श्वेत रंग में रंगा वह दर्शनीय व्यक्तित्व देदीप्यमान मुखमंडल, परम शान्त, श्वेत चोला, श्वेत केश, श्वेताम्बरधारी अन्तःस्थल में पीताम्बर ओढ़े हुए साधु के दर्शनों का सौभाग्य मुझे संध्या काल में आश्विन मास के रविवार के दिन हिमालय की गोद में बसे सुरम्य स्थल डीडीहाट में श्री दुष्यन्तसिंह पांगती के आवास में हुए। सादर प्रणाम के वाद टूटी-फूटी हिन्दी में ज्योतिष पर ही चर्चा प्रारम्भ की। मैं उनकी चरण धूल का कण मात्र क्या उनके प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम था? शायद नहीं पर यह मेरा सौभाग्य था आपने मुझे इस योग्य समझा।
गुरू ने स्वयं बुलाया, ज्ञान दिया, मेरे पशुवत जीवन को मानव जीवन के परम लक्ष्य आध्यात्म की दिशा दी। परन्तु दुर्भाग्य यह कि मैं दो वर्ष के सानिध्य के बाद भी सद्गुरू की महानता ज्ञान व कृपा शक्ति को भांप न सका। जब कभी कुण्डली दिखायी यही कहते भजन करेगा किन्तु छत्तीस के बाद। वैकुण्ठधाम के निमार्ण कार्य पूर्ण होने की चर्चा होती तो कहते मै पुनः आउँगा। प्रकृति के ऐसे प्रेमी जब वैकुण्ठधाम की चोटी से हिमालय देखने लगते तो अपने तन का भी आभास न रहता। योगवल इतना कि बैठे-बैठे खड़े-खड़े समाधिस्थ हो जाते। विद्वान इतने कि संस्कृत अंग्रेजी शब्द आपके श्रीमुख से अविरल जलप्रवाह की तरह निकलते थे। वैकुण्ठधाम में जब आप भजन करने बैठते तो पशु-पक्षी भी मंत्रमुग्ध होकर आस पास खड़े हो जाते।
वैदिक ज्योतिष, गीता, योग तथा वेदों के ज्ञाता पूज्य गुरूदेव कहते विभिन्न विषयों का ज्ञान होने पर भी योगी को अपनी साधना से जो परमानन्द प्राप्त होता है।
यही सार्थक ज्ञान, आत्म में परमात्मा के दर्शन करने का सरल उपाय है। तुलसी की नवधा भक्ति में पंचम भक्ति
के अनुसार स्वामी जी का जपयज्ञ में अखण्ड विश्वास था। अपने भक्तों को मंत्रजाप की शिक्षा अधिक देते थे। आपके जपयज्ञ के अनेकों प्रत्यक्ष प्रमाणों का मै साक्षी हूं। वैकुण्ठधाम में एक महिला अपनी आर्त पुकार लेकर आयी। अपना दुःख शब्दों द्वारा अभिव्यक्त करने से पूर्व ही स्वामी जी ने कहा "जा अपने पुत्र के पास तेरा दुःख दूर हो जाएगा। वह महिला स्वामी जी के आदेश को शिरोधार्य कर वापस लौटी यहां स्वामी जी ने महादेव के महामंत्र महामृत्यंजय का जप प्रारम्भ कर दिया। घर पहुँचने तक महिला के पुत्र की दशा सुधरने लगी। इस प्रकार जपयज्ञ द्वारा पूज्य गुरूदेव ने कितने ही भक्तों के कष्ट क्षण मात्र में दूर किए।
व्यक्तित्व इतना सुन्दर कि देखने वाला देखता ही रह जाय। मुखमंडल में परम शांति अत्यन्त सादगी भरी दिनचर्या परन्तु अनुशासन प्रिय। आपने जिसे आशीष दे दिया जिस पर कृपा कर दी वह धन्य हो गया। ऐसा नही था कि आपकी साधना में बाधा न आयी हो स्वामी जी स्वयं कहते युवावस्था में उन्हें हिमालय के अल्मोड़ा जनपद में तथा अहमदावाद आश्रम में भी एक-एक युवती ने उन्हें अपने रूप जात के प्रभाव में लाने का असफल प्रयत्न किया। परन्तु ये अबोध अबलाएँ पूज्यगुरूदेव के स्थूल शरीर के सौंदर्य को ही देख पायी। उनके मन व आत्मा की सुन्दरता देखने की उनकी सामर्थ्य न थी। अन्ततः दोनों को बहन के रूप में पूज्य गुरूदेव से दीक्षा पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
इस प्रकार अपने आध्यात्म वल से कितने ही निरीह प्राणियों की दुर्भावनाओं को बदलकर उन्हें सदमार्ग दिखाया। वर्षा के मौसम में मनायी जाने वाली गुरूपूर्णिमा जव कि प्रातः से ही वर्षा की झड़ी लगी रहती परन्तु कोई वर्ष ऐसा न था जब वर्षा ने यज्ञ में बाधा डाली हो। यज्ञ के समय घनघोर काली घाटाओं ने अपनी जलधारा को समेटकर पूज्य गुरूदेव का सदैव अभिवादन किया। संयोग ऐसा कि दक्षिण की प्रथम सेविका भी सरस्वती बहन थी तथा सुदूर उत्तर हिमालय की प्रथम सेविका भी सरस्वती बहन ही थी। कितना सुन्दर योग था वृहस्पति-शनि का कि मानों देवगुरू वृहस्पति की सेवाकर योगी शनि अपना योगवल बढाने हेतु आर्शीवाद प्राप्त कर रहा हो।
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