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आस्वाद के विविध प्रारूप- Aaswad Ke Vividh Praroop (Hindi Criticism)

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Specifications
Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi
Author Prabhat Tripathi
Language: Hindi
Pages: 163
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 300 gm
Edition: 2013
ISBN: 9789326351188
HBS475
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Book Description
पुस्तक परिचय
कविता के आस्वाद के अपने अनुभवों को दर्ज करते हुए प्रभात त्रिपाठी ने आलोचना की एक नयी और आत्मीय भाषा विकसित की है। आलोच्य कृति के अन्तरंग के साथ आनुभविक सम्बन्ध रचते हुए उन्होंने कविता के मर्म को लिखने का जो नया मुहावरा खोजा है, उसमें खोजने की विकलता की अनुगूँजें हैं। हम अनुभव करते हैं कि वह कुछ चालू अवधारणाओं और नुस्खों पर टिकी अधिकांश समीक्षा की तुलना में हमारे मन पर गहरा असर डालती है। वास्तव में उनकी समीक्षा कवियों के रचनाशील मन की अनेक परतों को उघारने में तथा रचना की जटिलता को बोधगम्य बनाने में मनोयोग से जुटी सृजनात्मकता का ही एक अन्य रूप है। उसे साम्प्रतिक आलोचना की तरह देखना और पढ़ना शायद नाकाफी है। प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने अज्ञेय, शमशेर, मुक्तिबोध, नेमिचन्द्र जैन और भवानीप्रसाद मिश्र की अनेक कविताओं की व्याख्या करते हुए उनके काव्य संसार की विशेषताओं को दर्ज भर नहीं किया है, बल्कि पूरे काव्यानुराग के साथ उनके अनुभव-संसार से अपने मन को जोड़ने की कोशिश की है। यही नहीं, अज्ञेय और शमशेर की कुछ विशिष्ट रचनाओं की सुविस्तृत व्याख्या करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि हर महत्त्वपूर्ण कविता अपनी नानार्थता के आलोक के साथ ही पाठक के मर्म तक पहुँचती है। कविता में सक्रिय वैचारकिता की पहचान से दूर न रहते हुए भी उन्होंने यह कोशिश की है कि विचार को काव्य-विन्यास और कविता के शब्दों में ही, कविता के विचार की तरह पढ़ने की एक सार्थक शुरुआत हो। हर कवि की रचना की व्याख्या के दौरान लेखक ने उसके रचनागत वैशिष्ट्य को इस तरह से रेखांकित किया है कि उन्हें महज़ किन्हीं सरलीकृत सामान्यीकरणों के आधार पर न पढ़ा जा सके।

लेखक परिचय
जन्म : 14 सितम्बर, 1941, रायगढ़ (छत्तीसगढ़) शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी., सागर विश्वविद्यालय प्रकाशित कृति : कविता-खिड़की से बरसात, नहीं लिख सका मैं, आवाज, जग से ओझल, सड़क पर चुपचाप, लिखा मुझे वृक्षों ने, साकार समय में, बेतरतीब। कहानी-तलघर और अन्य कहानियाँ। उपन्यास-सपना शुरू, अनात्मकथा। आलोचना-प्रतिबद्धता और मुक्तिबोध का काव्य, रचना के साथ तथा पुनश्च । अनुवाद : 'समुद्र' (सीताकान्त महापात्र), 'सीताकान्त महापात्र की प्रतिनिधि कविताएँ', 'गोपीनाथ महान्ती की कहानियाँ', 'अपार्थिव प्रेम कविता' (हरप्रसाद दास) अनुवाद सभी ओड़िया से। सम्पादन : 'पूर्वग्रह' के प्रारम्भिक अंकों के सम्पादन में विशेष सहयोग। मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी की पत्रिका 'साक्षात्कार' का सम्पादन (1994-95), महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के लिए भवानी प्रसाद मिश्र की रचनाओं का संकलन-सम्पादन। पुरस्कार-सम्मान वागीश्वरी पुरस्कार (मध्यप्रदेश साहित्य सम्मेलन), माखनलाल चतुर्वेदी सम्मान (मध्यप्रदेश साहित्य परिषद्), सौहार्द पुरस्कार (उत्तरप्रदेश शासन), शमशेर सम्मान, मुक्तिबोध सम्मान (महाराष्ट्र मंडल, रायपुर) ।

प्राक्कथन
'आस्वाद के विभिन्न प्रारूप' शीर्षक से शायद मैं अपनी बातें ठीकठाक ढंग से नहीं कह पाऊँगा, लेकिन यह शीर्षक मुख्य रूप से उत्तर-छायावाद के रोमान को संकेत करता है इसलिए कि इन कवियों को हिन्दी में इसी रूप में जाना जाता रहा है। पर मुझे लगता है कि शुरुआती दौर की इन कविताओं में, रोमान की जगह एक ऐसा वैचारिक आग्रह ही अधिक सक्रिय है, जो छायावादी कविता की तुलना में, कुछ नया, कुछ अधिक मन के अनुकूल और कुछ अधिक प्रासंगिक कहने की कोशिश को उकसाता है। गौरतलब यह भी है कि इस समय सन् 1936 तक, छायावाद की श्रेष्ठ रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी थीं। 'कामायनी' और 'राम की शक्तिपूजा' का प्रकाशन वर्ष शायद यही है। प्रेमचन्द का 'गोदान' भी शायद इसी वर्ष प्रकाशित हुआ था। इसी समय में भारत में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई, और उसकी काशी शाखा का सभापतित्व प्रेमचन्द ने किया था। यह सोचना स्वाभाविक है कि छायावाद की गुरु-गम्भीर, दर्शन-मनन मंडित कल्पनाशील कविताओं की तुलना में ये कवि कुछ नया करना चाहते थे। इसके अलावा 1935 से 1945 तक का यह वक्त थोड़ा कठिन वक्त भी था। सर्वप्रथम इस अर्थ में कि एक तरफ रूसी क्रान्ति, हिटलर का उदय, स्टालिन और हिटलर का समझौता, तथा आसन्न महायुद्ध की छायाएँ थीं, तो दूसरी तरफ भारत में प्रजातन्त्र के प्रयोग-अधिकार का पहला नाटक शुरू हो चुका था। सन् '37 के इस चुनाव में साम्प्रदायिक विभाजन पर अँग्रेजों ने अपनी मुहर लगा दी थी। भारत का आत्मसजग मध्यवर्ग, अँग्रेजों की नयी शिक्षा पद्धति और राज्य परिचालन की रीतियों और रिवाजों को स्वीकारने लगा था।

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