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गोरखनाथ (हिंदी सौरत्न माला-1) - Gorakhnath (Hindi Sauratna Mala-1)

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Specifications
Publisher: Central Institute Of Hindi, Agra
Author Nand Kishore Pandey
Language: Hindi
Pages: 157
Cover: PAPERBACK
9x6 inch
Weight 262 gm
Edition: 2021
ISBN: 9788195301805
HBI896
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Book Description
संपादकीय

हिंदी सौरत्न माला पुस्तक श्रृंखला की परिकल्पना मुख्यतः हिंदी की उच्चतर कक्षाओं के विद्यार्थियों को हिंदी साहित्य के सौ सुविख्यात रचनाकारों से परिचित कराने के उद्देश्य से की गई है। सुनिश्चित साहित्यिक प्रतिष्ठा के अलावा इन रचनाकारों का अकादमिक महत्व भी है।

सर्वविदित है कि हिंदी के अखिल भारतीय समावेशी स्वरूप को विकसित करने में इसके साहित्य का ऐतिहासिक योगदान रहा है जिसकी तत्यत्र चर्चा की जाती है। 'हिंदी सौरत्न माला' पुस्तकों के माध्यम से हिंदी साहित्य की राष्ट्रव्यापी संवेदना और स्वीकार्यता का पक्ष भी मुखरित होता है। इस पुस्तक श्रृंखला का प्रथम पुष्प संत-कवि गुरु गोरखनाथ को समर्पित है। अपने विशिष्ट ज्ञानानुभव, सामाजिक संवेदना और रचनात्मक संदेश के कारण वे हिंदी की गुरु परंपरा के आदि गुरु कहे जा सकते हैं। अपनी बानी में वे सदैव जीवंत और जाग्रत हैं। शिष्य के रूप में वे गुरु को जगाने वाले शिष्य हैं। इसलिए उनका स्मरण और प्रथम वंदन हिंदी का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दाय है। गोरखनाथ के गुरु-भाई सिद्धों की संख्या बड़ी है लेकिन इनमें से सबसे बड़ी और लगभग एक हजार वर्षों से विद्यमान शिष्य परंपरा के प्रतिष्ठाता गुरु गोरखनाथ बनते हैं। भारतीय धर्म-दर्शन एवं साहित्य की भूमि पर वे नाथ पंथ के मुकुटमणि हैं। परंपरा उन्हें 'शिवगोरक्ष' और 'नाथदैवत' की महनीय संज्ञा से विभूषित कर साक्षात् शिवस्वरूप मानती है। माना जाता है कि अपने भक्तों के प्रति असीम अनुराग पूर्वक स्वयं भगवान शिवगोरक्ष स्वरूप में आकर योगानुशासन का उपदेश देते हैं।

गुरु गोरखनाथ की यश पताका देश-काल की सीमाओं को अतिव्याप्त करते हुए सांस्कृतिक भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक विद्यमान है। नेपाल राजवंश की स्थापना उनके चरण प्रसाद से हुई। नेपाल राजवंश के राजचिन्हों पर अंकित चरण पादुका उन्हीं की हैं। उन्हीं की कृपा से प्राप्त तलवार से बप्पा रावल ने चित्तौड़ राज्य की स्थापना की। धार्मिक उपाख्यानों में वे कृष्ण से लेकर दत्तात्रेय तक के उपास्य रूप में प्रतिष्ठित दिखाई देते हैं। कबीर उनका स्मरण श्रद्धापूर्वक करते हैं। हिंदी साहित्येतिहास में उनके समय को लेकर नवीं से बारहवीं शताब्दी तक अलग-अलग आग्रह हैं, वहीं लोक परंपरा में महाभारत के भीम से संवाद करते दिखाई देते हैं। इन समस्त तथ्यों से भारतीय लोक-जीवन और साहित्य में गुरु गोरखनाथ की अतिशय प्रतिष्ठा और श्रद्धा का भाव पुष्ट होता है।

गोरखनाथ जी हिंदी साहित्य के आदि काल में नाथ साहित्य परंपरा के प्रणेता है। उनके द्वारा रचित चालीस के आस-पास रचनाओं का उल्लेख मिलता है। इनमें गोरखबानी सर्वप्रमुख है। अपनी रचनाओं में उन्होंने योग साधनों के विभिन्न चरणों के साथ तप, स्वाध्याय और एकात्म ईश-निष्ठा पर बल दिया है जिसकी अंतिम अवस्था में साधक शुद्ध चैतन्य प्रकाश-स्वरूम हो जाता है।

गोरखनाथ के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अब तक जितना लिखा-जाना गया है, इस पर उससे कहीं अधिक अध्ययन और अनुसंधान की संभावनाएँ हैं। नाथपंथी साहित्य की भाषा, संवेदना और संदेश को नये संदर्भों में पढ़े जाने की अपेक्षा है ताकि वर्तमान समय के विद्यार्थी इससे आत्मीयता से जुड़ सकें। इस दृष्टि से संस्थान द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक एक सार्थक हस्तक्षेप का विनम्र प्रयास है।

इन पुस्तकों के प्रणयन में विषय के विद्वान लेखकों ने योगदान दिया है जो इन रचनाकारों के व्यक्तित्व और कृत्तित्व से जुड़े विविध पक्षों से गहराई से परिचित हैं और शैक्षणिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए प्रासंगिक तथ्यों को सामने लाने में समर्थ है। श्री गोरक्ष नाथपीठ, गोरखपुर के कृती संत साधक एवं प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ जी ने अपने गुरुतर राजकीय उत्तरदायित्वों में अत्यंत व्यस्त रहते हुए भी गुरुगद्दी की प्रतिष्ठा को स्थापित करने वाला लेखकीय योगदान इस पुस्तक हेतु किया, यह हमारे लिए अनेकधा गौरव का विषय है। प्रो. राधेश्याम दुबे, डॉ. आद्या प्रसाद द्विवेदी, श्री अनुज प्रताप सिंह, डॉ. पद्मजा सिंह, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. कन्हैया सिंह, डॉ. वेद प्रकाश पांडेय, डॉ. सभापति मिश्र, प्रो. रामकिशोर शर्मा, डॉ. फूलचंद गुप्त, डॉ. अजय कुमार सिंह, प्रो. शिवप्रसाद शुक्ल, प्रो. संतोष कुमार शुक्ल आदि विद्वान लेखकों का हृदय से आभार ! हिंदी सौरत्न माला की प्रथम पुस्तक-मणिका को अनुस्यूत करने में आपका योगदान प्रशंसनीय है।

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