१. इस (आर्योदय) पुस्तक का उद्देश्य मेरी अन्य पुस्तकों की भान्ति वेद की व्याख्या करना नहीं है। इसमें मैंने आर्य समाज लाहौर के प्रस्तुत अर्धशताब्दी-महोत्सव के शुभ अवसर पर श्रार्यसमाज के अब तक के कार्य की कुछ समालोचना तथा उसके भावी विकास के साधनों का कुछ संकेत करने का प्रयत्न किया है। गत सात-आठ वर्षों में इन विचारों को प्रकट करने के लिये मुझे भिन्न-भिन्न अवसर प्राप्त होते रहे हैं। इस पुस्तक में उन विचारों को तथा अन्य कई नये भावों को अलग-अलग निबन्धों के रूप में रक्खा गया है।
२. साहित्य और विचार की दृष्टि से इस पुस्तक को जनता कैसे ग्रहण करेगी, इस विषय में में कुछ नहीं कह सकता। पर हां, मुझे एक बात का संतोष है। मैंने अपने भावों को खुले हृदय से प्रकट कर दिया है। अब यह आर्य-जनता तथा विद्वानों का कार्य है कि वे इसकी ठीक-ठीक परीक्षा करके, यथार्थता का निश्चय करें। मैं इन विचारों को सर्वतन्त्र सिद्धान्त कह कर लोगों के सामने नहीं रख रहा । ये केवल इशारे हैं। इनके प्रकाश में आर्यसमाज के भावी कार्य-क्रम का ढांचा तैयार करना चाहिये। मेरा अनुभव बहुत थोड़ा है। यह संभव है कि मेरे इन संकेतों में से कुछ ग्रहण करने के अयोग्य भी हों । मुझे इससे बढ़कर क्या प्रसन्नता हो सकेगी कि मेरी इस पुस्तक के पाठकों में से कोई मुझे ठीक मार्ग पर डालने का प्रयत्न करे। इन शब्दों और इस आशा के साथ इस ग्रन्थ को अब मैं इसकी अभीष्ट यात्रा पर अग्रसारित करता हूँ।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist