| Specifications |
| Publisher: Radha Krishn Prakashan Pvt. Ltd. | |
| Author: अरुण जैमिनी (Arun Jaimini) | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 239 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5 inch X 5.5 inch | |
| Weight 200 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9788183615693 | |
| NZA228 |
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हास्य-व्यंग्य कविताओं
हिन्दी में हास्य-व्यंग्य कविताओं का उदय मुख्यत: स्वतंत्रता के बाद हुआ। बेढबबनारसी, रमई काका, गोपालप्रसाद व्यास और काका हाथरसी आदि कवियों ने हिन्दी की जमीन में हास्य-व्यंग्य कविताओं के बीच बोए। कालांतर में , खासकर सन् 1970 के बाद, ये बीज भरपूर फसल बने और लहलाए। जीवन में बढ़ते तनाव ने हास्य-व्यंग्य को कवि सम्मेलनों के केन्द्र में स्थापित कर दिया। इसने लोकप्रियता के शिकर छुए। देश में ही नहीं, विदेश में भी । हिन्दीभाषियों में भी।
इस ऐतिहासिक प्रक्रियामें कुछ कविताओं की भूमिका विशेष रही। इस पुस्तक में वही कविताएँ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इस दृष्टि से कोई एक संकलन ऐसा है, जो हिन्दी की सर्वाधिक सराही गई हास्य-व्यंग्य कविताओं का प्रतिनिधित्व सचमुच कर सके। इस दृष्टि से भी कि हिन्दी की महत्वपूर्ण हास्य-व्यंग्य कविताओं के समुचित मूल्यांक के लिए आधार-सामग्री एक जगह उपलब्ध हो सके।
उम्मीद है कि प्रस्तुत प्रयास आजादी के बाद हास्य-व्यंग्य प्रधान कविताओं और उनमें व्यक्त देश-काल की बिडम्बनाओं-विद्रूपताओं को रेखांकित करने की भूमिका अदा करेगा; और कविता-संवेदना की इस धारा की क्षमताओं को सामने लाने में भी सफल होगा।
जीवन परिचय
अरुण जैमिनी
जन्म : 22 अप्रैल, सन् 1959
शिक्षा : दिल्ली विश्वविद्यालय से एम. ए.।
धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, माधुरी, पराग, दैनिक हिन्दुस्तान, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, नवभारत, सांध्य टाइम्स, राजस्थान पत्रिका, सहारा समय, अहा! जिंदगी, आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित ।
आकाशवाणी, दूरदर्शन, सोनी टी. दी., जी टी. दी., जी इंडिया, एन ई पी सी, जैन टी. वी, सब टी. वी. आदि अनेक चैनलों से प्रसारित ।
दूरदर्शन से प्रसारित 'धरती का आंचल' के 26 एपिसोड्स का संचालन । एन ई पी सी से प्रसारित 'हँसगोला' के 26 एपिसोड्स का संचालन । जी. टी. वी. से प्रसारित 'दरअसल' के13 एपिसोड्स का संचालन । दूरदर्शन मैट्रो से प्रसारित 'ताल-बेताल' के 13 एपिसोड्स का संचालन । जी इंडिया से प्रसारित 'यही है पॉलिटिक्स' के 10 एपिसोड्स का संचालन । अनेक टी. वी. कार्यक्रमों का पटकथा-लेखन । अनेक टी. दी. सीरियलों के लिए गीत-लेखन । भारत के कोने-कोने में तथा संयुक्त राज्य अमरीका, थाईलैण्ड, हांगकांग, इंडोनेशिया, ओमान, चीन, ऑस्ट्रेलिया, दुबई, नेपाल, सिंगापुर आदि देशों में समय-समय पर आयोजित कवि सम्मेलनों के लोकप्रिय स्वर ।
सन् 1996 में राष्ट्रपति डी. शंकर दयाल शर्मा द्वारा सम्मानित । सन् 1999 में 'काका हाथरसी हास्य-रत्न' सम्मान से सम्मानित । सन् 2000 में 'ओन् प्रकाश आदित्य सम्मान' से सम्मानित । सन् 2002 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा सम्मानित । दिल्ली सरकार की हिंदी अकादमी द्वारा सन् 2004 के 'काका हाथरसी सम्मान' से सम्मानित । सन्2005 के 'टेपा सम्मान' से सम्मानित ।
हास्य-व्यंग्य कविताओं के एक संग्रह 'फिलहाल इतना ही' के अनेक संस्करण प्रकाशित ।
भूमिका
हिन्दी में हास्य-व्यंग्य कविताओं का उदय मुख्यत: स्वतंत्रता के बाद हुआ ।बेढब बनारसी, रमई काका, गोपालप्रसाद व्यास और काका हाथरसी आदि कवियों ने हिन्दी की जमीन में हास्य-व्यंग्य कविताओं के बीज बोए । कालांतर में, खासकर सन् 1970 के बाद, ये बीज भरपूर फसल बने और लहलहाए । जीवन में बढ़ते तनाव ने हास्य-व्यंग्य को कवि सम्मेलनों के केन्द्र में स्थापित कर दिया । इसने लोकप्रियता के शिखर छुए । देश में ही नहीं, विदेश में भी । हिन्दीभाषियों में ही नहीं, अहिन्दीभाषियों में भी ।
