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चैन की बंसी- Chain Ki Bansi (A Collection of Satires)

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Specifications
Publisher: LITTLE BIRD PUBLICATIONS, DELHI
Author Ravi Sharma Madhup
Language: Hindi
Pages: 135
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 190 gm
Edition: 2026
ISBN: 9789363060333
HBZ571
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Book Description

अपनी बात

भारत में वर्तमान दौर अर्थात् आधुनिक काल विसंगतियों, विडंबनाओं, विषमताओं और विद्रूपताओं से भरा है। मनुष्य ने जैसे-जैसे विकास किया, आर्थिक विषमताएँ बढ़ती गई। आर्थिक विषमताओं के बढ़ने से सामाजिक भेदभाव को भी बल मिला, शोषण के नए-नए तरीके खोजे जाने लगे। अंग्रेज़ों द्वारा भारत में थोपा गया पुलिस, प्रशासन और शिक्षा पद्धति का त्रिकोणीय गठजोड़ भारत के मध्य वर्ग और निम्न वर्ग के लिए घातक होता चला गया। स्वतंत्रता के पश्चात् भी हमने इस त्रिकोणीय तंत्र को ज्यों-का-त्यों अपना लिया। बाद में, राजनीति में बढ़ते भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और स्वार्थकेंद्रित दृष्टिकोण ने 'कोढ़ में खाज' का काम किया।

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल रीतिकालीन दरबारी-शृंगारी काव्य की जकड़ से बाहर निकलकर जन सामान्य के निकट पहुँचा और तभी वह 'समाज का दर्पण' कहलाया। भारतेंदु युग से शुरू हुई आधुनिक हिंदी साहित्य की यात्रा अनेक उतार-चढ़ाव देखते हुए 175 वर्ष पूर्ण कर 21वीं सदी के मध्य की ओर बढ़ती जा रही है। दुखी, पीड़ित, शोषित सामान्य जन की पीड़ा को साहित्य ने अभिव्यक्ति प्रदान की। कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक आदि विधाओं में छुटपुट रूप से विद्यमान व्यंग्य धीरे-धीरे अपनी स्वतंत्र उपस्थिति दर्ज करवाने लगा और वर्तमान दौर में सबसे सार्थक, समर्थ, सशक्त साहित्यिक विधा के रूप में उभरा।

हिंदी व्यंग्य साहित्य को स्थापित करने, उसका प्रचार-प्रसार करने में हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवींद्र नाथ त्यागी, श्रीलाल शुक्ल, लतीफ घोंघी, गोपाल प्रसाद व्यास, प्रेम जन्मेजय, हरीश नवल, गोपाल चतुर्वेदी, हरि जोशी, सुभाष चंदर, लालित्य ललित आदि अनेक व्यंग्यकारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हीं सब को पढ़ते-सुनते तथा डॉ हरीश नवल के मार्गदर्शन, प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से मेरी रुचि भी व्यंग्य लेखन में हुई।

मैंने पाया कि साहित्य की अन्य विधाओं कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि की तुलना में व्यंग्य-साहित्य की महत्ता तथा लोकप्रियता दोनों बढ़ी हैं। इसका कारण शायद यह है कि व्यंग्य न तो सीधे-सीधे उपदेश देता है, न सलाह और न ही निर्देश। व्यंग्य अपने पाठकों में दलित, पीड़ित, शोषित के प्रति करुणा और सहानुभूति जगाता है, तो दूसरी ओर अत्याचारी, पीड़क, शोषक के प्रति आक्रोश और घृणा। व्यंग्यकार समाज में व्याप्त विसंगतियों, विद्रूपताओं, और विडंबनाओं को न केवल उद्घाटित करता है, अपितु उन पर परोक्ष प्रहार करके ऐसे अत्याचारी, पीड़कों, और शोषकों को तिलमिला देता है।

