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अध्यात्म मार्ग: Adhyatam Marg (Surat Shabd Yoga)

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Specifications
Publisher: Radha Soami Satsang Beas
Author Julian Johnson
Language: Hindi
Pages: 495
Cover: HARDCOVER
10.00x6.5 inch
Weight 700 gm
Edition: 2011
ISBN: 9788184662009
HCA497
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Book Description
प्रस्तावना

डॉ. जूलियन जॉनसन की पुस्तक द पाथ ऑफ़ द मास्टर्ज (अध्यात्म मार्ग) का विश्व भर में संतमत के प्रचार के लिये अनुपम योगदान है। संत सतगुरुओं द्वारा बताया गया संतमत करनी का विश्वव्यापी मार्ग है, जो लोगों को अपने भीतर परम सत्य का अनुभव करने के योग्य बनाता है, चाहे वे किसी भी धर्म या संस्कृति से संबंध रखते हों।

जागरूक पाठकों को ऐसा लग सकता है कि डॉ. जॉनसन ने अपने विचार बड़े प्रबल ढंग से व्यक्त किये हैं। वर्तमान समय में विश्व की धर्म और संस्कृति के प्रति बढ़ती जागरूकता के दृष्टिकोण से देखें, तो डॉ. जॉनसन की भाषा और लहजे में अपनी मान्यता सिद्ध करने का यत्न दिखाई देता है। यदि हम पीछे मुड़ कर देखें तो हम समझ जाएँगे कि डॉ. जॉनसन हमारी तरह एक साधारण इनसान होते हुए भी अपने समय के तर्कशील और विवेकशील विचारक थे जो अंधविश्वास को नहीं मानते थे। इस पुस्तक की भूमिका में संक्षेप में बताया गया है कि जीवन की परिस्थितियों और घटनाओं के कारण, कैसे उनकी आध्यात्मिक खोज शुरू हुई और इस खोज में जुटे हुए वे आखिरकार कैसे भारत पहुँचे।

डॉ. जॉनसन जीवनभर परमात्मा की खोज में लगे रहे। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के ये वचन दोहराये हैं 'सभी धर्मों का अंतिम लक्ष्य परमात्मा से साक्षात्कार करना है।' डॉ. जॉनसन भी उसी साक्षात्कार के खोजी थे। वे इस आध्यात्मिक ज्ञान को विज्ञान की तरह प्रमाणित करना चाहते थे जो समस्त मानव जाति पर व्यापक रूप से लागू है, जिसे उन अंधविश्वासों के आधार पर तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता जो वैज्ञानिक युग में निरर्थक हैं। साथ ही यह खोज कुछ लोगों तक ही सीमित नहीं है और न ही दूसरों की पहुँच से बाहर है। सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि वे उस परम सत्य की खोज में थे, जिसका अनुभव वे यहीं और इसी जीवन में कर सकें। परंतु डॉ. जॉनसन किसी भी धर्म में उस परम सत्य को खोज नहीं पाए और न ही अन्य दार्शनिक विचारधाराओं में उन्हें इसकी कोई जानकारी प्राप्त हुई। यहाँ तक कि पादरियों और ईसाई मत के धर्माधिकारियों, विद्वानों और दार्शनिकों में से उन्हें ऐसा कोई भी नहीं मिला जो उनके प्रश्नों का उत्तर दे पाता या ऐसा मार्ग दिखा पाता जो उन्हें सही लगता। निजी अनुभव के अतिरिक्त अन्य कुछ भी उन्हें संतुष्ट नहीं कर सकता था। पूरे उत्साह से निरंतर खोज करते हुए उन्होंने एक भरपूर और समृद्ध जीवन व्यतीत किया और अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव भी देखे। सत्तर साल बाद अपना सफल और प्रतिष्ठ सांसारिक जीवन छोड़कर; आधी यात्रा समुद्री मार्ग और आधी भूमार्ग से पूरी करके वे दुनिया के दूसरे छोर पर पहुँचे, जहाँ उन्होंने ऐसे मार्गदर्शक और मार्ग को पा लिया, जिसकी उन्हें खोज थी। इसलिये यदि उन्होंने अपने विचारों को इतने उत्साह से और प्रबलता से व्यक्त किया है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। निःसंदेह द पाथ ऑफ़ द मास्टर्ज (अध्यात्म मार्ग) में जिस आंतरिक मार्ग का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है, वह समय की कसौटी पर खरा उतरा है। शायद यह डॉ. जॉनसन के अनुभवों की दृढ़ता, निडरता और सत्यनिष्ठा ही है, जिसके कारण उनका संदेश अलग-अलग हालात और चुनौतियाँ होने के बावजूद, अनेकों वर्षों के बाद भी प्रभावी है।

