सन और 1947 को ब्रितानी भारत दो आजाद हिस्सों में अस्तित्व में आया : भारत और पाकिस्तान। जहाँ भारत हर वर्ष अपना स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाता है, पाकिस्तान में वह एक दिन पहले मना लिया जाता है। जहाँ भारत ने स्वयं को एक स्वायत्त, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र स्वरूप घोषित किया, वहीं पड़ोसी मुल्क ने पाकिस्तानी इसलामिक गणतंत्र के तौर पर खुद की पहचान रखी। बँटवारे के पहले के महीनों में उपमहाद्वीप में बीभत्स सांप्रदायिक दंगे भड़के, जिसके दौरान लाखों निर्दोष लोगों की जानें गईं। बीस मिलियन (दो करोड़) लोग बेघर हुए।
भारत की अंतरिम सरकार ने, जो हमारी प्रथम राष्ट्रीय सरकार थी, बंगाल से पंजाब तक के वृहद् भूभाग पर कानून व्यवस्था स्थापित करने में दिन-रात एक कर कार्य किया, सैकड़ों रिफ्यूजी कैंपों की स्थापना की गई, जिनमें लाखों विस्थापितों को शरण, भोजन, कपड़े और दवाइयाँ मुहैया कराई गईं। वे उन इलाकों से भागकर यहाँ आ पहुँचे थे, जो अब पाकिस्तान बनने जा रहा था। ऐसी अशांत परिस्थिति में पाकिस्तान ने, जिसे बने कुछ ही हफ्ते हुए थे, सशस्त्र कबीलों की टुकड़ियों को संगठित कर, बिना वर्दीवाले पाकिस्तानी फौज के अफसरों द्वारा प्रशिक्षण दिलवाकर उनकी अगुआई में भारत के जम्मू-कश्मीर रियासत पर हमला बोल दिया। उनका मुख्य उद्देश्य उसे 'कब्जे' में कर लेना था। संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.) में महीनों की बहस के बाद 1948 के अंत में पाकिस्तान की इस अनावृत महत्त्वाकांक्षा, नग्न आक्रामकता पर रोक लगी और जुलाई 1949 में सीमांकित युद्धविराम रेखा अस्तित्व में आ गई। सत्तर साल गुजर चुके हैं, लेकिन पाकिस्तान अपने घोषित लक्ष्य, 'हजार वार' से भारत के टुकड़े कर 'कश्मीर हासिल' करने की अपनी मंशा का बड़ी ईमानदारी से पालन कर रहा है।
1950 के दशक की शुरुआत में यू.एस. के कहने में आकर पाकिस्तान दो सुरक्षा समझौतों में शामिल हुआ। दक्षिण-पूर्व एशिया संधि संघटन (साउथ-ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन, सीटो) और केंद्रीय संधि संघटन (सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन, सेनटो), जिसकी बदौलत उसे अपनी सैन्य क्षमताओं के विस्तार और सशक्तीकरण में अमरीका से सतत सहायता मिलती रही। यहाँ यह कहने की जरूरत नहीं कि इस व्यवस्था ने अमरीका को पाकिस्तान में न केवल अपनी उपस्थिति कायम करने का सूत्र प्रदान किया, बल्कि उसकी रक्षा और विदेश नीतियों पर अपना प्रभाव बढ़ाने का मौका मुहैया कराया। इधर भारत ने अन्य देशों के साथ किसी भी सुरक्षा संबंधी संधियों में पड़ने से परहेज करते हुए अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ शांति और मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने की अपनी नीतियों पर प्रतिबद्धता दिखाई।
1965 में पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन गिब्राल्टर' लॉञ्च किया, जिसका एकमात्र उद्देश्य यह था कि प्रशिक्षित आतंकवादियों को जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करा वहाँ वृहद् पैमाने पर विद्रोह को अंजाम दिया जाए। उनका यह मानना था कि इससे भारत हमेशा के लिए कश्मीर से निकल जाएगा। अब जहाँ उनका यह कृत्य पूरी तरह से नाकाम रहा, पाकिस्तान सीमा पार अपनी खुराफातों से बाज नहीं आया, उनमें लगा रहा, जिसने अंततः 1965 के भारत-पाकिस्तान जंग का रूप धारण कर लिया। यू.एन. सेक्रेटरी काउंसिल (यू.एन.एस.सी.) की मध्यस्थता से लागू की गई युद्ध विराम की घोषणा से ही इस जंग को खत्म किया जा सका, जिसके फौरन बाद ताशकंद घोषणा हुई, जो सोवियत रूस के राजनयिक हस्तक्षेप से ही संभव हो पाई। भारत युद्ध विराम के लिए राजी हो गया, हालाँकि उस वक्त उसने दुश्मन का 1,900 वर्ग कि.मी. इलाका हथिया लिया था। यह और बात है कि पाकिस्तान ने इसे भारत पर अपनी विजय घोषित करते हुए इस बात को खूब उछाला कि भारत के उसपर 'आक्रमण' के खिलाफ जवाबी हमले में उसने पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन हासिल कर लिया था।
स्वतंत्रता पश्चात् जहाँ एक ओर भारत राष्ट्र निर्माण की चुनौतियों का सामना करने में और गणतांत्रिक प्रणालियों को दृढ़ आधार देने पर एकाग्रनिष्ठ रहा, वहीं पाकिस्तान की सत्ता और शासन 1958 के इतर सेना के जनरलों के हाथों में आ गई, जो खुलेआम जम्हूरियत के खिलाफ थे।
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