मानव अनादि काल से ही सुख-शान्ति व अमृत्व की खोज में सतत् प्रयास करता रहा है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हमारे मुनि-ऋषियों ने अपने दिव्य ज्ञान से अनेक उपाय सुझाए हैं। आज इस भौतिकवादी युग में मानव इन उपायों को भूल कर इनसे दूर भागता दिखाई दे रहा है। पढ़ाई के साथ विद्यार्थियों को मूल्य व आध्यात्म शिक्षा न दिये जाने से आज समाज में भ्रष्टाचार, व्यभिचार, पापाचार आदि तेजी से बढ़ रहे हैं। इन्जिनियरिंग आदि की कठिन पढाई पढ़ कर भी वे रास्ता भटककर अमानवीय, असामाजिक व निन्दनीय कर्म करने लग सकते हैं। अनेक विद्यार्थियों का पढ़ाई में ठीक से एकाग्रता प्राप्त न कर पाने के कारण, उनमें तनाव, डिप्रैशन, आत्म हत्यायें, चरित्र में गिरावट आदि की घटनाएं बढती जा रही हैं।
मानव में अनेक मूल्यों की गिरावट होने के कारण आज वह दुःखी है। जीवन में आध्यात्मिकता अति उपयोगी व सुखदाई होते हुए भी इससे दूरी बनाना स्वाभाविक सा हो गया है। इससे अनेक समस्याएं बढ़ रही हैं। आपसी प्रेम-भाव समाप्ति की ओर है, रिश्तों की गरिमा तार-तार हो रही है, एकाकी परिवार के कारण पारिवारिक परम्पराएं नष्ट होती जा रही हैं, सरलता और प्रसन्नता गायब हो रही है और आध्यात्मिकता सिमट कर रह गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि हम भ्रमित होकर रास्ता भटक गए हैं।
इन सभी विषयों को लेकर डॉ. अजीत सिंह राणा ने इस अमृतज्ञान नामक पुस्तक के माध्यम से अनेक अनुभव युक्त सारगर्भित लेखों द्वारा इन सभी समस्याओं के समाधान रूपी उपाय सुझाये हैं। बहुत से लेख तो उनके स्वयं के अनुभव व अनुभूतियों व शोध से उपजें है तथा प्रकाशित भी हो चुके है। समाज में मूल्य व आध्यात्मिकता की कमी को पूरा करने में डॉ. राणा का यह अति सुन्दर प्रयास है। सभी लेखों भोजन से लेकर शिक्षा, मूल्यों, संस्कार परिवर्तन और आध्यात्मिकता तक बड़ी ही सुन्दरता से सरल भाषा में एक माला में पिरोया गया है। मुझे दृढ़ विश्वास है कि यह पुस्तक साधारणजन, विद्यार्थियों, और अन्य सभी वर्गों के लोगों के लिए पठनीय, सुजागृत करने वाली और अति हितकारी व सुखदाई सिद्ध होगी!
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