संत-महात्मा हमें हमेशा यही समझाते हैं कि यदि वे ऐसा कहेंगे कि मार्ग एक ही है तो उन्हें अहंकारी माना जाएगा; रूहानी मार्ग के बारे में अलग-अलग विचारधाराएँ और भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हमेशा ही रहेंगे। यही इस संसार की सच्चाई है। इसलिये संत-सतगुरु दूसरों के नजरियों को भी पूरा सम्मान देते हैं, चाहे वे संतमत से मेल खाते हों या नहीं। वे इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि मनुष्य को अपने आप सत्य की पहचान करने का पूरा अधिकार है। पुस्तक का विषय है- भक्ति का मार्ग ही प्रेम का मार्ग है, जो अनादि है। इस मार्ग को सब अपना सकते हैं। हमें इस पुस्तक का सत्रहवाँ संस्करण भेंट करते हुए बड़ी प्रसन्नता हो रही है और हम आशा करते हैं कि डॉ. जॉनसन की यह भावपूर्ण और प्रेममय भेंट संत-सतगुरुओं के मार्ग पर आनेवाले आध्यात्मिक जिज्ञासुओं का मार्गदर्शन करती रहेगी।

भूमिका

इस पुस्तक का विषय इतना महत्त्वपूर्ण, गहन और क्रांतिकारी है कि इसे सही मायनों में प्रस्तुत करना आम इनसान की पहुँच से परे की बात है। हालाँकि लेखक खुद को इस महान् कार्य के योग्य नहीं समझता, परंतु इस समय पूरे विश्व में अंग्रेजी भाषा में सतगुरुओं का संदेश पहुँचाना आवश्यक है और किसी दूसरे के बजाय लेखक को ही इस कार्य के योग्य समझा गया। इसलिये इस जिम्मेदारी से पीछे हटने का मतलब था अपने कर्तव्य से मुँह मोड़ना। बड़े हुजूर महाराज जी के निकट संपर्क में रहकर ध्यानपूर्वक अध्ययन करने के बाद तथा उनके कुछ अभ्यासी और प्रबुद्ध शिष्यों के साथ काफ़ी समय बिताने के बाद सबकी सहमति से यह कार्य मुझे सौंप दिया गया।

मैं उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूँ जिन्होंने इस कार्य में मेरी सहायता की और जो व्यक्तिगत रूप से मेरे लिये प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। उन सबमें सतगुरु का प्रकाश झलकता है। वे सभी आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण महापुरुषों की आकाश गंगा के समान हैं, जो सितारों से परे उच्च आंतरिक लोकों के प्रकाशमान मार्ग की ओर संकेत करते हैं। उनको न केवल इस मार्ग का ही ज्ञान है, बल्कि वे भारतीय धर्म और दर्शन की अनेक पद्धतियों के बारे में भी जानते हैं। इसलिये वे इन पद्धतियों की तुलना सतगुरु के मार्ग से भलीभाँति कर सकते हैं। उन्होंने खुद भी इस मार्ग का चुनाव आँखें मूंदकर नहीं किया, बल्कि अच्छी तरह सोच-विचार करके ही किया है। उन महापुरुषों के सहयोग से यह कार्य पूरा हो पाया है।

