पुस्तक परिचय
एक कैंसर योद्धा की कहानी
जीवन की तमाम ज़िम्मेदारियाँ पूरी कर लेने के बाद सुप्रसिद्ध साहित्यकार और आलोचक डॉ. पुष्पपाल सिंह अपनी पत्नी के साथ पटियाला में सुकून भरी रिटायर्ड जिन्दगी जी रहे थे। खाना खाने में थोड़ी तकलीफ़ होने लगी तो चेकअप के लिए पड़ोस के अस्पताल पहुँचे। टेस्ट और चेकअप का सिलसिला शुरू हुआ तो मालूम चला कि डॉ. सिंह की भोजन नलिका पूरी तरह कैंसर की चपेट में है। जिस बीमारी का जिक्र भी एक परिवार के हौसले तोड़ देता है, उस बीमारी से रू-ब-रू डॉ. पुष्पपाल सिंह ने कीमोथेरेपी और मेजर-टू-मेजर यानी बहुत बड़े ऑपरेशन जैसी यंत्रणाओं से गुज़रते हुए उस वक़्त तो जीत हासिल कर ली, लेकिन कुछ ही महीनों बाद कैंसर ने फिर से हमला बोला - पहले से कहीं ज़्यादा बड़ा और गम्भीर। डॉ. पुष्पपाल सिंह की ये किताब महज़ एक संवेदनशील कैंसर डायरी भर नहीं है, बल्कि उनकी ही तरह के दूसरे कैंसर मरीज़ों और उनके परिवार वालों की हौसलाअफ़्ज़ाई और मार्गदर्शन का स्रोत भी है।
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