
यह कर्म भारत के उन सन्यासियों ने, चाहे वे किसी भी मत के क्यों ना हों, सदैव किया है और सदैव करते रहेंगे।
प्रश्न यह उठता है आज भी भारत के विभिन्न भागों में महान साधु संग दृष्टिगोचर होते हैं क्या? उत्तर है कि हाँ।
यह पुस्तक कुछ ऐसे ही संतों की कहानी है जो एक भ्रमणशील व्यक्ति ने, उनका सत्संग करके, उसका लाभ उठाकर, आपके सामने प्रस्तुत किया है।
आभार
यह पुस्तक अंग्रेजी में पन्द्रह वर्ष पूर्व छपी थी । कई बार मैंने सोचा कि हरो हिन्दी में भी लिखूं मगर अव्वल तो मैं हिंदी टाइप नहीं कर पाता और अगर कुछ लिखता भी है तो मेरी रफ्तार बेहद धीमी है । इसीलिए हिंदी में इसे लिखने का विचार टलता ही गया।
सौभाग्यवश मेरी एक पूर्व शिष्या पद्मजा ने इसे अनुवादित करने का प्रस्ताव रखा और मैंने सहर्ष इसकी अनुमति दे दी । यह पुस्तक उन्ही के विशेष श्रम का संतोषजनक परिणाम है। इसलिए सर्वप्रथम मैं पद्मजा के प्रति अपना आभार प्रकट करता है।
मेरा हार्दिक आभार उन महात्माओं और साधकों के प्रति लै जिनके सान्निध्य में मैंने आध्यात्मिक जीवन के रहस्यों को प्रल्यक्षत: समझा। विष्णु पुराण में भारत को कर्म भूमि क्यों कहा गया है, यह बात भी मैंने उन्हीं से जानी।
वर्तमान समय में दुनिया को गंभीर संकट से बचाने का दायित्व भारत पर है। हमारी आध्यात्मिक परम्परा को बड़े पैमाने पर प्रसारित करने का भार देश की वर्तमान और भावी पीढ़ी पर है। इसलिए जब पाश्चात्य सभ्यता के भूत को सिर रो उतारकर उत्तम चरित्र के साथ भारत की सनातन परम्परा में निष्ठा रखने वाली हमारी पीढ़ी देश का नेतृत्व संभालेगी, तब दुनिया को उस शांति और स्थायित्व का अनुभव होगा जो आणविक विनाश के साथ दो महायुद्ध झेल चुकी दुनिया के लिए एक सपना ही बनकर रह गया है।
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विषय-सूची |
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|
आभार |
3 |
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निष्ठा |
4 |
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लेखक परिचय |
5 |
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अध्याय 1 |
वह महान गुरु |
10 |
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अध्याय 2 |
गुरु के जीवन का संक्षिप्त रेखा चित्र |
33 |
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अध्याय 3 |
प्रभु बिजयकृष्ण गोस्वामी (गुरु के गुरु) |
44 |
|
|
अध्याय 4 |
मेरी अपने गुरु से मुलाकात |
53 |
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|
अध्याय 5 |
जागृत कुंडलिनी |
65 |
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|
अध्याय 6 |
ज्योतिषीय निर्देश |
77 |
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|
अध्याय 7 |
प्रारब्ध (नकारात्मक पक्ष) |
89 |
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|
अध्याय 8 |
रोकड़िया हनुमान बाबा (बाबा प्रभुदास) |
104 |
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|
पूर्व निर्धारित साधना |
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अध्याय 9 |
मेरे ज्योतिष गुरू। |
121 |
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|
अध्याय 10 |
मेरे ज्योतिष गुरू-।। |
136 |
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|
अध्याय 11 |
प्रारब्ध एवं दैवी आनंद |
145 |
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|
अध्याय 12 |
नागरी दास बाबा |
165 |
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|
अध्याय 13 |
रंगा अवधूत |
187 |
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अध्याय 14 |
योगियों का धर्म |
209 |
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अध्वाय 15 |
सावधानी एवं चेतावनी |
216 |
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अम्भाय 16 |
आध्यात्मिक ऊर्जा से उद्भुत आनंद-I |
231 |
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|
(मेरी कहानी) |
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अध्याय 17 |
आध्यात्मिक ऊर्जा से उद्भुत आनंद-II(मेरी कहानी) |
254 |
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|
अध्याय 18 |
आध्यात्मिक ऊर्जा से उद्भुत आनंद-III |
270 |
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|
(बटुक भाई) |
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अध्याय 19 |
आध्यात्मिक ऊर्जा से उद्भुत आनंद-IV(श्रीमती ' 'एस' ') |
274 |
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|
अध्याय 20 |
281 |
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|
आध्यात्मिक ऊर्जा से उद्भुत आनंद-V |
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(एस.डी.) |
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अध्याय 21 |
आध्यात्मिक ऊर्जा से उद्भुत आनंद-VI |
290 |
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|
(दो दिव्यात्माओं की कथा) |
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|
अध्याय 22 |
दृष्टा योगी |
298 |
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|
अध्याय 23 |
ज्योतिष जब क्सोति जगासे |
307 |
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|
अध्याय 24 |
प्रदीप्त स्मृतियँ |
320 |
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|
अध्याय 25 |
ज्योतिष करें ही क्यौं |
328 |
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|
अध्याय 26 |
काव्यात्मक मार्गदर्शन |
333 |
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|
अध्याय 27 |
दैवी आनंद एवं भ्रम |
345 |
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