इस पुस्तक के मूल विषय के बारे में यहाँ यह कहना आवश्यक है कि यह हिंदू-दर्शन की एक और व्याख्या नहीं है। यह वेदों की व्याख्या भी नहीं है और न ही यह भारत की दार्शनिक विचारधाराओं और धार्मिक गुटों में से एक है। जैसा कि आम तौर पर इतिहास में समझा जाता रहा है, उस लिहाज से यह कोई धर्म या संप्रदाय भी नहीं है। तो फिर यह क्या है? वास्तव में यह जीते-जी आध्यात्मिक साम्राज्य में प्रवेश करने और उसे पाने की वैज्ञानिक विधि है। यही इस पुस्तक का सार है। हम कुछ ज्यादा ही उम्मीद तो नहीं कर रहे? नहीं; यह बात नहीं है, बल्कि यह संभव है और इस पुस्तक में वह साधन भी बताया गया है जिससे परमात्मा से मिलाप किया जा सकता है। सभी युगों में संत-सतगुरु यही महान् कार्य करते आए हैं। इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि अंग्रेजी भाषी समाज का एक सदस्य अंग्रेजी भाषा में लिखी इस पुस्तक द्वारा पूरे विश्व को सतगुरुओं की वैज्ञानिक विधि की पूरी जानकारी दे रहा है। अतः यह पुस्तक पश्चिमी लोगों के दृष्टिकोण से लिखी गयी है। सतगुरु उन जिज्ञासुओं को पूरी तरह तृप्त करना चाहते हैं जिनकी संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है और जो कर्मकांड तथा धार्मिक परंपराओं से संतुष्ट नहीं हैं। आज के वैज्ञानिक युग में सतगुरु आत्म साक्षात्कार और ईश्वरीय साक्षात्कार का ऐसा आध्यात्मिक मार्ग बताते हैं जो विज्ञान की हर कसौटी पर खरा उतरता है। पहली बार अंग्रेज़ी भाषा बोलनेवाले समाज को ऐसा स्पष्ट मार्ग या प्रमाणित ज्ञान दिया गया है, जो एक विवेकशील और व्याकुल जीव को यह बताता है कि ईश्वर के साम्राज्य में कैसे प्रवेश करना है और उसे कैसे हासिल करना है, जिसका सभी धर्मों में सभी संत-महात्माओं ने वर्णन किया है। बहुत-सी किताबों में कुछ संकेत दिये गये हैं, लेकिन उनमें ऐसी कोई निश्चित विधि नहीं बतायी गयी है जिसके द्वारा कोई जीते जी उच्च आध्यात्मिक लोकों में पहुँच सके। इसलिये लोग आंतरिक लोकों में प्रवेश नहीं कर पाते, क्योंकि न तो उन्हें इसका कोई ज्ञान है और न ही सही विधि की जानकारी। केवल सतगुरु ही इस ज्ञान से और इस विधि से परिचित हैं और उन्होंने पहली बार महसूस किया है कि इस विज्ञान को आम लोगों तक पहुँचाने का उचित समय आ गया है।

सदियों से लोगों को यह बताया जाता रहा है कि इनसान खुद ही परमात्मा का मंदिर है। लेकिन उन्हें स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया कि इस शरीररूपी मंदिर में प्रवेश करके परमात्मा से मिलाप कैसे करना है। सतगुरु का मार्ग यह विधि सिखाता है, उस मंदिर में प्रवेश करने का साधन बताता है और शिष्य को गुप्त द्वार खोलकर आंतरिक लोकों में जाने की प्रेरणा देता है। जब भी मनुष्य ने मृत्यु के रहस्य पर सोच-विचार करने की कोशिश की है, वह अपने प्रियजनों की मृत्यु के समय असहाय और चुपचाप खड़ा 'इस अज्ञात रहस्य' से भयभीत होता रहा है। सतगुरुओं तथा उनके शिष्यों के लिये कोई रहस्य अज्ञात नहीं है। जिस प्रकार वे इस जीवन की आम बातों को जानते हैं, उसी प्रकार उन्हें इस बात की भी पूरी जानकारी है कि मृत्यु के बाद क्या होता है। ऐसा कैसे संभव है?

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