भारत के साहित्य में 'पहेली' विद्या का बहुत महत्त्वूपर्ण स्थान रहा है। 'प्रहेलिका' नाम से संस्कृत में सुनिदित पहेली बुझने-बुझाने की कला को महर्षि वात्स्यायन ने चौसट कलाओं की सूची में प्रमुख स्थान दिया है। सदियों से पहेलियाँ खाली समय में मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्द्धन भी करती हई हर उम्र के लोगों के बीच निरंतर लोकप्रिय रही हैं। मनोरंजन के अन्य आधुनिक साधनों के आ जाने पर भी बाहर पिकनिक आदि पर बच्चों के बीच पहेलियाँ बुझाने का यह खेल आज भी उतना ही आम है।
सभी उम्र के लोगों की रुचियों को ध्यान में रख कर किए गए इस तरह के रुचिकर पहेली संकलन का अभाव बहुत समय से खटक रहा था, जिसे माधुरी शास्त्री ने बहुत श्रम से काफी हद तक दूर किया है, जिसके लिए वे निश्चय ही बधाई की पात्र है।
संकलन की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसकी विषय वस्तु का फलक बहुत व्यापक है। इसमें सामान्य विज्ञान, दैनिक जीवन के व्यवहार तथा बच्चों को सांस्कृतिक क्षों तथा महापुरुषों के बारे में भी जानकारी देने वाली पहेलियाँ हैं। उदाहरणार्थ, जन की देवी सरस्वती के बारे में जानकारी कितने सुन्दर तरीके से उसके द्वारा प्रस्तुत की गई है-
'एक हाथ में वीणा मेरे
एक हाथ में पुस्तक है।
बैठी हूँ मैं श्वेत हँस पर,
सबका ही मुझ पर हक है।'
लगता है, पहेलियों की इस देश के इतिहास में दोहरी भूमिका रही है। ये प्रश्नोत्तर की रोचक शैली में सामान्य ज्ञान की अभिवृद्धि करती रही हैं जिसे आज 'जनरल नॉलेज' के नाम से हर विद्यार्थी और किशोर अपने जीवन की बहुमूल्य निधि समझता रहा है। ऐसी जानकारी पर आधारित अनेक लोकप्रिय विद्याएँ और मीडिया कार्यक्रम आजकल अत्यन्त लोकप्रिय हुए भी हैं। क्विज प्रश्नोत्तरी, कौन बनेगा करोड़पति जैसे कार्यक्रमों से आज कौन परिचित हनों हैं? उसी तरह के प्रश्नों को पद्म बद्ध विद्या में पहेली के ढंग से प्राचीन काल से ही प्रस्तुत किया जाता रहा है।
पहेलियों की दूसरी भूमिका है बालक की बुद्धि को पैना करते हुए उसमें चिन्तन, विमर्श आदि की मौलिक शक्तियाँ जागृत करना। इस प्रकार बौद्धिक क्षमता बढ़ाने के लिए भी इनका प्रयोग किया जाता है। इन पहेलियों की रचना और संकलन इन उद्देश्यों की पूर्ति की दृष्टि से ही किया गया है।
आशा है, माधुरी शास्त्री का यह प्रयास पाठकों के बीच खूब सहारा जायेगा और अपने उद्देश्य में सफल होगा।
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