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जोधपुर राज्य की सैन्य व्यवस्था (1459 - 1818 ईस्वी): Jodhpur Rajya Ki Sainya Vyavastha (1459 - 1818 Isvi)

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Specifications
Publisher: Literary Circle, Jaipur
Author Mahesh Kumar Dayama
Language: Hindi
Pages: 271 (with B/W Illustrations)
Cover: HARDCOVER
9.5x6.5 Inch
Weight 570 gm
Edition: 2024
ISBN: 9788198109668
HBU457
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Book Description

प्राक्कथन

     

 

राजपूताना की सैन्य व्यवस्था ने भारतीय इतिहास लेखन को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रेरित, प्रभावित प्रोत्साहित किया है। मरूस्थलीय प्रदेश में प्राकृतिक प्रतिकूलता जटिलता के मध्य राव सीहा का पश्चिमी राजपूताना में आगमन अर्ध-धुमक्कड़ जीवन पद्धति के मध्य मुसलमानों से स्थायी ठिकाना के लिए निरंतर संघर्ष होता रहा, जिसमें उन्हें प्रारंभिक सफलता प्राप्त हुई। राव सीहा के साथ प्रारंभिक राठौड़ शासकों का स्थानीय जातियों के साथ भी एक लंबा संघर्ष चला, जिसमें सैन्य बल से राठौड़ों ने अपना स्थायी राज्य स्थापित करने में प्रारंभिक सफलता प्राप्त की। विभिन्न कालखण्डों में जोधपुर शासकों ने राज्य को स्थायित्व प्रदान करने के लिए "भाईया पद्धति" को अंगीकार करके राज्य को जागीर के रूप में स्वबंधुओं में विभाजित कर दिया तथा उसके प्रतिफल में "सैन्य चाकरी" प्राप्त की जो समयानुकूल प्रभावी रही। राव जोधा ने दूरगामी राजनैतिक दृष्टिकोण को अंगीकार करते हुये मंडोर की जगह स्वयं के नाम से शनिवार, 12 मई, 1459 ईस्वी को नवीन राजधानी (जोधपुर) दुर्ग (मेहरानगढ़) की नींव रखी जो कालांतर में मारवाड़ का स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया। राव जोधा से ही सैन्य प्रणाली में राज्य हित में क्रमिक परिवर्तन होते रहे, लेकिन सेना का मेरुदंड अश्वारोही सेना ही बनी रही। जोधपुर राज्य स्थापना काल से ही सैन्य सहयोग के लिए अपने स्वबंधुओं, सामंतों अन्य राजपूत जागीरदारों पर निर्भर रहा। जोधपुर राजाओं ने स्वयं की स्थायी सेना के लिए कभी प्रयास नहीं किया। राव मालदेव के समय जोधपुर सेना के सैन्य संचालन संख्या बल में अप्रत्याशित वृद्धि हुई, मुगल बादशाह अकबर के विरूद्ध राव चन्द्रसेन ने अपने राज्य कुल मर्यादा की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष कर स्वाधीनता का मार्ग अंगीकार किया। जोधपुर शासकों द्वारा मुगल अधीनता स्वीकार करने के उपरांत सैन्य पद्धति को मनसबदारी व्यवस्था के अनुरूप करने का प्रयास किया जिसमें आंशिक सफलता प्राप्त हुई। सहयोग, संतुलन और मुगल-राठौड़ समृद्धि का काल महाराज जसवन्तसिंह प्रथम तक चलता रहा लेकिन महाराजा जसवन्तसिंह प्रथम के मृत्युपरांत औरंगजेब की महत्वाकांक्षा ने मुगल-राठौड़ संघर्ष की शुरूआत की जिसने जोधपुर राज्य की सैन्य व्यवस्था की कमी को उजागर कर दिया। औरंगजेब की मृत्यु के उपरांत महाराजा अजीतसिंह के सिंहासनारोहण होने पर मुगल-राठौड़ संघर्ष का अंत हुआ, लेकिन कालांत में मराठों के क्रमिक आक्रमणों ने जोधपुर राज्य की सैन्य व्यवस्था की कमजोरियों को हमेशा के लिए उजागर कर दिया। मराठों के निरंतर आक्रमण व धनलोलुपता ने जोधपुर राज्य की सैन्य प्रणाली व आर्थिक व्यवस्था को कमजोर कर दिया, इसलिए महाराजा मानसिंह ने 1818 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ संधी करके सैन्य प्रणाली को हमेशा के लिए ब्रिटिश संप्रभुता के अधीन कर दिया। जोधपुर राज्य की सैन्य प्रणाली में परंपरागत कमियां रही हो लेकिन अश्वारोही सेना ने राठौड़ों के आन-बान-शान को हमेशा बनाये रखा। जोधपुर राज्य की स्थापना काल से ही सेना हमेशा केन्द्र में रही, सेना की विभिन्न इकाइयों के तालमेल व सामंजस्य में कमी रही है. लेकिन सेना के कई अंगों जैसे अश्वारोही, पदापी, तोपखाना, शुतुरसेना ने आवश्यकतानुसार जोधपुर राज्य में सैकड़ों वर्षों तक शांत्ति स्थापना, आर्थिक समृद्धि, राजस्व व प्रशासनिक संगठन, धर्म, साहित्य और कला का उन्न्यन व संरक्षण, प्रभावी व मजबूत सैन्य व्यवस्था के अभाव में संभव नहीं था। प्रस्तुत ग्रंथ में जोधपुर राज्य की सैन्य व्यवस्था व विभिन्न ऐतिहासिक तथ्यों, सामग्रियों के माध्यम से विस्तृत इतिहास लेखन का प्रयास किया गया है, भाषा सरल व शैली बोधगम्य रखी गई है ताकि शोधार्थियों एवं अध्येताओं को विषय की मौलिकता को समझने में किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो। मैंने अपने इस अध्ययन में जोधपुर राज्य की सैन्य व्यवस्था पर शोध कार्य करने वाले जिज्ञासु पाठकों के प्रति रूचि उत्पन्न करने का प्रयास किया है। मेरा यह प्रयास कितना सार्थक रहा, इसका उत्तर आपके द्वारा इस अध्ययन के सुझावों सहित मुझे प्रोत्साहन द्वारा ही प्राप्त हो सकेगा।

 

 

लेखक परिचय

     

 

डॉ. महेश कुमार दायमा जन्म स्थान- ग्राम भाबरू, तहसील-विराटनगर जिला-जयपुर (राजस्थान)

 

प्रारंभिक शिक्षा- जवाहर नवोदय विद्यालय पावटा, जयपुर (राजस्थान)

 

शिक्षा- पीएच.डी. एम.फिल., नेट, एम.. (इतिहास, राजनीति विज्ञान, लोक प्रशासन, समाजशास्त्र) तीस से अधिक शोधपत्र प्रकाशित तीस से अधिक राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोधपत्र वाचन एवं सहभागिता

 

सम्प्रति: 2008 से आर पी एस.सी. अजमेर से चयनित होकर विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में सहायक आचार्य के रूप में स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन का कार्य किया। वर्तमान में आप 2013 से इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य करा रहे हैं। आपके निर्देशन में पीएच.डी हेतु 4 शोधार्थी शोधरत हैं।

 

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