बौद्ध धर्म और दलित बौद्ध आंदोलन भारतीय समाज और राजनीति में एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। यह न केवल एक धार्मिक परिवर्तन का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और अधिकारों की पुनःस्थापना का भी द्योतक है। इस ग्रंथ में बौद्ध धर्म की उत्पत्ति, इसके मूल सिद्धांतों, दलित बौद्ध आंदोलन के प्रभाव और नवयाना बौद्ध परंपरा की व्याख्या की गई है। अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष में डॉ. भीमराव अंबेडकर की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने पूना समझौते के बाद सामाजिक असमानता के विरुद्ध एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसने दलितों को बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित किया। दीक्षाभूमि इसी परिवर्तन का एक जीवंत प्रतीक है, जहाँ हजारों लोगों ने बौद्ध धर्म को अपनाकर अपने सामाजिक जीवन में क्रांतिकारी बदलाव किया।
बौद्ध आधुनिकतावाद ने धर्म को केवल आध्यात्मिकता तक सीमित न रखकर इसे सामाजिक परिवर्तन का माध्यम भी बनाया। इसी संदर्भ में दलित राजनीतिक दलों की भूमिका को भी समझना आवश्यक है, जिन्होंने समानता और न्याय की मांग को राजनीति के केंद्र में रखा। इसके अतिरिक्त, महात्मा गांधी और सत्याग्रह के विचारों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार आंदोलनों को प्रेरित किया, जिससे बौद्ध दर्शन और समाज में गहरा प्रभाव पड़ा। यह पुस्तक इन सभी विषयों पर विस्तार से प्रकाश डालती है और पाठकों को इस महत्वपूर्ण सामाजिक-धार्मिक आंदोलन को समझने का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है।
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