पाठक, दर्शक या श्रोता व्यंग्य रचना पढ़, देख या सुनकर समाज में सुधार करने के लिए प्रेरित होता है। वह अपने स्तर पर स्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन करने के लिए उद्धत होता है। इस प्रकार देखा जाए, तो साहित्य का सही उद्देश्य तो व्यंग्य ही पूरा करता है। इसीलिए मैंने कविता, लघुकथा, लेख आदि के साथ-साथ व्यंग्य में सृजन करने का निर्णय लिया।

मेरे लिए साहित्य-सृजन चाहे वह किसी भी विधा में क्यों न हो, एक मशीनी कार्य या दैनिक कार्य कभी नहीं बन पाया। साहित्य-सृजन मेरी भीतरी प्रेरणा का ही अभिव्यक्त रूप रहा, जब भी भीतर किसी भाव, स्थिति या घटना ने उ‌द्वेलित किया, तभी किसी-न-किसी रचना ने जन्म लिया। यही बात मेरे व्यंग्य-लेखन पर भी लागू होती है। मेरा व्यंग्य-साहित्य धीमी आँच में पकी हुई खीर है, जो स्वादिष्ट है और पौष्टिक भी।

मेरे लिखे व्यंग्य देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों यथा नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, पंजाब केसरी एवं पत्रिकाओं जैसे इस्पात भाषा भारती, भाषा, राष्ट्रधर्म, हास्य-व्यंग्य भारती, अट्टहास, व्यंग्य यात्रा, शिष्ट विनोद, अणु भारती, अक्षरम, साहित्य भारती आदि में प्रकाशित होने लगे, तो मेरा उत्साहवर्धन हुआ। डॉ. हरीश नवल सर के आशीर्वाद से मेरा पहला व्यंग्य-संग्रह 'बकरी कल्चर' (2006) में प्रकाशित हुआ। इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा समीक्षकों ने की तथा इस पर मुझे कई पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए। इसी क्रम में मेरा दूसरा व्यंग्य संग्रह 8 वर्ष बाद 'अंगूठा छाप हस्ताक्षर' सन् 2014 में प्रकाशित हुआ। इसकी भी हिंदी साहित्य क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यंग्यकारों एवं आलोचकों ने अत्यधिक सराहना की। और अब यह मेरा तीसरा व्यंग्य संग्रह 11 वर्ष बाद पाठकों के हाथों में आ रहा है, यह मेरे लिए संतोष का विषय है।

इस व्यंग्य संग्रह में हमारे समकालीन समाज के भ्रष्ट नेताओं, टालमटोल करते अधिकारियों, स्वार्थी ठेकेदारों, भ्रमित नीति निर्माताओं, लोलुप पत्रकारों आदि द्वारा उत्पन्न त्रासद स्थितियों का सरस वर्णन है। कोरोना काल की कष्टकारी कटु स्मृतियाँ भी व्यंग्य का आधार बनी हैं। इस पुस्तक में संगृहीत मेरे ये व्यंग्य पाठकों को अवश्य ही पसंद आएँगे, वे इनसे जुड़ाव महसूस करके समाज में व्याप्त विडंबनाओं को न्यूनतम करने का प्रयास करेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।

इस व्यंग्य संग्रह के लेखन के प्रेरणास्रोत आदरणीय डॉ. हरीश नवल जी का मैं हृदय की गहराई से आभार व्यक्त करता हूँ। मेरी सहधर्मिणी डॉ. सुधा शर्मा 'पुष्प' ने जिस मनोयोग से इन व्यंग्य लेखों को पढ़ा, संशोधन हेतु सकारात्मक सुझाव दिए, पुस्तकाकार लाने में जो परिश्रम किया, उसका शब्दों में धन्यवाद देकर मैं उससे उऋण नहीं हो सकता। इस व्यंग्य संग्रह को इतने आकर्षक ढंग से पाठकों के हाथों में पहुँचाने में जो तत्परता एवं उत्साह लिटिल बर्ड पब्लिकेशंस की कर्ता-धर्ता आदरणीया डॉ. कुसुमलता सिंह जी ने दिखाया है, इसके लिए मैं उन्हें विशेष धन्यवाद देना चाहूँगा।

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