| Specifications |
| Publisher: KHAMA PUBLISHERS, Delhi | |
| Author Pradeep Shrivastava | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 324 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 420 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9789392619687 | |
| HBA860 |
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शाम के पांच बज चुके थे, सूर्यास्त में एक घंटे का वक्त अभी बाकी था। लेकिन आसमान में छाए काले बादलों की वजह से अंधेरे की एक घनी स्याह चादर ने सूरजमल लेन और उसके आसपास के इलाके को अपनी गिरफ्त में ले लिया था। चंद मिनटों में हवा की रफ्तार तेज हुई और देखते ही देखते धूल भरे अंधड़ में बदल गई। सूरजमल लेन की बीस फीट चौड़ी सड़क की दाहिनी तरफ लाईन से बनी अस्थायी दुकान और ठेले वालो ने मौसम के बदलते मिजाज को भांपते ही अपने सामान समेटने शुरू कर दिए थे, लेकिन अंधड़ जिस तेजी से आया, उसकी जो रफ्तार थी, उसके आगे उन्हें ज्यादा मौका नहीं मिला। दुकानों के भीतर और ठेले पर पड़े खाने के अधिकतर सामान देखते ही देखते धूल से भर गए।
मौसम का यह आक्रमक रवैया करीब आधे घंटे तक रहा। लेन की बाई तरफ लाईन से बनी बहुमंजिली इमारतों के अंतिम सिरे पर स्थित आकाश भवन से जब वह निकला तो उस समय धूल भरी आंधी बंद हो चुकी थी। हवा की रफ्तार कम थी, लेकिन पेड़ों की टहनियां और पत्तियां बुरी तरह हिल रही थी। वैसे हवा में घुली नमी और हल्की ठंड ने मौसम को खुशगवार बना दिया था।
आकाश भवन के लकड़ी के बने दरवाजे को खोलते ही ताजी, ठंडी हवा के झोंके ने एक झटके में उसके दिमाग को तरोताजा कर दिया। एयरकंडीशन आफिस के बंद माहौल में मौसम के बदले इस रूख की उसे भनक तक नहीं सनी थी। दरवाजे से बाहर निकलने के बाद सड़क को उतरने वाली चार सीदियों में पहली सीडी पर वह थोड़ी देर के लिए रुका, दो तीन गहरी सांसे ली, फेफड़ों में ज्यादा से ज्यादा आक्सीजन भरने की कोशिश की। उसने वहीं खड़े खड़े आसमान की ओर देखा, ऊपर कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, सिर्फ गहरा काला पुष्प अपेरा। दूसरे ही दक्षण इस अंधेरे में देवी गंदी एक चमकीली लाईन सांवाल तरह एक कोने से दूसरे कोने तेजी से भामाजीद नजर आई। इस चमकीती संरक्षी से उसे आतमान में छाए घने बादलों की मौजूदगी का एहसास हुआ। रोशनी नी गायब होते ही बादलों के बीच से तेज आवाज आई, किसी भूखे शेर की दहाड़ की तरह।
"लगता है आज जम कर बारिश होगी... वह मन ही मन युदबुदाया। फिर बाकी की तीन सीढ़ियां उतर कर सड़क की पटरी पर आ गया। टहलते हुए सड़क पार की। सड़क पर चारों तरफ कूड़े करकट का ढेर छितराया था। कुछ पेड़ों की टहनियां टूट कर सड़क पर गिरी हुई थी। आकाश भवन के ठीक सामने ही पान की एक दुकान थी जिस पर सुबह आकाश भवन में घुसने के पहले और शाम को घर जाने के पहले वह थोड़ा समय जरूर बिताता, यह उसकी आफिस की दिनचर्या में शामिल था।
'आइए पुनीत बाबू.. आप का ही इंतजार कर रहा था-पान वाले ने उसे देखते ही कहा।
"पंडित आज बड़ी जल्दी दुकान समेट रहे हो
'देख नहीं रहे हो भाई जी मौसम क्या हो गया है, पंडित ने कहा। उस समय वह अपने विनोबा भावे मार्का दो झोले में सामान भर रहा था। महंगी सिगरेट, पान की डलिया, हिसाब की डायरी जैसे कुछ जरूरी सामान इन झोलों में भर कर वह रोज दुकान बंद करने के बाद घर ले जाता था।
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