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भारतीय दर्शन की मूल समस्याएँ: शिक्षा नीति 2020 के अनुपालन में सत्र 2022-2023 से अनुमोदित पाठ्य पुस्तक- Basic Problems of Indian Philosophy: Approved Text Book from Session 2022-2023 in Compliance with Education Policy 2020

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Includes any tariffs and taxes
Specifications
Publisher: Rudra Publication, Delhi
Author Awadhesh Yadav
Language: Hindi
Pages: 193
Cover: PAPERBACK
9.5x7 inch
Weight 362 gm
Edition: 2024
ISBN: 9788197937293
HBD711
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Book Description
पुस्तक परिचय

भारतीय दर्शन की जटिल एवं व्यापक धारा में पगी यह पुस्तक स्नातक एवं परास्नातक विद्यार्थियों के लिए एक अमूल्य संसाधन है। इसमें भारतीय दर्शन की विविध समस्याओं, विचारधाराओं, और दार्शनिक प्रश्नों का गहन विश्लेषण किया गया है।

मुख्य विशेषताएँ:

1. दर्शन की मूल अवधारणाएँ: भारतीय दर्शन के प्रमुख तत्त्वों और विभिन्न विचारधाराओं का सटीक परिचय।

2. प्राकृतिक और सामाजिक संदर्भ: दर्शन की समस्याओं को समकालीन और प्राचीन संदर्भों में देखने का प्रयास।

3. सरल और संक्षिप्त भाषा: जटिल दार्शनिक विषयों को समझने के लिए सरल भाषा का प्रयोग किया गया है, जो विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से लाभप्रद है।

4. आलोचनात्मक दृष्टिकोण: हर समस्या और सिद्धांत का आलोचनात्मक मूल्यांकन, जिससे पाठक अपने विचारधारा का निर्माण कर सके।

5. व्यापक संदर्भ: पुस्तक में हर विषय को विस्तृत संदभों में रखा गया है, जिससे विद्यार्थियों को विषय की समग्रता का बोध होसके।

यह पुस्तक न केवल शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करती है, बल्कि पाठकों को भारतीय दर्शन की गहराई में उतरने का अवसर भी प्रदान करती है। शिक्षार्थी और शोधकर्ता इस पुस्तक का उपयोग अपने अध्ययन और शोध कार्यों में कर सकते हैं। यह पुस्तक उन सभी विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य है जो भारतीय दर्शन के मूल स्वरूप और उसकी समस्याओं को समझने के इच्छुक हैं।

लेखक परिचय

डॉ. अवधेश यादव (असिस्टेंट प्रोफेसर) लक्ष्मीबाई कालेज दिल्ली विश्वविद्यालय दर्शन विभाग में कार्यरत हैं। लेखक ने संपूर्ण शिक्षा स्नातक, स्नाकोत्तर पी-एच. डी. काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से उत्तीर्ण की है। लेखक ने यू.पी.एस.सी. के मुख्य परीक्षा एवं यूपीपीसीएस, बीपीएससी की मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करने के पाश्चात् डॉ. अवधेश यादव ने आई.सी.पी.आर जेआरएफ के साथ यूजीसी नेट जेआरएफ की परीक्षा उत्तीर्ण कियें है। विगत 12 वर्षों से देश के विभिन्न कोचिंग संस्थानों में पठन-पाठन में कार्यरत थे। लेखक द्वारा लिखित करीब 2 दर्जन से अधिक शोधपत्र देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों नेशनल एवं इंटरनेशनल सेमिनार तथा देश की प्रतिष्ठित व शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। लेखक की 16 बुक्स विभिन्न प्रकाशन से प्रकाशित हो चुकी हैं।

प्राक्कथन

भारतीय दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बदलते नए आयाम के संदर्भ में "भारतीय दर्शन की मूल समस्याएँ" नामक पुस्तक मुख्य रूप से नई शिक्षा नीति में हुए परिवर्तन के पाठ्यक्रम को परिमार्जित रुप में ध्यान आकर्षित कर संयोजित किया गया है। इसके अंतर्गत दर्शनशास्त्र की सामान्य मान्यताएँ एवं दर्शन के वास्तविक अर्थ "जीवन जीने की कला का नाम" दर्शनशास्त्र कहलाता है। यदि सूक्ष्मता से भारतीय दर्शन एवं पाश्चात्य दर्शन का अवलोकन किया जाए तो यह परिलक्षित होता है कि भारतीय दर्शन अध्यात्म से भौतिक दुनिया को देखने का दृष्टिकोण प्रदान करता है। अर्थात आंतरिक से वाह्य दुनिया को देखने का दृष्टिकोण प्रदान करता है। यहाँ पर श्रुति परंपरा एवं श्रमण परंपरा का अवलोकन किया जाए तो यह परिलक्षित होता है कि श्रमण परंपरा सामान्यतः अलौकिक जगत की विषय वस्तुओ को आधार बनाकर आध्यात्मिक जगत की विषय वस्तुओं का अवलोकन करती है, जबकि श्रुति परंपरा आध्यात्मिक जगत की विषय वस्तुओ अर्थात पारलौकिक विषय वस्तु को आधार बनाकर भौतिक जगत की विषय वस्तुओं का अवलोकन करती है।

समग्रता में देखा जाए तो जहाँ भारतीय दर्शन का मूलभूत आधार धर्म के वास्तविक स्वरूप को परिमार्जित कर वर्तमान प्रासंगिकता के साथ उसमें व्याप्त रूढ़िवादिता को दूर करना है, तो वहीं पाश्चात्य जगत का दार्शनिक आयाम तार्किक दृष्टिकोण पर आधारित भौतिक जगत की विषय वस्तुओं को आधार बनाकर आंतरिक जगत की विषय वस्तुओं को मूल्यांकन करने का प्रयास करता है।

सामान्यता ग्रीक दर्शन का आरंभ जिस प्रकार आश्चर्य की अवधारणा से उद्भव हुआ उसको समकालीन दार्शनिकों ने गणित एवं तर्कशास्त्र के वास्तविक प्रयोग के आधार पर परिमार्जित करने का प्रयास किया है। यद्यपि पाश्चात्य दर्शन का मूलभूत आधार भौतिक जगत की विषय वस्तु के आधार पर आंतरिक जगत की विषय वस्तु का मूल्याँकन करना है। वही भारतीय दर्शन में आध्यात्मिक अवधारणा के आधार पर नैतिकता के आधार पर सामान्यतया नैतिकता धार्मिक आयाम पर निकल कर सामने आती है।

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