इस ऐतिहासिक प्रक्रिया में कुछ कविताओं की भूमिका विशेष रही । इस पुस्तक में वही कविताएँ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । इस दृष्टि से कि कोई एक संकलन ऐसा हो, जो हिन्दी की सर्वाधिक सराही गई हास्य-व्यंग्य कविताओं का प्रतिनिधित्व सचमुच कर सके । इस दृष्टि से भी कि हिन्दी की महत्वपूर्ण हास्य-व्यंग्य कविताओं के समुचित मूल्यांकन के लिए आधार-सामग्री एक जगह उपलब्ध हो सके ।
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अनुक्रम |
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|
अल्हड़ बीकानेरी |
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पोते-पोती |
11 |
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पापा-आपा |
11 |
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नानो नातिनों की |
12 |
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बर्थ-डे |
13 |
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भूचाल |
13 |
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खटारा |
14 |
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छप्पन छुरी |
14 |
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होंठों से छुआ के मूँगफली |
15 |
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अशोक चक्रधर |
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डेमोक्रेसी |
19 |
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पोल-खोलक यंत्र |
21 |
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राष्ट्रीय भ्रष्टाचार महोत्सव |
26 |
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कटे हाथ |
36 |
|
बूढ़े बच्चे |
43 |
|
आश करण अटल |
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मीडिया एक |
49 |
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मीडिया दो |
51 |
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बुफे दावत |
54 |
|
वेजीटेरियन कवि इन अमेरिका |
60 |
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क्या हमारे पूर्वज बन्दर थे? |
65 |
|
विश्वामित्र द्वितीय यानी मैं |
69 |
|
हम क्या समझते नहीं हैं |
71 |
|
ओम् प्रकाश आदित्य |
|
|
लापता गधा |
78 |
|
दिल्ली और दलदल |
78 |
|
चन्द्रमुखी की मुसीबत |
78 |
|
जून में जनवरी |
79 |
|
भ्रष्टाचार पेट पर |
79 |
|
नरक विकास प्राधिकरण |
79 |
|
एकमुखी दशानन |
80 |
|
मनहूस श्रोता |
80 |
|
चीख रस |
80 |
|
पति-लखपति |
81 |
|
सोने की ईंट |
81 |
|
अडिग अतिथि |
81 |
|
गोरी बैठी छत पर |
82 |
|
पद्मिनी पद्मोना |
86 |
|
बुद्धं शरणं गच्छामि |
89 |
|
नोट देव की आरती |
94 |
|
अस्पताल की टाँग |
95 |
|
दूल्हे की घोड़ी |
101 |
|
नेता का नख-शिख वर्णन |
105 |
|
प्रदीप चौबे |
|
|
युद्धम् शरणम् गच्छामि |
128 |
|
रेल चली |
131 |
|
अपनी शवयात्रा में |
140 |
|
हर तरफ गोलमाल है साहब |
147 |
|
महेन्द्र अजनबी |
|
|
रेल-यात्रा |
149 |
|
भूतों की टोली |
153 |
|
वीर रस का कवि सम्मेलन |
157 |
|
एक से लेकर दस तक |
162 |
|
माणिक वर्मा |
|
|
भारत बन्द |
165 |
|
माँगीलाल और मैंने |
165 |
|
आदमी और बिजली का खंभा |
168 |
|
तहजीब |
173 |
|
मेरे मुल्क के मालिको! |
174 |
|
वेदप्रकाश वेद |
|
|
रावण |
179 |
|
काला आदमी |
181 |
|
हँसी-खेल नहीं है |
183 |
|
महीने के आखिरी दिनों में पहली बार |
185 |
|
पसलियाँ |
190 |
|
शैल चतुर्वेदी |
|
|
कार सरकार |
197 |
|
चल गई |
197 |
|
टुकड़े-टुकड़े हूटिंग |
202 |
|
बाजार का ये हाल है |
209 |
|
सुरेन्द्र शर्मा |
|
|
चार लैन सुणा रियो ऊँ |
213 |
|
कालू |
214 |
|
घर |
216 |
|
हुल्लड़ मुरादाबादी |
|
|
क्या करेगी चाँदनी |
220 |
|
जरूरत क्या थी? |
222 |
|
रोज पीने का बहाना चाहिए |
223 |
|
अच्छा है पर कभी-कभी |
223 |
|
अरुण जैमिनी |
|
|
साहब, सेब और राधेश्याम |
225 |
|
ताजमहल |
228 |
|
ढूँढ़ते रह जाओगे |
228 |
|
खून बोलता है |
231 |
|
चोर-चोर |
236 |
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